अक्टूबर से दिसंबर तक रबी फसलों की बुवाई का पीक टाइम रहता है. ऐसे में इस दौरान किसान भारी मात्रा में डीएपी और अन्य खादों की खरीद करते हैं. यही वजह रही कि पिछले साल अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में विभिन्न खादों की बिक्री में 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जिसमें यूरिया, डीएपी, पोटाश आदि बिका. बुवाई के समय किसान खाद के लिए लंबी लाइनों में लगे थे, जबकि कई जिलों में स्टॉक उपलब्ध नहीं था. एक्सपर्ट्स का कहना है कि दरअसल खाद की बिक्री में यह बढ़त इसलिए हुई, क्योंकि किसान आगामी खरीफ सीजन में खाद की कमी और उस समय होने वाली मारामारी में उलझना नहीं चाहते. इसलिए उन्होंने ज्यादा स्टॉक खरीदा.
वहीं, कंपनियों ने भी ज्यादा खाद बेचने पर जोर दिया, क्योंकि उन्हें सब्सिडी कम होने का डर था. हालांकि, कैबिनेट ने 1 जनवरी को ही साफ कर दिया कि डीएपी पर सब्सिडी ऐसे ही जारी रहेगी और किसानों को 1350 रुपये में ही डीएपी का बैग मिलेगा. किसानों को अतिरिक्त बोझ नहीं झेलना होगा. सरकार अतिरिक्त खर्च वहन करेगी.
ताजा आंकड़ों के मुताबिक, यूरिया की बिक्री 111.14 लाख टन दर्ज की गई, जबकि एक साल पहले 98.13 लाख टन यूरिया बिका था. यानी इस बार 13.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई. वर्तमान आंकड़े समीक्षाधीन अवधि के हैं. वहीं, डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की बिक्री में भी बढ़ोतरी देखी गई है, जो 34.84 लाख टन से बढ़कर 40.13 लाख टन हो गई. इसके अलावा म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) 7.51 लाख टन और कॉम्प्लेक्स खाद की बिक्री 32.26 लाख टन से बढ़कर 47.19 लाख टन हो गई.
इस प्रकार इन सभी खादों की कुल बिक्री 205.97 लाख टन दर्ज की गई. एक साल पहले समान अवधि में इन खादों की बिक्री का कुल आंकड़ा 170.26 लाख टन था. ‘बिजनेसलाइन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी तरह विदेशों से आयात किए जाने वाले पोटाश पर भारत सरकार पहले ही सब्सिडी घटा चुका है, जिससे यह डीएपी से भी महंगा हो गया.
एक इंडस्ट्री एक्सपर्ट ने कहा कि अगर यूरिया या डीएपी के मामले में भी सरकार यही मॉडल लागू करती है तो अगले खरीफ सीजन में इनकी कीमतें भी थोड़ी बढ़ सकती हैं. कुछ साल पहले तक, डीएपी और एमओपी की कीमतें लगभग जैसी ही हुआ करती थीं, लेकिन सरकार ने डीएपी की कीमतें स्थिर रखन के लिए सब्सिडी बढ़ा दी और 50 किलो के बैग की कीमत 1350 रुपये पर बरकरार रखी. वहीं अन्य खादों की कीमत पर सब्सिडी घटने का असर पड़ रहा है.
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