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धान तो बदनाम है... पानी के खर्च में कपास और गन्ना भी किसी से पीछे नहीं, ये रही डिटेल्स

धान तो बदनाम है... पानी के खर्च में कपास और गन्ना भी किसी से पीछे नहीं, ये रही डिटेल्स

पानी के मामले में चावल का नाम सबसे पहले आता है. उसके बाद कपास और गन्ने का नाम है. ये तीनों फसलें पानी सबसे ज्यादा खपत करती हैं. इसके अलावा सोयाबनी और और गेहूं का भी नाम है. इन फसलों की खेती की वजह से जमीन के नीचे पानी का स्तर तेजी से घटता जा रहा है.

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धान, कपास और गन्ने की फसल में सबसे अधिक पानी का खर्च होता है धान, कपास और गन्ने की फसल में सबसे अधिक पानी का खर्च होता है

धान तो बदनाम है. इसलिए कि उसे पानी का पियक्कड़' फसल कहते हैं. कहा जाता है कि जितने पानी में केवल धान उगता है, उतने में पता नहीं कई फसलों की प्याज बुझ जाए. लेकिन क्या करें, पेट का सवाल है. जिस देश में अधिसंख्य आबादी चावल से भूख मिटाती हो, वहां धान की रोपाई ही अवश्यमेव विकल्प हो सकता है. यही वजह है कि धान के रकबे के साथ सरकार छेड़छाड़ नहीं करती. बल्कि धान की ऐसी किस्मों पर काम होता है, जो कम पानी में काम चला ले. मगर क्या सिर्फ धान ही इतना पानी पीता है? नहीं, ऐसा नहीं है. इस कड़ी में कपास और गन्ना भी हैं. आइए इनकी पानी की यात्रा को समझते हैं.

सबसे पहले जान लेते हैं कि सबसे अधिक पानी खर्च करने वाली कौन-कौन सी फसलें हैं. इसमें सात फसलें सबसे प्रमुख हैं.

• चावल
• सोयाबीन
• गेहूं
• गन्ना
• कपास
• अल्फाअल्फा
• चारा

इसी आधार पर हम चावल, गन्ना और कपास की बात करेंगे. सबसे पहले जानते हैं धान यानी कि चावल के पानी खर्च के बारे में.

धान

दुनिया में सबसे प्रमुख जिन अनाजों के नाम हैं, उनमें चावल का स्थान सबसे अहम है. भारत इसका सबसे बड़ा उत्पादक है. यही वजह है कि आपको हर घर में 'भात' का स्थान सर्वोपरि है. भात यानी कि कच्चा चावल का पका हुआ रूप. इसी भात को दक्षिण में अन्नम के नाम से जानते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि जिस भात को पानी में उबाल कर बनाया जाता है, उसी भात का पौधा सबसे अधिक पानी का भी खर्च करता है? 

आपको ताज्जुब होगा कि एक किलो धान की पारंपरिक खेती करने के लिए किसी किसान को 3000-5000 लीटर तक पानी खर्च होता है. इससे आप अंदाजा लगा लें कि भारत में धान उगाने के लिए कितनी मात्रा में पानी खर्च होता है. जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है, वैसे-वैसे धान या चावल की मांग बढ़ रही है. इसी आधार पर पानी का खर्च भी बढ़ रही है. लिहाजा देश में पानी का स्तर तेजी से नीचे जा रहा है. खासकर उन प्रदेशों में जहां धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है. 

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फिर इसका समाधान क्या है? समाधान यही है कि हम धान की खेती को नहीं रोक सकते, लेकिन ऐसी प्रजाति जरूर विकसित कर सकते हैं जो कम पानी में अच्छी पैदावार दे. अभी इसी पर सबसे अधिक काम हो रहा है. आप खेतों में धान की ऐसी प्रजाति देख सकते हैं जो साइज में छोटी होती है. इसके पीछे भी साइंस यही है कि फसल छोटी होगी तो पानी कम पीएगी. ऐसी प्रजातियों पर तेजी से काम हो रहा है. धान उगाने वाले राज्यों की बात करें तो बंगाल, यूपी, आंध्र प्रदेश, पंजाब, बिहार, ओडिशा, असम, तमिलनाडु और हरियाणा के नाम प्रमुख हैं.

