किसानों को महंगा पड़ रहा पोटाश, सब्सिडी घटने से बिक्री में भी आई गिरावट

किसानों को महंगा पड़ रहा पोटाश, सब्सिडी घटने से बिक्री में भी आई गिरावट

अभी पोटाश का दाम 1700-1750 रुपये प्रति बोरी (50 किलो) है. जबकि डीएपी 1350 रुपये और यूरिया 242 रुपये में मिल रही है. यूरिया पर सरकार सबसे अधिक सब्सिडी दे रही है. चूंकि पोटाश का दाम पहले से अधिक बढ़ गया है, इसलिए बिक्री गिरकर 13.98 लाख टन पर आ गई है.

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किसानों को महंगा पड़ रहा पोटाश, सब्सिडी घटने से बिक्री में भी आई गिरावटपोटाश पर सब्सिडी में कमी, बिक्री में भी आई गिरावट (सांकेतिक तस्वीर-iffco)

देश में पोटाश की बिक्री में कमी देखी जा रही है. इसकी मुख्य वजह है पोटाश पर सरकारी सब्सिडी का पहले से कम होना. इससे म्यूरिएट ऑफ पोटाश यानी कि M0P की बिक्री पर गंभीर असर पड़ा है. एक सरकारी एडवाइजरी पर गौर करें तो पता चल जाएगा कि पोटाश की कमी से किसानों को कितना दो-चार होना पड़ रहा है. कुछ दिन पहले सरकार ने एक एडवाइजरी जारी कर कहा था कि बढ़ते तापमान से गेहूं को बचाने के लिए पोटाश स्प्रे का छिड़काव करें. मगर किसानों को छिड़काव के लिए पोटाश नहीं मिल पा रहा है.

पोटाश की बिक्री घटने के पीछे सब्सिडी पॉलिसी में हालिया बदलाव को वजह बताया जा रहा है. यह पॉलिसी यूरिया और डाई अमोनियम फॉस्फेट के पक्ष में ज्यादा है. इस वजह से पोटाश पर सब्सिडी घट गई है. सब्सिडी घटते ही इसकी बिक्री गिर गई है क्योंकि किसानों को अब यह महंगा पड़ रहा है.

ऐसे में किसानों के सामने बड़ा सवाल ये है कि बढ़ते तापमान के प्रभाव से वे अपनी फसलों, खासकर गेहूं का बचाव कैसे करें. गेहूं पर तापमान का असर कम करने के लिए कृषि वैज्ञानिक पोटाश स्प्रे करने और सिंचाई करने की सलाह देते हैं. लेकिन जब पोटाश पर सब्सिडी कम मिल रही है, उसकी बिक्री कम हो गई है, तो किसान भला कैसे उसे खरीदेंगे और खेतों में इस्तेमाल करेंगे.

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'बिजनेसलाइन' की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कम पोटाश की सप्लाई से सबसे ज्यादा प्रभावित छोटे और सीमांत किसान हुए हैं. मौजूदा वित्त वर्ष में पोटाश की बिक्री 37 फीसद तक कम हो गई है. 

एक उच्च स्तरीय समिति ने किसानों को सलाह दी है कि 200 लीटर पानी में 400 ग्राम एमओपी मिलाकर गेहूं पर छिड़काव करें. इस पैनल ने पोटाश का एक विकल्प भी किसानों को दिया है. इस सलाह के मुताबिक, चार ग्राम पोटैसियम नाइट्रेट (KNO3) को 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करें तो पोटाश की कमी पूरी की जा सकती है.

हैदराबाद स्थित सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ड्राइलैंड एग्रीकल्चर ने पिछले साल एक पायलट प्रोजेक्ट में बताया था कि गेहूं पर पोटाश का स्प्रे करने से बढ़ते तापमान का असर कम किया जा सकता है. पोटाश में पाया जाने वाला पोषक तत्व गेहूं के पौधे में ऑस्मो-रिवॉल्यूशन करता है जिससे तापमान से होने वाला प्रभाव कम हो जाता है. इसके बाद सरकारी एडवाइजरी जारी कर किसानों को गेहूं पर पोटाश का छिड़काव करने की सलाह दी गई. लेकिन अब किसान पोटाश की कमी से जूझ रहे हैं.

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अभी पोटाश का दाम 1700-1750 रुपये प्रति बोरी (50 किलो) है. जबकि डीएपी 1350 रुपये और यूरिया 242 रुपये में मिल रही है. यूरिया पर सरकार सबसे अधिक सब्सिडी दे रही है. चूंकि पोटाश का दाम पहले से अधिक बढ़ गया है, इसलिए बिक्री गिरकर 13.98 लाख टन पर आ गई है. यह आंकड़ा मौजूदा वित्त वर्ष के अप्रैल-जनवरी का है. ठीक एक साल पहले इसी अवधि में पोटाश की बिक्री 22.29 लाख टन थी.

इसी तरह पोटाश के आयात में 5.8 परसेंट की गिरावट है जो 10.93 लाख टन पर पहुंच गई है. 10 महीने पहले इसका आयात 14.78 लाख टन हुआ करता था. 

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पिछले साल नवंबर में सरकार ने रबी सीजन की फसलों के लिए पोषक तत्वों पर आधारित सब्सिडी पॉलिसी का ऐलान किया. इस पॉलिसी में फॉस्फोरस और पोटाश की सब्सिडी को खरीफ की तुलना में कम कर दिया गया. ऐसे में जो किसान खरीद भी सकते हैं वे पोटाश खरीदने से कतरा रहे हैं क्योंकि उन्हें डीएपी 400 रुपये सस्ता मिल रहा है. पोटाश की महंगाई के चलते किसान डीएपी से काम चला रहे हैं.

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