रासायनिक उर्वरक बनाने वाली कंपनियों का शीर्ष संगठन फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FAI) ने दावा किया है कि खाद्यान्न उत्पादन में 50 फीसदी की वृद्धि उर्वरकों के उपयोग के कारण हुई है. आजादी के बाद से तेजी से बढ़ती आबादी के बीच खाद्य सुरक्षा हमेशा राष्ट्रीय प्राथमिकता रही है. विश्व में कृषि विकास के लिए उर्वरकों का प्रयोग अपरिहार्य हो चुका है. भारत इसका कोई अपवाद नहीं है. खाद्यान्न उत्पादन में रासायनिक उर्वरकों का अहम योगदान है. इसे नकारा नहीं जा सकता. खाद्य सुरक्षा के लिए उर्वरक सुरक्षा पहली शर्त है. एफएआई का यह बयान तब आया है जब रासायनिक उर्वरकों के खिलाफ आए दिन आवाज उठ रही है. क्योंकि अब सरकार ऑर्गेनिक और नेचुरल फॉर्मिंग पर भी फोकस कर रही है.
भारत में उर्वरक सब्सिडी 2.5 लाख करोड़ रुपये सालाना पहुंच गई है. इसलिए सरकार किसी भी सूरत में इसकी खपत में कमी लाना चाहती है. ऑर्गेनिक और नेचुरल खेती के नारे और रासायनिक उर्वरकों की सब्सिडी कम करने की सरकारी कोशिशों के बीच हुए एफएआई के वार्षिक सेमिनार में 'उर्वरक उपयोग- मिथक और वास्तविकता' विषय पर किसानों और मीडिया के साथ इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों ने बातचीत की है. ताकि कृषि में उर्वरकों के उपयोग के बारे में किसानों की शंकाओं को दूर किया जा सके.
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एसोसिएशन के अध्यक्ष एन. सुरेश कृष्णन और सह-अध्यक्ष एस.सी. मेहता ने कहा कि भारत की 60 फीसदी से अधिक जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और सकल घरेलू उत्पाद में इसका 18 फीसदी योगदान है. जनसंख्या बढ़ रही है. बढ़ती जनसंख्या की भोजन, चारा और ईंधन की मांग को पूरा करने के लिए उर्वरकों के उपयोग को और अधिक बढ़ावा देना होगा. क्योंकि उर्वरक पौधों का भोजन है. उर्वरकों में पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्व होते हैं. उन्होंने कहा कि कृषि उत्पादन और किसानों की आय बढ़ाने में उर्वरकों का अहम योगदान है.
कृष्णन का कहना है कि अगले दो साल में भारत यूरिया के निर्माण में आत्मनिर्भर हो जाएगा. क्योंकि इस वक्त देश में सालाना करीब 350 लाख टन यूरिया की खपत हो रही है. इसमें से 285 लाख टन यूरिया का उत्पादन देश में हो रहा है. देश में यूरिया की जरूरत पूरा करने के लिए करीब 70 लाख टन तक यूरिया का आयात करना पड़ रहा है. इस वक्त हर साल करीब 80 लाख टन यूरिया की और उत्पादन क्षमता पर काम किया जा रहा है. जिसमें से लगभग 20 लाख टन यूरिया की उत्पादन क्षमता निजी क्षेत्र में जबकि 60 लाख टन की पब्लिक सेक्टर के तहत विकसित हो रही है. सभी नए प्लांट गैस बेस्ड हैं, जिन्हें अगले दो साल में शुरू होने की उम्मीद है.
कृषि में उर्वरकों के महत्व को समझते हुए, भारत सरकार ने किसानों को गुणवत्तापूर्ण उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए 1957 में उर्वरक नियंत्रण आदेश लागू किया था. 1970 के दशक के अंत में उर्वरकों के उत्पादन को बढ़ाने और किसानों को उत्पादन की लागत और अधिकतम खुदरा मूल्य में अंतर को सब्सिडी के माध्यम से पाटने के लिए एक मूल्य निर्धारण नीति का कार्यान्वयन किया गया. जिसे प्रशासनिक सुविधा के लिए उद्योग के माध्यम से भेजा जाता है.
समय-समय पर नीतियों में बदलाव होते रहे हैं. जैसे 1992 में पीएंडके उर्वरकों को नियंत्रण मुक्त किया गया. साल 2023 में नई मूल्य निर्धारण नीति आई. इसी तरह 2010 में पीएंडके उर्वरकों पर एनबीएस नीति का कार्यान्वयन किया गया. साल 2015 में नई यूरिया नीति, 2012 में यूरिया के लिए निवेश नीति आई और 2015 में यूरिया पर नीम की कोटिंग अनिवार्य की गई. सरकार सल्फर कोटेड यूरिया, वैकल्पिक उर्वरक, नैनो-उर्वरक आदि को भी बढ़ावा दे रही है.
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नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद ने कृषि उत्पादन बढ़ाने में उर्वरकों के महत्व के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की. उन्होंने संतुलित अनुपात में उर्वरकों के उपयोग पर जोर दिया. उद्योग जगत के विशेषज्ञों ने वैश्विक उर्वरक मांग-आपूर्ति, कीमत, कांट्रैक्ट फार्मिंग, नए उर्वरकों की संभावनाएं, खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए मिलेट्स और नई पीढ़ी के उर्वरक जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की.
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