
खेती में अक्सर किसान NPK यानी नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश पर ही ध्यान देते हैं, लेकिन आज की बदली हुई मिट्टी और बढ़ती पैदावार की जरूरतों के बीच सिर्फ NPK काफी नहीं है. विशेषज्ञ मानते हैं कि सल्फर (S), जिंक (Zn) और बोरॉन (B) तीन ऐसे पोषक तत्व हैं, जिनका सही संतुलन फसलों में बंपर उपज का फॉर्मूला बन चुका है. लगातार एक जैसी खेती, रासायनिक उर्वरकों का ज्यादा इस्तेमाल और जैविक पदार्थों की कमी के कारण भारतीय मिट्टियों में इन सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी तेजी से बढ़ रही है. यही वजह है कि खेत में मेहनत के बावजूद उत्पादन नहीं बढ़ पा रहा.
अगर किसान सच में बंपर उपज चाहते हैं, तो उन्हें सिर्फ NPK तक सीमित नहीं रहना चाहिए. मिट्टी जांच के आधार पर S, Zn और B का सही इस्तेमाल करके कम लागत में ज्यादा उत्पादन हासिल किया जा सकता है. यही तीन पोषक तत्व आज की खेती में बंपर पैदावार का असली फॉर्मूला बन चुके हैं. सल्फर, जिंक और बोरॉन तीनों मिलकर पौधे के संपूर्ण विकास में मदद करते हैं. सल्फर गुणवत्ता बढ़ाता है, जिंक ग्रोथ को मजबूत करता है और बोरॉन फूल व फल को सहारा देता है. जब ये तीनों पोषक तत्व संतुलित मात्रा में मिलते हैं, तभी फसल अपनी पूरी क्षमता से उत्पादन देती है.
सल्फर को फसल का चौथा प्रमुख पोषक तत्व माना जाता है. यह पौधों में प्रोटीन, तेल और एंजाइम के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है. तिलहन, दलहन, प्याज, लहसुन और सरसों जैसी फसलों में सल्फर की जरूरत ज्यादा होती है. सल्फर की कमी से पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं, पौधे कमजोर रह जाते हैं और दानों या फल का आकार छोटा रह जाता है. सही मात्रा में सल्फर देने से फसल की गुणवत्ता सुधरती है और उत्पादन में साफ बढ़ोतरी होती है.
जिंक पौधों की शुरुआती बढ़वार के लिए बेहद जरूरी है. यह हार्मोन के निर्माण में मदद करता है और जड़ों को मजबूत बनाता है. गेहूं, धान, मक्का और सब्जियों में जिंक की कमी आम समस्या बन चुकी है. जिंक की कमी होने पर पत्तियों पर पीले धब्बे पड़ते हैं, पौधे बौने रह जाते हैं और बालियां या फल ठीक से विकसित नहीं हो पाते. खेत में जिंक सल्फेट या जिंक युक्त उर्वरक देने से पौधों की ग्रोथ तेज होती है और उपज में सुधार दिखता है.
बोरॉन की भूमिका फूल बनने, परागण और फल सेटिंग में बहुत अहम होती है. फलदार फसलों, सब्जियों और तिलहन में बोरॉन की कमी से फूल झड़ने लगते हैं और फल टेढ़े-मेढ़े बनते हैं. अगर बोरॉन सही मात्रा में मिले तो फूल ज्यादा आते हैं, फल बेहतर तरीके से सेट होते हैं और वजन भी बढ़ता है. इससे सीधे तौर पर किसान की पैदावार और आमदनी बढ़ती है.
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