कपास

कपास यानी कि रूई. रूई यानी कि आपका-हमारा कपड़ा. कपड़ा यानी कि शरीर की सुरक्षा. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि कपास खेती-किसानी से लेकर हमारे जीवन का कितना बड़ा अभिन्न अंग है. लेकिन इसके पीछे का एक स्याह पक्ष भी है. वो पक्ष है पानी का अत्यधिक खर्च. विस्तार में जाएं तो आपको पता चल जाएगा कि यह कहीं न कहीं किसानों की आत्महत्या से भी जुड़ा हुआ मामला है. बहरहाल, हम अभी इसी पर फोकस करेंगे कि कपास किस स्तर पर जाकर पानी का खर्च लेता है.

कपास को व्हाइट गोल्ड या सफेद सोना भी कहते हैं. इसलिए, क्योंकि इससे किसान को होने वाली कमाई किसी सोने से रत्ती भर कम नहीं. वैश्विक स्तर पर देखें तो खरीफ की यह फसल भारत में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है. दुनिया में कपास उत्पादक और निर्यातक देशों में भारत महत्वपूर्ण स्थान रखता है. लेकिन जब इस फसल को उगाने में पानी के खर्च की बात होती है, तो आम आदमी दो-चार बार जरूर सोच में पड़ता है.

 भारत में एक किलो कपास उगाने में तकरीबन 22,500 लीटर पानी का खर्च होता है. इसका एक दूसरा चौंकाने वाला पहलू ये है कि भारत में कपास उन क्षेत्रों में अधिक उपजाया जाता है जो कम पानी वाले कम सिंचित क्षेत्र हैं. तभी उन क्षेत्रों में पानी के लिए हाहाकार देखा जाता है. जो प्रदेश इसकी खेती में शामिल हैं, उनमें गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु और ओडिशा के नाम हैं.

गन्ना

गन्ने की खेती जितनी बड़ी है, उतनी ही बड़ी है इसकी राजनीति. लेकिन किसान क्या करें. सरकार ने इसे 'कैश क्रॉप' में जो रखा है. जहां कैश या नकदी होगी, किसान उसी फसल को अधिक तवज्जो देगा. भले ही उसे खेती में लाखों टन पानी क्यों न उड़ेलना पड़े. अभी यही हो रहा है. सरकार चाहती है कि किसान गन्ने के अलावा भी बाकी फसलों पर ध्यान दें ताकि पानी की बचत हो. मगर गन्ने की कमाई जो न कराए.

अब गन्ने के पानी की कहानी जान लेते हैं. गन्ना लंबे दिनों तक चलने वाली फसल है. जाहिर सी बात है कि फसल जब तक खड़ी रहेगी, तब तक उसे पानी की जरूरत पड़ती रहेगी. अगर इसमें पानी की कमी पड़ जाए तो फसल का पूरा बढ़वार रुक जाएगा. आम फसलों की जहां तक बात है तो उन्हें 300-500 मिमी बारिश या सिंचाई के पानी की जरूरत होती है. लेकिन गन्ने में यह मात्रा 1500-2500 मिमी तक पहुंच जाती है. गन्ने को इतना पानी मिलेगा, तभी उसका ग्रोथ साइकल पूरा होगा.

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इसी आधार पर एक किलो गन्ना उगाने के लिए किसान को 1500-3000 लीटर तक पानी देने की जरूरत होती है. आप अंदाजा लगा लें कि एक गन्ने का वजन कितना होता है. इससे आपको पता चल जाएगा कि एक गन्ना कितने लीटर तक पानी पीता है. भारत में जिन प्रदेशों में सबसे अधिक गन्ने की खेती होती है, उनमें उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा, उत्तराखंड और पंजाब के नाम प्रमुख हैं.