scorecardresearch
Onion Price: क्यों बढ़ रहे हैं प्याज के दाम और क्या चाहते हैं क‍िसान...ये रही पूरी इनसाइड स्टोरी

Onion Price: क्यों बढ़ रहे हैं प्याज के दाम और क्या चाहते हैं क‍िसान...ये रही पूरी इनसाइड स्टोरी

क्या देश में कम हो गई है प्याज की खेती और घट गया है उत्पादन. अगर खेती कम हो गई है तो उसकी वजह क्या है. पढ़‍िए सब कुछ. इस बीच यह भी समझ‍िए क‍ि बीते कुछ वर्षों से 2 से 10 रुपये कि‍लो तक के भाव पर ब‍िक रहा प्याज अपनी बदहाली से तंग आकर क्या अब बदला लेने के तेवर में है?

advertisement
प्याज महंगा होने की असली वजह क्या है? प्याज महंगा होने की असली वजह क्या है?

लंबे समय बाद प्याज की कीमतें बढ़नी शुरू हो गई हैं. देश के सबसे बड़े प्याज उत्पादक सूबे महाराष्ट्र में इसका भाव 4500 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तक पहुंच गया है. एक्सपर्ट बता रहे हैं क‍ि दाम और बढ़ सकते हैं. इससे क‍िसानों को राहत म‍िली है लेक‍िन उपभोक्ता परेशान हैं. चुनावी सीजन में प्याज के बढ़ते दाम ने सरकार की च‍िंता बढ़ा दी है. क्योंक‍ि इत‍िहास गवाह है क‍ि प्याज की महंगाई से ग‍िरे उपभोक्ताओं के आंसुओं के सैलाब में कई बार सरकार तक बदल गई हैं. पांच राज्यों में व‍िधानसभा चुनाव चल रहे हैं, इसल‍िए प्याज का दाम बढ़ना और सरकार के ल‍िए बड़ा स‍िरदर्द बन गया है. लेक‍िन, उपभोक्ताओं की खुशी से ज्यादा उन क‍िसानों की खुशी जरूरी है जो प‍िछले दो साल से औने-पौने दाम पर प्याज बेचने को मजबूर थे और तब उनके जख्मों पर मरहम लगाने वाला कोई नहीं था.

लेक‍िन आज असली मुद्दा यह है क‍ि आख‍िर दाम बढ़ क्यों रहे हैं. हम इसे ड‍िकोड करने की कोश‍िश करेंगे. दरअसल, प्याज का दाम बढ़ने के पीछे एक लंबी कहानी है. इसकी पटकथा प‍िछले दो साल से ल‍िखी जा रही थी. ज‍िसके ल‍िए हमारा बाजार और सरकार दोनों ज‍िम्मेदार हैं. इसे ऐसे भी कहा जा सकता है क‍ि बीते कुछ वर्षों से 2 से 10 रुपये कि‍लो तक के भाव पर ब‍िक रहा प्याज अपनी बदहाली से तंग आकर अब बदला लेने के तेवर में है. 

इसे भी पढ़ें: बासमती का एमईपी घटाकर 950 डॉलर प्रत‍ि टन करेगी सरकार, क‍िसानों-एक्सपोर्टरों को बड़ी राहत 

खेती के पैटर्न का ट्रेंड 

यह ट्रेंड रहा है क‍ि ज‍िस फसल का बहुत कम दाम म‍िलता है क‍िसान एक या दो साल तक इंतजार के बाद या तो उसकी खेती छोड़ देते हैं या फ‍िर कम कर देते हैं. क्योंक‍ि घाटा सहकर तो कोई खेती करेगा नहीं. यही प्याज के साथ हुआ है. प‍िछले दो साल से क‍िसान सरकार के सामने गुहार लगा रहे थे क‍ि उनकी लागत नहीं न‍िकल पा रही है. वो एक-दो और पांच रुपये क‍िलो के भाव पर प्याज बेचने के ल‍िए मजबूर हैं. लेक‍िन, तब उन्हें उच‍ित दाम द‍िलाने के ल‍िए सरकार नहीं खड़ी हुई. क‍िसानों की इस आवाज को अनसुना करने का पर‍िणाम है क‍ि आज इसका थोक भाव 45 रुपये प्रत‍ि क‍िलो तक पहुंच गया है.

रकबा और उत्पादन  

जी हां, कम दाम से परेशान क‍िसानों ने प्याज की खेती का रकबा घटा द‍िया है. इसकी तस्दीक केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय की एक ताजी र‍िपोर्ट कर रही है. ज‍िसका व‍िश्लेषण करने पर पता चलता है क‍ि प‍िछले एक साल में ही देश में प्याज की खेती का रकबा 200000 लाख हेक्टेयर कम हो गया है. जबक‍ि उत्पादन 14,82,000 मीट्र‍िक टन कम हो गया है, जो सरकार द्वारा इस साल बफर स्टॉक के ल‍िए खरीदे गए प्याज से तीन गुना है. 

