अरहर के क्षेत्रफल और उत्पादन में भारत विश्व में पहले स्थान पर है. विश्व के कुल क्षेत्रफल में भारत की हिस्सेदारी 79.65 प्रतिशत और उत्पादन में 67.28 प्रतिशत है. अरहर का सामान्य क्षेत्रफल 44.29 लाख हेक्टेयर है, जिसमें 35.69 लाख टन उत्पादन होता है तथा उत्पादकता 80.6 किग्रा/हेक्टेयर है. अरहर अकेले कुल खरीफ दलहन क्षेत्रफल में लगभग 34 प्रतिशत तथा उत्पादन में 47 प्रतिशत का योगदान देती है. दलहनी फसलों में अरहर का विशेष स्थान है. अरहर में लगभग 20-21 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है, और इस प्रोटीन की पाचन क्षमता भी अन्य प्रोटीनों से बेहतर होती है. अरहर की दीर्घकालीन किस्में मिट्टी में 200 किलोग्राम तक वायुमंडलीय नाइट्रोजन स्थिर करके मिट्टी की उर्वरता और उत्पादकता बढ़ाती हैं. इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे अरहर की उज्ज्वला किस्म के बारे में. साथ ही जानेंगे अरहर की 5 उन्नत किस्मों के बारे में भी विस्तार से.
अच्छी खेती और फसल से अच्छी उपज के लिए सही बीजों का चयन करना बहुत जरूरी है. क्योंकि उपज बीजों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है. तो आइए जानते हैं अरहर की उन्नत किस्मों के बारे में.
यह सी.एम.एस. आधारित भूरे रंग की अरहर की पहली संकर किस्म है. इसकी फसल अवधि 164 से 184 दिन है, इस किस्म की दालों में प्रोटीन की मात्रा 24.7% है, इसकी औसत उपज 22 से 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
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इस किस्म के पकने की अवधि 260 से 270 दिन की है. अगर आप इस किस्म की खेती करना चाहते हैं तो बुवाई जुलाई से सितम्बर तक के समय में कर लें. इसकी औसत उपज 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
अरहर की इस किस्म की फलियां हरी और काली धारियों वाली होती हैं. साथ ही इस किस्म के दाने लाल और भूरे रंग के बड़े होते हैं. यह किस्म भी देर से बोने के लिए उपयुक्त है. इसलिए इसे पछेती किस्म भी कहा गया है. इसकी औसत उपज 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
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अरहर की इस किस्म में फसल की लंबाई कम और दाना मोटा होता है. यह किस्म 150 से 160 दिन में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज 1 टन प्रति हेक्टेयर है. कम समय में पकने की वजह से किसान इस किस्म को ज्यादा पसंद करते आ रहे हैं.
इस किस्म में फसल की लंबाई कम होती है, अगर इसकी ऊंचाई की बात करें तो वह 90 से 100 सेमी होती है. इस फसल के पकने की अवधि 140 से 150 दिन की होती है. अरहर की इस किस्म में फलियां मोटी और लंबी होती हैं और यह गुच्छों में आती हैं और एक साथ पकती हैं. इस किस्म की औसत उपज 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
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