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जैविक और प्राकृतिक खेती के नारे के बीच बढ़ गई रासायनिक उर्वरकों की बिक्री, आयात में आई कमी

जैविक और प्राकृतिक खेती के नारे के बीच बढ़ गई रासायनिक उर्वरकों की बिक्री, आयात में आई कमी

खपत बढ़ने के बावजूद एक संतोष वाली बात यह है कि भारत में रासायनिक उर्वरकों का आयात पिछले एक साल की अवधि में 11.2 फीसदी कम हो गया है. कुल उर्वरकों का आयात अप्रैल-जनवरी के दौरान पिछले साल के 173.29 लाख टन के मुकाबले घटकर 153.86 लाख टन रह गया है. डीएपी के आयात में सबसे ज्याकदा 20.2 प्रतिशत कमी दर्ज की गई है.  

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रासायनिक खादों की बढ़ती खपत ने बढ़ाई टेंशन.  रासायनिक खादों की बढ़ती खपत ने बढ़ाई टेंशन.

जैविक और प्राकृतिक खेती के सरकारी नारे के बीच रासायनिक खादों की खपत इस साल भी बढ़ गई है. केंद्र सरकार किसी भी सूरत में केमिकल उवर्रकों का खर्च कम करना चाहती है ताकि सब्सिडी पर होने वाला भारी भरकम खर्च कम हो और उस पैसे का इस्तेमाल कहीं और किया जा सके. लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. नए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष में 31 जनवरी तक सभी उर्वरकों की बिक्री में कुल मिलाकर 2.9 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है. साल 2022-23 में कुल 524.64 लाख टन उवर्रकों की बिक्री हुई थी जो 2023-24 में बढ़कर 539.79 लाख टन हो गई है. यूरिया की खपत लगभग पिछले साल जितनी ही है. पिछले साल कुल 318.52 लाख टन यूरिया की खपत हुई थी जो इस साल 317.51 लाख टन है. यानी यूरिया की खपत में 0.3 प्रतिशत कमी आई है.  

इसी तरह अप्रैल-जनवरी 2023-24 के दौरान डीएपी की कुल बिक्री 5.9 प्रतिशत बढ़ी है. यह इस साल 103.03 लाख टन है जो पिछले साल इसी अवधि में 97.3 लाख टन था. म्यूरेट ऑफ पोटाश यानी एमओपी की खपत लगभग पिछले साल जितनी ही है. साल 2023-24 में जनवरी तक एमओपी की खपत 13.95 लाख टन था, जो पिछले साल की इसी अवधि में 13.98 लाख टन था. हालांकि कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की बिक्री में सबसे ज्याटदा करीब 11 प्रतिशत का उछाल आया है. पिछले साल जनवरी तक 94.84 लाख टन की बिक्री के मुकाबले यह इस साल बढ़कर 105.3 लाख टन हो गया है. कॉम्प्लेक्स उर्वरक नाइट्रोजन (एन),  फॉस्फोरस (पी),  पोटाश (के) और सल्फर (एस) पोषक तत्वों का एक कंबिनेशन है.

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क्यों बढ़ी केमिकल फर्टिलाइजर की खपत  

सबसे बड़ा सवाल यही है कि सरकार रोज जैविक खेती और प्राकृतिक खेती का माला जप रही है ताकि केमिकल मुक्त खेती का दायरा कम हो. लेकिन खेती में रासायनिक उर्वरकों की ही खपत बढ़ती जा रही है. आखिर ऐसा कैसे हो रहा है. जबकि सरकार खुद कह रही है कि जैविक और प्राकृतिक खेती का दायरा बढ़ रहा है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार साल 2021-22 में जैविक खेती का रकबा 59,12,414 हेक्टेयर हो गया है. जबकि यह 2020-21 में 38,08,771 और 2019-2020 में सिर्फ 29,41,678 हेक्टेयर ही था. तो क्या फिर यह माना जाए कि ज्यादा उत्पादन के लिए किसान ज्यादा केमिकल फर्टिलाइजर का इस्तेमाल कर रहे हैं.

कम हुआ आयात

खपत बढ़ने के बावजूद एक संतोष वाली बात यह है कि भारत में रासायनिक उर्वरकों का आयात पिछले एक साल की अवधि में 11.2 फीसदी कम हो गया है. कुल उर्वरकों का आयात अप्रैल-जनवरी के दौरान पिछले साल के 173.29 लाख टन के मुकाबले घटकर 153.86 लाख टन रह गया है. डीएपी का आयात सबसे ज्यासदा 20.2 प्रतिशत घटकर पिछले साल 63.8 लाख टन के मुकाबले घटकर सिर्फ 50.91 लाख टन रह गया है. कॉम्प्लेक्स उर्वरकों  का आयात 18.5 प्रतिशत घटकर पिछले साल के 22.49 लाख टन के मुकाबले 18.34 लाख टन रह गया है.

सरकार द्वारा नियंत्रित यूरिया का आयात चालू वित्त वर्ष के पहले दस महीनों के दौरान 64.33 लाख टन दर्ज किया गया है, जो एक साल पहले इसी अवधि में 73.07 लाख टन था. यानी यूरिया के आयात में 12 फीसदी की गिरावट आई है. हालांकि एमओपी का आयात 45.6 फीसदी बढ़ गया है. पिछले साल जनवरी तक इसका आयात 13.93 लाख टन था जो इस साल उछल कर 20.28 लाख टन पर जा पहुंचा है. 

देश के 344 जिलों में कम हुई यूरिया की खपत

उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया ने पिछले सप्ताह ही कहा था कि नैनो लिक्विड यूरिया की मांग बढ़ने और रसायन के उपयोग को हतोत्साहित करने के सरकार के प्रयासों के कारण चालू वित्त वर्ष में भारत की पारंपरिक यूरिया खपत में 25 लाख टन की गिरावट का अनुमान है. पिछले साल यूरिया की खपत लगभग 357 लाख टन थी. उन्होंने कहा था कि 344 जिलों में पारंपरिक यूरिया की खपत कम हो गई है और 74 जिलों में नैनो-यूरिया की बिक्री बढ़ी है. उन्हें उम्मीद है कि भारत 2025 तक यूरिया के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा.  

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