भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के सचिव और डीजी डॉ. हिमांशु पाठक ने शुक्रवार को जीएम सरसों के बारे में विस्तृत जानकारी दी. इसे लेकर कई दिनों से विरोध चल रहा है क्योंकि जीएम सरसों को जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी (GEAC) ने पर्यावरणीय मंजूरी दी है. इस सरसों का नाम डीएमएच 11 है. इस मुद्दे ने बहुत लोगों का ध्यान खींचा है क्योंकि इसके खिलाफ व्यापक विरोध चल रहा है. हिमांशु पाठक ने जीएम सरसों को लेकर आम लोगों में फैलाई गई भ्रम की स्थिति पर अपनी राय रखी.
हिमांशु पाठक ने बताया कि आधुनिक और आयुर्वेदिक विज्ञान, पर्यावरण और पारिस्थितिकी सहित कृषि, स्वास्थ्य के क्षेत्रों में विशेषज्ञता वाली सभी राष्ट्रीय एजेंसियां और पब्लिक रिसर्च सिस्टम ने मनुष्यों, जानवरों और पर्यावरण पर इसके जोखिमों का आकलन किया है और इसे सुरक्षित बताया है. यह खेती करने, खाने और फीड के इस्तेमाल के लिए पूरी तरह सुरक्षित है. आईसीएआर ने यह भी बताया कि एक भ्रम यह भी फैलाया जा रहा है कि डीएमएच 11 हर्बीसाइड को बढ़ावा देगा जिससे मल्टीनेशनल कंपनियों को फायदा होगा, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है. आईसीएआर देश में जीएम फसलों की रिसर्च पर बहुत पहले से लगा हुआ है जिसमें कपास, पपीता, बैंगन, केला, चना, अरहर, आलू, ज्वार, ब्रासिका, चावल आदि शामिल हैं.
पाठक ने कहा कि भारत की कृषि में बदलावों के लिए जीएम टेक्नोलॉजी में बहुत क्षमता है. देश में अभी खाद्य तेलों के उत्पादन, जरूरत और आयात पर विशेष गौर करना जरूरी है. घरेलू जरूरत को पूरा करने के लिए खाद्य तेलों का बड़े पैमाने पर आयात किया जा रहा है. 2021-22 के दौरान भारत ने 14.1 मिलियन टन खाद्य तेलों के आयात पर 1,56,800 करोड़ रुपये खर्च किए, जिनमें मुख्य रूप से ताड़, सोयाबीन, सूरजमुखी और कनोला तेल शामिल हैं. यह मात्रा भारत के 21 मिलियन टन के कुल खाद्य तेल खपत के दो-तिहाई के बराबर है. इसलिए, कृषि से जुड़े आयात पर विदेशी मुद्रा बाहर जाने को कम करने के लिए खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता बहुत जरूरी है.
रेपसीड-सरसों भारत में 9.17 मिलियन हेक्टेयर में उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जिसका कुल उत्पादन 11.75 मिलियन टन (2021-22) है. हालांकि यह फसल दुनिया के औसत (2000 किग्रा/हेक्टेयर) की तुलना में कम उत्पादकता (1281 किग्रा/हेक्टेयर) से जूझ रही है. देश में सामान्य रूप से तिलहनी फसलों और विशेष रूप से भारतीय सरसों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए डिसरप्टिव टेक्नोलॉजी की सफलता जरूरी है. जीएम टेक्नोलॉजी इसी डिससप्टिव टेक्नोलॉजी का रूप है जिसमें किसी फसल की किस्म में खास बदलाव किया जाता है ताकि उत्पादन की समस्या दूर की जा सके.
उपज बढ़ाने के लिए हाइब्रिड बीजों का भी उपयोग होता है जिससे अच्छा उत्पादन मिलता है. इसमें चावल, पर्ल मिलेट, सूरजमुखी और कई तरह की सब्जियों में अच्छी सफलता देखी गई है. ऐसा देखा गया है कि परंपरागत किस्मों से 20-25 परसेंट अधिक उत्पादन हाइब्रिड बीजों से मिल जाता है. दूसरी ओर जीएम फसलों में बार्नेज और बारस्टार सिस्टम का उपयोग होता है जो दोनों जीन हैं. बार्नेज/बारस्टार सिस्टम सरसों में हाइब्रिड बीज उत्पादन के लिए एक अच्छी विधि देती है और इसे कई दशकों से कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों में सफलतापूर्वक लागू किया गया है.
जीएम सरसों की वेरायटी डीएमएच-11 की तीन साल तक टेस्टिंग की गई है. भारत की कई जगहों पर सीमित दायरे में इसकी टेस्टिंग की गई है. फील्ड ट्रायल में यह देखा गया कि इंसानों और पर्यावरण पर इसका क्या प्रभाव होता है. राष्ट्रीय स्तर पर फील्ड ट्रायल से पता चला कि डीएमएच-11 बाकी वेरायटी से 28 परसेंट अधिक उपज देती है. हालांकि अभी इसके बीज तैयार करने और इसकी बुआई से जुड़े परीक्षण करने की इजाजत दी गई है. यह एक तरह से पर्यावरणीय मंजूरी है. अगर आईसीएआर को लगता है कि यह बाकी वेरायटी से अधिक उपज देगी, तभी इसे व्यावसायिक खेती के लिए मंजूरी दी जाएगी. जीईएसी ने अभी सिर्फ बीज तैयार करने और बुआई से जुड़े परीक्षण की इजाजत दी है. लेकिन इसके बारे में भ्रम फैलाया जा रहा है.
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