रूस-यूक्रेन युद्ध में खाद की मुनाफाखोरी कर रहीं विदेशी कंपनियां, भारत ने जताई नाराजगी

रूस-यूक्रेन युद्ध में खाद की मुनाफाखोरी कर रहीं विदेशी कंपनियां, भारत ने जताई नाराजगी

मनसुख मांडविया ने कहा, कोविड-19 के संकट काल में भारत ने दुनिया के 150 देशों में दवा की सप्लाई की. अगर भारत सरकार चाहती तो अपने हिसाब से दवाओं के दाम तय कर सकती थी. बढ़ा-चढ़ा सकती थी क्योंकि दुनिया में ये दवाएं कहीं उपलब्ध नहीं थीं. लेकिन हमने ऐसा नहीं किया. हमने दुनिया की मदद क्योंकि यह संकट वैश्विक था. हमें लगता है कि ऐसी विकट परिस्थिति में हमें मदद करनी चाहिए.

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रूस-यूक्रेन युद्ध में खाद की मुनाफाखोरी कर रहीं विदेशी कंपनियां, भारत ने जताई नाराजगीदुनिया के बाजारों में बढ़े खाद के दाम (सांकेतिक तस्वीर)

जब से रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ है तब से पूरी दुनिया में खादों की मारामारी है. रूस रासायनिक खादों का बहुत बड़ा सप्लायर है. रूस का पड़ोसी बेलारूस भी इसी कैटेगरी में आता है. और भी कई देश हैं जो भारत सहित कई देशों को उर्वरक निर्यात करते हैं. लेकिन युद्ध के चलते रूस पर तमाम तरह की पाबंदियां लगी हैं. इस वजह है रूस की खाद दुनिया के लिए महंगी पड़ रही है. युद्ध की आड़ में और भी कई देश हैं जिन्होंने खादों के दाम बढ़ा दिए हैं. इन विदेशियों ने 'आपदा में अवसर' तलाशते हुए भीषण युद्ध के बीच खादों की महंगाई कर दी है. इससे भारत जैसे देशों को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है. ऐसी कंपनियों को भारत ने आड़े हाथों लिया है और कहा है कि संकट के समय में अनुचित मुनाफे के लिए काम करना किसी भी नजरिये से सही नहीं है.

नई दिल्ली में बुधवार को फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FAI) की वार्षिक बैठक की शुरुआत हुई. इसमें उद्घाटन भाषण देते हुए देश के उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया ने खाद कंपनियों की मुनाफाखोरी पर पूरी दुनिया का ध्यान केंद्रित किया. मांडविया ने कहा, कोविड-19 के संकट काल में भारत ने दुनिया के 150 देशों में दवा की सप्लाई की. अगर भारत सरकार चाहती तो अपने हिसाब से दवाओं के दाम तय कर सकती थी. बढ़ा-चढ़ा सकती थी क्योंकि दुनिया में ये दवाएं कहीं उपलब्ध नहीं थीं. लेकिन हमने ऐसा नहीं किया. हमने दुनिया की मदद क्योंकि यह संकट वैश्विक था. हमें लगता है कि ऐसी विकट परिस्थिति में हमें मदद करनी चाहिए.

कोरोना काल में भारत ने की मदद

मनसुख मांडविया ने आगे कहा, लेकिन कोविड महामारी के बाद खादों की कीमतों के साथ क्या हो रहा है. युद्ध भी किसी तरह से जायज नहीं है. दुनिया में यूरिया के दाम दिसंबर 2021 में लगभग 1,000 डॉलर तक पहुंच गए जबके अप्रैल 2021 में इसकी कीमत 400 डॉलर प्रति टन था. डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) की कीमतें जुलाई 2022 में 945 डॉलर पर पहुंच गईं. हालांकि अभी कीमतें कुछ नरम पड़ी हैं. मंडाविया ने साफ कर दिया कि आने वाले दिनों में भारत खादों के लिए ऐसे देश को चुनेगा जिसकी नीतियां साफ-सुथरी हों, न कि दाम में उतार-चढ़ाव करने वाली हों. उर्वरक मंत्री ने साफ किया कि भारत रासायनिक खादों के विकल्प पर तेजी से काम कर रही है.

मुनाफाखोरी कर रहीं खाद कंपनियां

उर्वरक मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि पिछले एक साल में खादों के दाम जिस तरह से बढ़े हैं, वह बाजार से प्रेरित नहीं है. वे कहते हैं, यह किसी भी सेक्टर के लिए ठीक नहीं कि जब एक देश या कोई एक कंपनी दाम तय करे. दाम का निर्धारण हमेशा बाजार को ही करना चाहिए. हो सकता है कि किसी कंपनी या देश को इससे फौरी फायदा हो, लेकिन बाद में इसके रिजल्ट काउंटर प्रोडक्टिव होंगे. खासकर इसलिए कि भारत केमिकल फर्टिलाइजर की तरफ तेजी से बढ़ रहा है. भारत ने नियम-कानूनों में कई सुधार किए हैं ताकि किसानों को सही रेट पर उर्वरक मिल सके. इसके लिए सरकार ने उर्वरक सब्सिडी में इजाफा किया है. कोरोना से पहले सब्सिडी 11.29 अरब डॉलर थी जिसे 2020-21 में 17.50 अरब डॉलर किया गया. 2021-22 में यह सब्सिडी बढ़कर 18.79 अरब डॉलर कर दी गई. मौजूदा वर्ष में यह बढ़कर 28.98 अरब डॉलर तक रहने की उम्मीद है.

 

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