देश में खादों की बिक्री में बड़ा उछाल देखा जा रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस वित्त वर्ष की पहली छमाही यानी कि अप्रैल से सितंबर तक खादों की बिक्री में 12 परसेंट की वृद्धि हुई है. एक ताजा आधिकारिक आंकड़े के मुताबिक, सभी खादों की बिक्री 319 लाख टन से भी अधिक हो गई है. पहले यह बिक्री 282 लाख टन हुआ करती थी. एक साल पहले इसी अवधि में देश में 282 लाख टन खादों की बिक्री हुई थी जबकि इस साल अप्रैल-सितंबर के दौरान यह बिक्री 319 लाख टन पर पहुंच गई है.
देश में सबसे अधिक यूरिया की खपत होती है. इसकी बिक्री में लगभग सात परसेंट की वृद्धि है जो कि पिछले साल के 172 लाख टन के मुकाबले इस साल 184 लाख टन में पहुंच गई है. हालांकि सबसे अधिक डाइ अमोनियम फॉस्फेट यानी कि DAP की बिक्री हुई है. डीएपी की बिक्री में 24 फीसद से अधिक का उछाल है. पिछले साल डीएपी 51.50 लाख टन बिका था जो कि इस साल बढ़कर 64 लाख टन पर पहुंच गया.
इसके बाद म्यूरिएट ऑफ पोटाश यानी कि MOP है जिसकी बिक्री में नौ फीसद का उछाल है. पिछले साल के 07 लाख टन के मुकाबले इस साल इसकी बिक्री 7.72 लाख टन हुई है. कॉम्पलेक्स खाद की बिक्री 23 फीसद की उछाल में है और 52 लाख टन से 65 लाख टन पर पहुंच गई है. कॉम्पलेक्स खाद का अर्थ है नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और सल्फर की मिलीजुली खाद. इस खाद की बिक्री में अच्छी-खासी बढ़ोतरी है.
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'एक राष्ट्र एक उर्वरक' योजना के तहत सिंगल 'भारत' ब्रांड लॉन्च करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इस कदम से खादों के गैर-जरूरी उपयोग में कटौती करने में मदद मिलेगी. हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक कीमतों को उचित नहीं बनाया जाता, तब तक खादों के संतुलित उपयोग का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता है.
खादों की बिक्री में आए उछाल के बारे में कृषि वैज्ञानिक एसके सिंह 'बिजनेसलाइन' से कहते हैं, यह चौंकाने वाली बात है कि खादों की बिक्री में उछाल तब दर्ज किया गया है जब इस बार मॉनसून सही नहीं रहा है. यहां तक कि 1901 के बाद इस बार मासिक बारिश सबसे कम रही है. चूंकि खादों की बिक्री पूरी तरह से बारिश पर निर्भर करती है, इसलिए इस साल खादों की बिक्री घटनी चाहिए थी, लेकिन इसमें तेजी आना चौंकाने वाली बात है.
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