बिहार के रोहतास जिला को धान का कटोरा कहा जाता है. यहां के किसान धान की उन्नत किस्मों की पैदावार के लिए जाने जाते हैं. इस जिले की सोनाचूर चावल काफी मशहूर चावल है. लेकिन, जायद सीजन में उगाया जाने वाला रोहतास का एक और धान काफी फेमस है. इस धान का नाम गरमा है. गरमा धान सामान्य धान से थोड़ा अलग होता है. इस धान की खासियत यह है की यह कम लागत और कम समय में तैयार हो जाता है और किसान इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं. आइए जानते हैं कैसे की जाती है गरमा धान की खेती.
रबी का फसल कटते ही इस धान की रोपाई शुरू हो जाती है और खरीफ सीजन आने से पहले ही यानी सिर्फ 2 महीने के अंदर गरमा धान पक कर तैयार हो जाता है. इसकी अगेती बुवाई फरवरी में और पछेती बुवाई मई के आखिर में की जाती है और जुलाई के आखिर या अगस्त के पहले सप्ताह तक पूरी तरीके से पक जाता है.
गरमा धान की खेती के लिए पहले उसके बीज को तैयार किया जाता है. इसके बीज को तैयार होने में भी अन्य धान की तुलना में कम समय लगता है. बीज तैयार हो जाने के बाद खेत तैयार करके इसकी बुवाई की जाती है. बुवाई के समय इसके पौधे को 15 सेंटीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए.
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बहरहाल गरमा धान की खेती रोहतास जिले के अलावा झारखंड में भी की जाती है. इस धान का डिमांड पश्चिम बंगाल में काफी ज्यादा है. वहां के व्यापारी इस धान की खरीदारी सबसे अधिक करते हैं. क्योंकि वहां इससे बने चूड़े की काफी डिमांड है. इस धान से बना चूड़ा अच्छा होता है.
गरमा धान की खेती करने से किसानों को कम समय में अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है. क्योंकि किसान रबी से खरीफ सीजन के बीच के समय में दो फसल का पैदावार कर लेते हैं. वहीं किसान भी मानते हैं कि उनका गरमा धान के खेती का मकसद कम समय में अधिक मुनाफा कमाना है. इसे देखकर अब धीरे-धीरे अगल-गल के जिलों में भी किसान इसकी खेती करने लगे हैं.
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