भारतीय कृषि जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले कुछ वर्षों से चुनौतियों का सामना कर रही है.अचानक तापमान बढ़ने और सूखा पड़ने की परिस्थिति में खाद्य और पोषण सुरक्षा भारत के लिए एक अहम मुद्दा है. इसे बनाए रखना एक कठिन काम बन गया है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) जलवायु के अनुकूल फसल किस्मों को विकसित करने और उनका प्रसार करने के लिए निरंतर प्रयासरत है. इन फसलों में तापमान और वर्षा में उतार-चढ़ाव के प्रति सहनशीलता अधिक होती है और ये पानी और पोषक तत्वों के उपयोग में भी अधिक बेहतर होती हैं. जलवायु परिवर्तन के जोखिमों से निपटने के लिए सुरक्षा जाल तैयार करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में नई दिल्ली स्थित IARI, पूसा में ICAR द्वारा फसलों की विकसित 109 जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्मों का विमोचन किया. इसमें जलवायु परिवर्तन के दौर में गन्ना की फसल पर विपरीत प्रभाव को कम करने के लिए ICAR के संस्थानों ने जलवायु अनुकूल किस्में विकसित की गई हैं.
चीनी और गुड़ की मांग को पूरा करने के लिए अधिक गन्ना उत्पादन और अधिक चीनी प्राप्त करने वाली किस्मों की जरूरत है. देश में चीनी उद्योग तेजी से बढ़ रहा है और अब इसका उपयोग केवल चीनी और गुड़ तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसके इथेनॉल उत्पादन से ईंधन क्षेत्र में भी किया जा रहा है. वर्तमान में खेती की जा रही किस्म Co 238 कई समस्याओं से ग्रस्त है. इसलिए इन समस्याओं के समाधान के लिए गन्ना शोध संस्थान भी काम कर रहे हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन के दौर में संभावित पैदावार और चीनी उत्पादन को बढ़ाया जा सके. ICAR ने कृषि जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त 4 नई गन्ना किस्मों की खोज की है, जिन्हें ICAR के गन्ना अनुसंधान संस्थानों के कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन नई किस्मों का विमोचन किया, जो जलवायु परिवर्तन के दौर में किसानों के लिए लाभकारी साबित होंगी.
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कर्ण-17 एक जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त गन्ना किस्म है. यह हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, मध्य और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. इस किस्म की पैदावार प्रति हेक्टेयर 91.48 टन है और यह 330 से 360 दिन में तैयार हो जाती है. इसमें चीनी की मात्रा 18.38 प्रतिशत है और यह लाल सड़न रोग के प्रति प्रतिरोधी है. यह तना छेदक, स्टलक बोरर और चोटी बेधक कीटों से भी कम प्रभावित होती है. इस किस्म को गन्ना प्रजनन संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र करनाल के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है.
कोलख 16202 जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्म है, जिसे भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित किया गया है. यह किस्म अगेती है और लगभग 10 महीने में तैयार हो जाती है. इसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर 93.2 टन है और चीनी की रिकवरी 17.74 प्रतिशत है. यह सूखे और लाल सड़न के प्रति प्रतिरोधी है. इसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है.
कोलख 16470 एक जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्म है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम के लिए उपयुक्त है. इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 82.5 टन है और इसमें चीनी की मात्रा 17.37 प्रतिशत है. यह किस्म जलभराव वाले क्षेत्रों के लिए बेहतर है और लाल सड़न और स्मट रोग के प्रति प्रतिरोधी है. यह गन्ने के मुख्य कीटों के हमलों के प्रति कम संवेदनशील है.
गन्ना की CoPb 99 किस्म एक जलवायु अनुकूल और जैव-सशक्त किस्म है, जिसे पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना के गन्ना शोध केंद्र कपूरथला के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया है. यह जल्दी पकने वाली और अधिक उपज देने वाली किस्म है, जिसे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिंचित क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया है. इसकी उपज क्षमता प्रति हेक्टेयर 90.1 टन है और चीनी की मात्रा 18.01 प्रतिशत है. यह तना छेदक और चोटी बेधक कीटों के हमलों के प्रति कम संवेदनशील है और लाल सड़न रोग के प्रति भी प्रतिरोधी है.
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प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर कृषि और ग्रामीण विकास के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया और बताया कि यह पहल भारतीय किसानों की जीवन गुणवत्ता में सुधार के लिए की गई है. इन नई किस्मों के माध्यम से भारत में फसल उत्पादन को और अधिक स्थिर और लाभकारी बनाने की दिशा में अहम कदम उठाए गए हैं.
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