भारत के बायो-टेक रेग्युलेटर से जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) सरसों के बीज उत्पादन और परीक्षण के लिए पर्यावरणीय मंजूरी मिल चुकी है. वहीं मंजूरी मिलने के बाद से ही इसको लेकर विवाद छिड़ा हुआ है. कई किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं. ये मामला अब सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है. मंगलवार को सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रोड्रिग्स और एनजीओ 'जीन कैंपेन' द्वारा जीएम सरसों को लेकर दाखिल की गई अलग-अलग याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जिस पर कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि जोखिम कारक परेशान करने वाले हैं.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जीएम सरसों की पर्यावरणीय रिलीज से पहले जोखिम कारकों के बारे में चिंता जाहिर करते हुए कहा कि जब जीएम सरसों को पर्यावरणीय रूप से जारी करने के लिए केंद्र द्वारा दी गई सशर्त मंजूरी की बात आती है, तो वह किसी भी अन्य चीज की तुलना में जोखिम कारकों के बारे में अधिक चिंतित है.
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सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रोड्रिग्स और एनजीओ ‘जीन कैंपेन की अलग-अलग याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई. याचिकाओं में किसी भी आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों या फसलों पर रोक लगाने की मांग की गई है. इसमें कहा गया है कि ऐसी फसलें पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है.
वहीं केंद्र सरकार की तरफ से जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बीवी नागरथना की बेंच के समक्ष पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने जीएम सरसों डीएमएच-11 को पर्यावरण के लिए जारी करने की सशर्त मंजूरी की समयसीमा का जिक्र करते हुए कहा कि सभी प्रासंगिक पहलुओं पर विचार किया गया है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 25 अक्टूबर 2022 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने डीएमएच-11 को मंजूरी दी थी.
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जीएम सरसों को भारतीय किस्म वरुणा की क्रॉसिंग पूर्वी यूरोप की किस्म अर्ली हीरा – 2 से करा कर तैयार किया गया है. सरसों की इस किस्म को लेकर दावा किया गया है कि डीएमएच-11 की उपज वरुणा से 28 प्रतिशत ज्यादा पाई गई. वहीं सरकार की मानें तो इससे खाद्यान तेलों के निर्यात में भी तेजी से इजाफा होगा.
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