दस फीसदी कम हो गया रकबा

  • साल 2022-23 में 17,41,000 हेक्टेयर में प्याज की खेती हुई थी, जबक‍ि 2021-22 में 19,41,000 हेक्टेयर में इसकी खेती हुई थी. यानी प‍िछले एक साल में ही प्याज की खेती का रकबा 10 फीसदी से अध‍िक कम हो गया. 
  • इसी तरह 2022-23 के दौरान 3,02,05,000 मीट्र‍िक टन प्याज का उत्पादन हुआ है. जबक‍ि  2021-22 में 3,16,87,000 मीट्र‍िक टन उत्पादन हुआ था. यानी एक साल में ही उत्पादन करीब 5 फीसदी कम हो गया. 
  • प्याज का दाम बढ़ने की एक वजह महाराष्ट्र में खरीफ सीजन के प्याज का करीब एक महीने लेट होना है. मॉनसून की बार‍िश में देरी की वजह से अभी तक खरीफ सीजन का प्याज बाजार में नहीं आया है. इससे बाजार में तेजी है. 

क्या गच्चा खा गया नफेड

सरकार नफेड से प्याज का बफर स्टॉक इसल‍िए मेंटेन करवाती है ताक‍ि जब बाजार में बहुत ज्यादा दाम बढ़े तो उस प्याज को सस्ते दरों पर बेचकर उपभोक्ताओं को राहत द‍िलाई जा सके. लेक‍िन इस बार नफेड गच्चा खा गया. जब अगस्त में प्याज का दाम 25 से 30 रुपये क‍िलो के बीच था तभी उसने प्याज न‍िकालना शुरू कर द‍िया. इस साल नफेड ने र‍िकॉर्ड पांच लाख टन प्याज बफर स्टॉक के ल‍िए खरीदा है. ज‍िसमें से काफी ह‍िस्सा वो बाजार में पहले से न‍िकाल चुका है. 

क्या है समाधान

इस बात में कोई शक नहीं है क‍ि दाम ज्यादा बढ़ने से महंगाई बढ़ती है. लेक‍िन महंगाई के ल‍िए क्या टमाटर, प्याज, दालें, गेहूं और चावल ही ज‍िम्मेदार हैं. हमें इस पर भी व‍िचार करने की जरूरत है. क‍िसी भी चीज का दाम इतना अध‍िक नहीं बढ़ना चाह‍िए क‍ि वो उपभोक्ताओं की पहुंच से बाहर हो जाए और इतना भी नहीं घटना चाह‍िए क‍ि क‍िसान उसकी खेती बंद या कम कर दे.इसल‍िए क‍िसानों को उनकी लागत से ज्यादा दाम तो देना ही होगा. वरना एक-दो साल आप ज‍िस चीज को बहुत सस्ता खाएंगे हो सकता है तीसरे साल वो आपकी पहुंच से बाहर हो जाए. महाराष्ट्र के क‍िसान लगातार आगाह कर रहे हैं क‍ि अगर उन्होंने प्याज की खेती बंद कर दी तो देश को इसके ल‍िए भी दूसरे देशों पर न‍िर्भर होना पड़ेगा. ऐसा हुआ तो प्याज का दाम काफी बढ़ जाएगा. 

उत्पादन लागत और दाम

प‍िछले दो साल से महाराष्ट्र के क‍िसान एक-दो से लेकर पांच-सात रुपये क‍िलो तक पर ही प्याज बेचने को मजबूर थे. लेक‍िन, उत्पादन लागत क‍ितनी आती है इसे भी समझ लीज‍िए. नेशनल हॉर्टिकल्चरल रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन के हवाले से आरबीआई के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर बैंक‍िंग ने अपनी एक र‍िपोर्ट में बताया है क‍ि साल 2014 के खरीफ सीजन के दौरान महाराष्ट्र में प्याज की उत्पादन लागत 724 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल आती थी. मतलब 2023 में क‍िसानों को एक दशक पुरानी उत्पादन लागत भी नहीं म‍िल रही है. अब सोच‍िए क‍ि उनकी आय कैसे डबल होगी. क्या सरकार को प्याज के वर्तमान उत्पादन लागत और दाम के बारे में पता नहीं है?  

अगर क‍िसान यह कह रहे हैं क‍ि अब प्याज की लागत 15 से 20 रुपये प्रत‍ि क‍िलो तक पहुंच गई है तो 2014 के आंकड़े को देखते हुए इसमें कोई अत‍िशयोक्त‍ि नहीं है. क्योंक‍ि खाद, पानी, श्रम, खेती की जुताई, बीज की कीमत और कीटनाशक आद‍ि का खर्च काफी बढ़ चुका है. लेक‍िन बड़ा सवाल यह है क‍ि आख‍िर उत्पादन लागत के मुताब‍िक दाम क्यों नहीं बढ़ा? 

