
मृदा विशेषज्ञ डॉ. आशीष राय ने कहा है कि आधुनिक खेती में अधिक रासायनिक खादों और कीटनाशकों के लगातार इस्तेमाल से केंचुओं की संख्या में भारी कमी आई है. जिस जमीन में केंचुए नहीं पाए जाते हैं उससे यह स्पष्ट होता है कि वह मिट्टी अब अपनी उर्वरा शक्ति खो रही है. वो अब ऊसर भूमि के रूप में बदल रही है. ऐसे में किसानों को सावधान होने की जरूरत है. वरना खेती खराब हो गई तो बहुत मुश्किल होगी. उत्पादन कम हो जाएगा. दरअसल, केंचुआ कृषि में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान भूमि सुधार के रूप में देता है. जब खादों और कीटनाशकों का बहुत कम इस्तेमाल होता था तब जमीन में केंचुए पाए जाते थे. बारिश के मौसम में केंचुए खेतों में देखे जाते थे. यह इनकी संख्या इतनी कम हो गई है कि खेत में दिखते ही नहीं.
केंचुआ मिट्टी में पाए जाने वाले जीवों में सबसे प्रमुख है. ये अपने आहार के रूप में मिट्टी तथा कच्चे जीवांश को निगलकर अपनी पाचन नलिका से गुजारते हैं जिससे वह महीन कंपोस्ट में परिवर्तित हो जाते हैं. फिर अपने शरीर से बाहर छोटी-छोटी कास्टिग्स के रूप में निकालते हैं. इसीको वर्मी कंपोस्ट कहा जाता है. केंचुए मिट्टी से खत्म हो गए लेकिन आप वर्मी कंपोस्ट बना सकते हैं.
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बिहार के पूर्वी चंपारण स्थित कृषि विज्ञान केंद्र, परसौनी में कार्यरत डॉ. राय ने बताया कि वर्मीकल्चर के लिए उपयुक्त पात्र का चुनाव करने के बाद उसमें छोटे-छोटे छिद्र कर दिए जाते हैं. ताकि उससे अतिरिक्त पानी बाहर निकल जाए. इसके बाद पात्र में वर्मी बैड तैयार किया जाता है. वर्मी बैड में सबसे नीचे वाले परत में छोटे-छोटे पत्थर ईंट के टुकड़े व मोटी रेत 3.5 सेंटीमीटर की मोटाई तक डाली जाती है. ताकि पानी का वहन ठीक प्रकार से हो. इसके बाद इसमें मिट्टी की एक परत दी जाती है. जो कम सेकम 15 सेंटीमीटर मोटाई की होनी चाहिए. फिर इसे अच्छी तरह गीला किया जाता है. केंचुए मिट्टी के परत में छोड़ दिए जाते हैं. इसके ऊपर ताजे गोबर के छोटे-छोटे लड्डू जैसे बनाकर रख दिए जाते हैं.
अब पूरे बॉक्स को लगभग 10 सेंटीमीटर मोटे सूखे कचरे की तह से ढंक दिया जाता है. इस प्रकार बने वर्मी बैड को जूट की थैली से ढंक दिया जाता है. इस पर थोड़ा पानी छिड़क कर गीला किया जाता है. बहुत अधिक पानी डालना आवश्यक नहीं है. इस प्रकार 30 दिन तक वर्मी बैड में नमी रखना है. इसके बाद वर्मी बैड में थोड़ा-थोड़ा जैविक कचरा समान रूप से फैला सकते हैं. कचरे की तह की मोटाई 5 सेंटीमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए, अन्यथा कचरे के सड़ने से जो गर्मी उत्पन्न होगी उससे केंचुओं को नुकसान हो सकता है.
एक सप्ताह में दो बार कचरा वर्मी बैड पर डाला जा सकता है. इस समय भी वर्मी बैड में 50 प्रतिशत नमी बनाए रखना आवश्यक है. एक महीने तक इस प्रकार केंचुओं को भोजन देते हैं. फिर भोजन देना बन्द कर दें और केंचुओं के बॉक्स को ढंककर रख दें. ढंक कर रखना केंचुओं की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है. पर इस तरह से ढंके कि बॉक्स में हवा का वहन ठीक प्रकार से होता रहे.
भोजन देने के 30-40 दिन बाद केंचुओं द्वारा पूरे जैविक पदार्थ या कचरे को काले रंग के दानेदार वर्मी कंपोस्ट में बदल दिया जाता है. वर्मी कंपोस्ट पूरी तरह सड़े हुए कचरे की खाद का मिश्रण होता है. इसे बन जाने के बाद केंचुओं के कल्चर बॉक्स में पानी देना बंद कर दिया जाता है. नमी की कमी की वजह से केंचुए बॉक्स में नीचे की ओर चले जाते हैं. इस समय खाद को ऊपर से निकालकर अलग से एक पॉलिथीन पर छोटे ढेर के रूप में निकाल लिया जाता है. इस ढेर को भी थोड़ी देर धूप में रखा जाता है ताकि केंचुए नीचे की ओर चले जाएं. ऊपर का कंपोस्ट अलग कर लिया जाता है. नीचे के कंपोस्ट को केंचुओं सहित फिर कल्चर बॉक्स में डालकर दूसरा चक्र शुरू कर दिया जाता है.
डॉ. राय के अनुसार जमीन पर वर्मी बैड बनाने के लिए सबसे पहले सूखी डंठलों एवं कचरे को बेड की लम्बाई-चौड़ाई के आकार में बिछा दें. इस पर सब प्रकार के मिश्रित कचरे, जिसमें सूखा कचरा, हरा कचरा, किचन वेस्ट, घास और राख इत्यादि की करीब 4 इंच मोटी परत बिछा दें. इस पर अच्छी तरह पानी देकर उसे गीला कर दें. इसके ऊपर सड़ा हुआ अथवा सूखे गोबर के खाद की 3-4 इंच मोटी परत बिछा दें. इसे भी पानी से गीला कर दें.
पानी का हल्का-हल्का छिड़काव करना है. बहुत अधिक पानी डालना आवश्यक नहीं. इस पर एक वर्गमीटर में 100 केंचुए छोड़े जा सकते हैं. इसके ऊपर फिर पत्तियों का 2-3 इंच पतली परत देकर पूरे वर्मी बैड को सूखी घास अथवा टाट की बोरी से ढंक दिया जाता है. इस प्रकार वर्मी बैड बनाने के बाद फिर कचरा डालने की आवश्यकता नहीं है. इस वर्मी बैड से कुछ दूरी पर इसी तरह कचरा एकत्र करके दूसरा वर्मी बैड तैयार कर सकते हैं.
करीब 40-60 दिन बाद जब पहले वर्मी बैड पर खाद तैयार हो जाती है, तब उसमें पानी देना बंद कर देते हैं व कल्चर बॉक्स की तरह ही इसमें से धीरे-धीरे ऊपर की खाद निकाल ली जाती है. इस खाद में जो केंचुए के छोटे-छोटे अंडे व बच्चे होते हैं उनसे जमीन में प्राकृतिक रूप से केंचुओं की संख्या बढ़ती है.
राय ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए क्षेत्र के युवाओं को चार 4 दिवसीय ट्रेनिंग दी गई. प्रशिक्षणार्थियों को केंद्र के कीट विशेषज्ञ डॉ. जीर विनायक, रुपेश कुमार, चन्नु कुमार, संतोष कुमार और विपिन कुमार आदि वर्मी कंपोस्ट बनाने की जानकारी दी.
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