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चाइना से आयात और आत्मन‍िर्भर भारत...इफको के ख‍िलाफ क्यों शुरू हुआ कैंपेन?

चाइना से आयात और आत्मन‍िर्भर भारत...इफको के ख‍िलाफ क्यों शुरू हुआ कैंपेन?

Fact Check: इफको के यूर‍िया बैग पर 'आत्मन‍िर्भर भारत' के साथ क्यों ल‍िखा गया चाइना का नाम? दरअसल, यह बात ब‍िल्कुल सच है क‍ि आजादी के 75 साल बाद भी हम उर्वरकों के उत्पादन के मामले में आत्मन‍िर्भर नहीं हो सके हैं. लेक‍िन, दूसरा सच यह भी है क‍ि अब हम उस रास्ते पर चल पड़े हैं. 

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इफको का वायरल हो रहा यूर‍िया बैग (Photo-Social Media).  इफको का वायरल हो रहा यूर‍िया बैग (Photo-Social Media).

यूर‍िया के एक बैग की फोटो वायरल हो रही है. यह बैग दुन‍िया की सबसे बड़ी सहकारी कंपनी इफको (इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड) का है. 'भारत ब्रांड' यूर‍िया के इस बैग पर एक जगह ल‍िखा गया है 'सशक्त क‍िसान-आत्मन‍िर्भर भारत' और दूसरी जगह इस खाद का उद्गम स्थल चाइना को बताया गया है. इसी व‍िरोधाभाष को लेकर यह बैग सोशल मीड‍िया पर वायरल है. अब इस पर इफको की सफाई सामने आई है. इसके एमडी डॉ. यूएस अवस्थी ने वायरल की जा रही फोटो को भ्रामक बताते हुए कहा है क‍ि ऐसा करने वालों के पास समझ का अभाव है. दरअसल, तकनीकी तौर पर देखा जाए तो बहुत हद तक डॉ. अवस्थी की बात सही भी है. 

दरअसल, हम लंबे समय से अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के ल‍िए रासायन‍िक उर्वरकों का आयात कर रहे हैं. ज‍िसमें यूर‍िया सबसे ऊपर है. यह बात ब‍िल्कुल सच है क‍ि आजादी के 75 साल बाद भी हम उर्वरकों के उत्पादन के मामले में आत्मन‍िर्भर नहीं हो सके हैं. लेक‍िन, अब उस रास्ते पर चल रहे हैं ज‍िसमें आयात को कम करने और घरेलू उत्पादन को बढ़ाने पर जोर द‍िया जा रहा है. काफी हद तक इसमें सफलता भी म‍िली है. सरकार कृषि क्षेत्र की मांग को पूरा करने के लिए साल दर साल मजबूरी में खाद का आयात कर रही है. 

क‍ितना है उर्वरकों का उत्पादन और आयात

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...तो फ‍िर मच जाएगा हाहाकार 

कृष‍ि व‍िशेषज्ञ ब‍िनोद आनंद का कहना है क‍ि सरकार एक तरफ रासायन‍िक उर्वरकों का उत्पादन बढ़ा रही है तो दूसरी ओर उसकी घरेलू मांग भी बढ़ जा रही है. पिछले चार साल की ही बात करें तो रासायनिक उर्वरकों की मांग करीब 73 लाख मीट्रिक टन बढ़ गई है. साल 2004-05 के दौरान देश में उर्वरकों (NPK-नाइट्रोजन-N, फास्फोरस-P, पोटेशियम-K) की खपत प्रति हेक्टेयर 94.5 किलो थी, जो 2018-19 में बढ़कर 133 किलोग्राम तक पहुंच गई है. ऐसे में समझ सकते हैं क‍ि सरकार क्या करे? वो अगर इंपोर्ट न करे तो देश में खाद के ल‍िए हाहाकार मच जाएगा. दूसरी तरफ स्थानीय स्तर पर कारखानों को बढ़ाकर सरकार उर्वरकों के मामले में आत्मन‍िर्भर बनने की कोश‍िश भी कर रही है. इसल‍िए इफको के बैग पर आत्मन‍िर्भर भारत और चाइना दोनों की बात देखकर उसका गॉस‍िप बनाना ठीक नहीं है.  

क‍ितनी बढ़ी स्वदेशी क्षमता 

केंद्र सरकार ने प‍िछले कुछ साल में ही स्वदेशी यूरिया उत्पादन क्षमता में 76.2 लाख मीट्र‍िक टन (LMT) की वृद्धि करने में सफलता पाई है. इसके तहत यूर‍िया बनाने वाली कुल 6 नई यून‍िटें बनाई गई हैं. इनमें मैटिक्स फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड (मैटिक्स) की पानागढ़ यूरिया यून‍िट, चंबल फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड की गडेपान-II यूरिया यून‍िट, रामागुंडम फर्टिलाइजर्स एंड केमिकल्स लिमिटेड की रामागुंडम यूरिया यून‍िट और ह‍िंदुस्तान उर्वरक एंड रसायन लिमिटेड (HURL) की तीन यूरिया यून‍िटें गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), सिंदरी (झारखंड) और बरौनी (बिहार) शाम‍िल हैं. इनमें से प्रत्येक यून‍िट की उत्पादन क्षमता 12.7 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष है.

प‍िछले द‍िनों रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मांडव‍िया ने दावा क‍िया था क‍ि आवश्यकता की तुलना में यूरिया का लगभग 75 फीसदी, डीएपी का 40 और एनपीकेएस का 85 प्रत‍िशत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों तथा निजी कंपनियों द्वारा देश में ही उत्पादन क‍िया जा रहा है. 

भारत में रासायन‍िक खादों की बढ़ती मांग

इफको के एमडी ने क्या कहा? 

"उर्वरक बैग पर मूल देश की छपाई कानून के अनुसार है. आवश्यकता के अनुसार आयात किया जाता है. खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर भारत की मदद के लिए सभी कंपनियां और सहकारी समितियां किसानों को सस्ती कीमत पर उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए काम कर रही हैं. नैनो यूरिया, नैनो डीएपी और न्यू यूरिया प्लांट एक ही दिशा में हैं. इसलिए वायरल की जा रही पोस्ट भ्रामक है और इसमें समझ का अभाव है." 

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