जैविक खेती में केंचुआ का बड़ा रोल है. केंचुआ प्राचीन काल से ही किसान का मित्र रहा है. वही दुनियाभर के काफी किसान रासायनिक खेती छोड़कर जैविक खेती पर शिफ्ट हो रहे हैं. जिसमें जान डालने का काम वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद कर रहा है. दरअसल, वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं. वहीं खेतों में वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद के इस्तेमाल से फसल की क्वालिटी और उपज दोनों ही अच्छी हो जाती है. साथ ही जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ जाती है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि बहुत ही कम समय और कम कीमत में तैयार हो जाता है. ऐसे में आइए आज वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद के फायदे के बारे में विस्तार से जानते हैं-
वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद मिट्टी और फसलों के लिए सभी तरह से फायदेमंद साबित होता है. वही खेत में इस्तेमाल करने पर इसके कई लाभ मिलते हैं. ऐसे में आइए आज वर्मी कम्पोस्ट या केंचुआ खाद के बारे में विस्तार से जानते हैं-
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• वर्मीकम्पोस्ट का खेतों में इस्तेमाल करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है.
• वर्मी कम्पोस्ट के इस्तेमाल से मिट्टी की जल धारण की क्षमता बढ़ने लगती है, नतीजतन खेत में नमी अधिक दिनों तक बनी रहती है.
• खेत की मिट्टी का तापमान सामान्य रहता है.
• वर्मी कम्पोस्ट का इस्तेमाल करने से मिट्टी में जीवाणुओं की संख्या में बढ़ोतरी होती है.
• वर्मी कम्पोस्ट खाद के इस्तेमाल से मिट्टी प्रदूषित नहीं होती है.
• वर्मी कम्पोस्ट की वजह से उत्पादकता में बढ़ोतरी हो जाती है.
• वर्मी कम्पोस्ट का इस्तेमाल करने से प्रकृति को किसी भी प्रकार से कोई नुकसान नहीं पहुंचता है.
• वर्मी कम्पोस्ट बनाने में अपशिष्ट पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है, नतीजतन आसपास के परिवेश में प्रदूषण नहीं फैलता है.
• वर्मी कम्पोस्ट भूमि के गिरते जल स्तर को रोकने में मददगार है.
• वर्मीकम्पोस्ट के इस्तेमाल से वायु और भूमि दोनों ही प्रदूषण में कमी आती है.
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• वर्मी कंपोस्ट किसानों के लिए फायदेमंद है, क्योंकि इसका इस्तेमाल करने से लागत में कमी आती है.
• वर्मी कंपोस्ट के इस्तेमाल से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है.
• वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल करने के दौरान किसानों को किसी भी प्रकार से कोई हानि नहीं होती है.
• रासायनिक उवर्रक की बाजार में अकसर कमी रहती है. वहीं वर्मी कंपोस्ट के इस्तेमाल से रासायनिक उर्वरकों से निर्भरता में कमी आती है.
• किसानों को अधिक सिंचाई करने की जरूरत नहीं पड़ती है.
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