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बुवाई के समय मूंग में कितनी दें खाद, 4 उन्नत किस्में और विशेषताओं के बारे में जानें

बुवाई के समय मूंग में कितनी दें खाद, 4 उन्नत किस्में और विशेषताओं के बारे में जानें

मूंग की फसल से एक और काम भी आती है. इसकी फलियों की तुड़ाई के बाद खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से फसल को पलटकर मिट्टी में दबा देने से यह हरी खाद का काम करती है. मूंग की खेती करने से मिट्टी में उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है.

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मूंग की खेती मूंग की खेती

मूंग भारत में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है. वहीं राजस्थान में खरीफ ऋतु में उगायी जाने वाली यह प्रमुख दलहनी फसल है. मूंग की फसल को खरीफ, रबी एवं जायद तीनों मौसम में उगाया जाता है. इसकी मांग बाज़ार में हमेशा बनी रहती है. इसके चलते किसानों को इसकी खेती से अच्छा मुनाफा मिलता है. लेकिन कई बार सही जानकारी के अभाव में किसान इसकी खेती अच्छे तरीके से नहीं कर पाते हैं. इसके अच्छे उत्पादन के लिए खाद की  संतुलित मात्रा का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. उससे पहले सही किस्मों का चयन बहुत जरूरी है. आज हम मूंग की खेती के इन दोनों पहलुओं पर जानकारी देंगे.

मूंग की फसल से एक और काम भी आती है. इसकी फलियों की तुड़ाई के बाद खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से फसल को पलटकर मिट्टी में दबा देने से यह हरी खाद का काम करती है. मूंग की खेती करने से मिट्टी में उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है. यदि सही तरीके से इसकी खेती की जाए तो इससे काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. मूंग की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है. इसके खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करनी चाहिए. 

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सोयाबीन की उन्नत किस्में

आरएमजी -62 किस्म 65-70 दिनों में पक जाती है. इसकी औसत उपज 8-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. खास बात यह है कि यह किस्म सिचिंत एवं असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. राइजक्टोनिया ब्लाइट, कोण व फली छेदक कीट के प्रति रोधक, फलियां एक साथ पकती हैं.

आरएमजी -268 किस्म 62-70 दिन में पकती है. इसकी पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह किस्म सूखे के प्रति सहनशील है. इस पर रोग एवं कीटों का कम प्रकोप होता है. फलियां एक साथ पकती हैं. 

आरएमजी 344 किस्म 62-72 दिन में पकती है. इसकी पैदावार 7-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह किस्म खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्त है. इसमें ब्लाइट रोग को सहने की क्षमता है. इसका दाना चकमदार एवं मोटा होता है.

सोयाबीन की एसएमएल-668 किस्म 62-70 दिन में तैयार होती है. इसकी पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह खरीफ एवं जायद दोनों सीजन के लिए उपयुक्त है. यह किस्म कई बीमारियों और रोगों के प्रति सहनशील है.

बीज एवं बुवाई

मूंग की बुवाई 15 जुलाई तक कर देनी चाहिए. देरी से वर्षा होने पर शीघ्र पकने वाली किस्मों की बुवाई 30 जुलाई तक की जा सकती है. स्वस्थ एवं अच्छी गुणवत्ता वाला तथा उपचारित बीज बुवाई के काम लेना चाहिये. बुवाई कतारों में करनी चाहिये. कतारों के बीच की दूरी 45 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेन्टीमीटर उचित होती है.

खाद की कितनी मात्रा होनी चाहिए

दलहनी फसल होने के कारण मूंग को कम नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है. मूंग के लिए 20 किलो नाइट्रोजन तथा 40 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है. नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की समस्त मात्रा 87 किलोग्राम, डीएपी एवं 10 किलोग्राम यूरिया बुवाई के समय देनी चाहिये. मूंग की खेती के लिए खेत में दो तीन वर्षों में कम से कम एक बार 5 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिये. इसके अतिरिक्त 600 ग्राम रोइजोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिये तथा बुवाई कर देनी चाहिये. खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिट्टी की जांच कर लेनी चाहिये.

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