वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक कई विशेष किस्म की सब्जियां विकसित कर चुके हैं. 1992 से कार्यरत भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के द्वारा अब तक 100 से ज्यादा सब्जियों की किस्म को विकसित किया जा चुका है, इनमें से सेम की एक विशेष किस्म भी शामिल है. संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राकेश कुमार दुबे द्वारा विकसित की गई सेम की इस किस्म की विशेषता ये है कि इसके फल के साथ ही इसकी जड़ और पत्तियों को भी खाया जा सकता है. इसे काशी अन्नपूर्णा नाम दिया गया है. इसे मल्टीपरपज सेम या पखिया सेम भी कहा जाता है.
इसमें किसी भी सब्जी के मुकाबले कई गुना ज्यादा प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है. यह किस्म उन इलाकों के लिए खास तौर पर विकसित की गई है जहां पर पोषण की कमी होती है, जिसके चलते बच्चों, महिलाओं में कुपोषण की समस्या होती है. फिलहाल सेम की यह प्रजाति किसानों के लिए उपलब्ध है.
सामान्य सेम के आकार से दो से 3 गुना बड़ा और स्टार रूप में पखिया सेम दिखाई देती है. इस किस्म की सेम को विकसित करने में डॉ राकेश कुमार दुबे को 5 साल का समय लगा. किसान तक से बात करते हुए डॉ राकेश कुमार दुबे ने बताया इसे 4 रंग में विकसित किया गया है. पखिया सेम ग्रीन, डार्क ग्रीन, डार्क ब्राउन और डार्क पर्पल रंग में मौजूद है. इस सेम की सबसे बड़ी खूबी है कि यह देश की ऐसी इकलौती सब्जी है, जिसके जड़ से लेकर पत्तियों तक सब कुछ खाया जाता है. इसके हर भाग में प्रोटीन पाया जाता है. वही इस सब्जी की खेती करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकता है. क्योंकि यह सब्जी सामान्य सेम के मुकाबले 3 से 4 गुना ज्यादा दाम पर बिकती है.
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पखिया सेम पोषक तत्वों से भरपूर है. इसमें सामान्य सब्जियों के मुकाबले 3 से 4 गुना ज्यादा प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है. वही इसमें एंटीऑक्सीडेंट भी पाया जाता है. इस सेम में फेनोल, फ्लेवनोइड और विटामिन की भरपूर मात्रा पाई जाती है. इसके तेल में टोकोफेरोल्स पाया जाता है. यह फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है. इस सब्जी के बीज में काफी मात्रा में तेल होता है. प्रोटीन के लिए इस्तेमाल होने वाली अरहर की दाल से भी यह काफी सस्ती है. इस सेम की जड़ शकरकंद जैसी होती है. वहीं इसकी पत्तियों को पालक की तरह खाया जा सकता है. इसी वजह से इसे भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के द्वारा काशी अन्नपूर्णा नाम दिया गया.
डॉ राकेश कुमार दुबे ने किसान तक से बात करते हुए बताया कि सेम की इस किस्म का विकास करने का सबसे मुख्य मकसद था बच्चों और महिलाओं में प्रोटीन की कमी को पूरा किया जाए. यह सेम खासतौर से पूर्वोत्तर और आदिवासी इलाकों में प्रोटीन की कमी को पूरा कर रही हैं. फिलहाल काशी अन्नपूर्णा के नाम से यह किस्म किसानों के लिए उपलब्ध है. कोई भी किसान इसका बीज भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी के माध्यम से प्राप्त कर सकता है.
पखिया सेम को विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ राकेश कुमार दुबे बताते हैं कि यह सब्जी को न तो ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है और नहीं ज्यादा उर्वरक की. यहां तक कि इस पर सब्जियों में लगने वाली बीमारी का असर भी नहीं होता है. इसी वजह से यह कम खर्च में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है. जबकि दलहनी फसलों में अगर 2 दिन पानी लग जाए तो पौधे सड़ने लगते हैं. लेकिन, यह सेम पर ज्यादा पानी का भी असर नहीं होता है. इसे घर के गार्डन और गमले में भी उगाया जा सकता है. इस फसल फलियों की उपज ढाई सौ से 300 कुंतल प्रति हेक्टेयर है.
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