इन दिनों भारत में जैविक खेती की खूब चर्चा है. कई किसान जैविक खेती कर रहे हैं और इसमें तेजी से सफलता भी पा रहे हैं. इस खेती में पूरी तरह से प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल किया जाता है. वहीं यह खेती किसानों के लिए इतनी लाभदायक है कि वे इसे लंबे समय तक आसानी से कर सकते हैं. इसमें लागत कम आती है और उत्पादन में बढ़ोतरी होती है. इसलिए किसानों को इसमें फायदा होता है. जैविक खेती को एक टिकाऊ बिजनेस मॉडल के तौर पर विकसित किया जा रहा है.सरकार भी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई जागरुकता अभियान चला रही है.
दरअसल खेती में रसायनों के बढ़ते इस्तेमाल के कारण मिट्टी अपनी उपजाऊ शक्ति खोती जा रही है. इससे साल दर साल फसलों का उत्पादन कम होता जा रहा है. ऐसी ही समस्याओं को देखते हुए किसान तेजी से जैविक खेती की ओर रुख कर रहे हैं. इसमें जैविक खाद भी पूरी मदद करते हैं. आप चाहें तो बेहद कम समय में ये तीन जैविक खाद कम खर्चे में बना सकते हैं.
जैविक खेती करने के कई फायदे हैं. जैविक खेती करने से जहां फसलों के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है. वहीं इसकी खेती करने वाले किसानों को कम लागत में अच्छा मुनाफा भी होता है. इसकी खेती में जैविक खाद का प्रयोग होने से यह स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायदेमंद होता है. वहीं यह पर्यावरण के लिए भी काफी बेहतर होता है. जैविक खेती के लिए पानी का भी कम इस्तेमाल किया जाता है. वहीं जैविक खेती से पशुपालन को भी बढ़ावा मिलता है. जैविक खेती और पशुपालन आपस में जुड़े हुए हैं. जहां खेतों में प्रयोग होने वाली जैविक खाद में पशुओं का गोबर और मूत्र होता है, तो वहीं पशुओं के आहार के रूप में खेतों से तैयार किया हुआ हरा चारा मिल जाता है.
ये भी पढ़ें:- PM Kisan Scheme: 15 जनवरी तक कराएं ई-केवाईसी, वरना नहीं मिलेगा सम्मान निधि का फायदा
वर्मी कंपोस्ट एक उत्तम जैव उर्वरक है. इसे केंचुआ खाद भी कहा जाता है. यह खाद केंचुआ और गोबर की मदद से बनाई जाती है. इसे तैयार होने में लगभग डेढ़ महीने लगते हैं. यह खाद वातावरण को प्रदूषित नहीं होने देती है. इस खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. जो फसलों को तेजी से विकास में मदद करता है और मिट्टी को बेकार नहीं होने देता है.
आमतौर पर कंपोस्ट खाद को कूड़ा खाद भी कहा जाता है क्योंकि यह घर के कूड़े, पौधों के अवशेषों, कूड़ा कचरा, पशुओं के मलमूत्र, पशुओं के गोबर, खेतों का घास-फूस या खरपतवार आदि को विशेष परिस्थियों में सड़ने गलने से खाद बनती है. कंपोस्ट खाद की खासियत ये होती है कि ये गंध रहित होती है.
बिना सड़ा हुआ पौधों का वह भाग जिसे हम मिट्टी में मिलाकर खाद के रूप में उपयोग करते हैं, उसे हरी खाद कहते हैं. हरी खाद जैविक खेती का एक महत्वपूर्ण अंग है. इसका मकसद नाइट्रोजन को मिट्टी में फिक्स करना और मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ यानी सॉइल ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा को बढ़ाना है ताकि कम रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाए.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today