क्या चाहते हैं क‍िसान

यहां यह भी सवाल आता है क‍ि कोई सरकार क‍िसानों को क्यों नाराज करना चाहेगी. आख‍िर वो प्याज क‍िसानों के भले की नीत‍ियां क्यों नहीं बनाती? महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत द‍िघोले का कहना है क‍ि आजादी के 75 साल बाद भी केंद्र सरकार ने प्याज को लेकर कोई पॉल‍िसी नहीं बनाई है. उसकी एक ही पॉल‍िसी है क‍ि उपभोक्ताओं के ल‍िए सस्ता प्याज चाह‍िए. ताक‍ि वोटर नाराज न हों, भले ही क‍िसान का नुकसान क्यों न हो जाए? नेताओं को कस्टमर के आंसू भारी लगते हैं क‍िसानों के नहीं. हम यह नहीं चाहते क‍ि उपभोक्ताओं को 100 या 200 रुपये क‍िलो प्याज म‍िले लेक‍िन हमें यह भी मंजूर नहीं है क‍ि हमें अपनी उपज एक या दो रुपये क‍िलो पर बेचने पर मजबूर होना पड़े. 

फ‍िर क्या है आगे का रास्ता

मशहूर कृष‍ि अर्थशास्त्री देव‍िंदर शर्मा कहते हैं क‍ि क‍िसानों के ल‍िए बनाए गए मॉडल में ही फाल्ट है. आपने उसे बाजार के हवाले छोड़ द‍िया है. इससे क‍िसान लगातार नुकसान झेल रहे हैं. दरअसल, एश्योर्ड इनकम ही क‍िसानों की सबसे बड़ी समस्या का समाधान है. उत्पादन लागत के मुताब‍िक उस पर मुनाफा जोड़कर आप उसका एक एश्योर्ड प्राइस तय कर दीज‍िए, वरना यही हाल रहेगा क‍ि दस साल पहले जो उत्पादन लागत आती थी आज उतना दाम भी नहीं म‍िल पा रहा है.  

शर्मा का सुझाव है क‍ि क‍िसानों के ल‍िए सभी फसलों का एमएसपी तय हो और उपभोक्ताओं के ल‍िए एमआरपी. ताक‍ि क‍िसानों और उपभोक्ताओं दोनों का नुकसान न हो और ट्रेडर बेह‍िसाब कमाई न कर पाएं. क‍िसानों को एश्योर्ड प्राइस दें और उपभोक्ताओं के ल‍िए यह सुन‍िश्च‍ित करें क‍ि उनको क‍िसानों को म‍िलने वाली रकम से दोगुना दाम न चुकाना पड़े. 

इसे भी पढ़ें: क‍िसानों के ल‍िए बड़ी खुशखबरी, एक्सपोर्ट से होने वाले फायदे में 50 फीसदी ह‍िस्सेदारी देगी सरकार

क‍िसानों की नाराजगी की वजह 

इस समय प्याज के दाम बढ़ गए हैं लेक‍िन क‍िसानों की सरकार से नाराजगी कायम है. क‍िसान उसका बदला चुनाव में लेने की बात कर रहे हैं. इस नाराजगी की वजह भी है. क्योंक‍ि लंबे समय के इंतजार के बाद अगस्त में प्याज के दाम बढ़ने शुरू ही हुए थे क‍ि सरकार सामने आ गई. केंद्र सरकार ने 17 अगस्त को प्याज पर 40 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगा दी. पहली बार यह कदम उठाया गया. साथ ही बाजार में सस्ता प्याज बेचने के ल‍िए नेफेड और एनसीसीएफ (नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन) को उतार द‍िया गया. बदले में क‍िसानों से 2410 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल के दाम पर 2 लाख टन और प्याज खरीदने का फैसला हुआ, लेक‍िन क‍िसानों ने नफेड पर सवाल उठा द‍िया क‍ि उसकी खरीद पारदर्शी नहीं है.

बहरहाल, सरकार की इस कोश‍िश से दाम एकदम से ग‍िर गया. इसके ख‍िलाफ क‍िसानों और व्यापार‍ियों की हड़ताल भी हुई. हालांक‍ि, तमाम कोश‍िशों के बावजूद वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने न तो एक्सपोर्ट ड्यूटी बंद की और न ही उन्होंने नफेड और एनसीसीएफ से बाजार में हस्तेक्षेप बंद करवाया. क‍िसानों का कहना था क‍ि जब दाम कम हो जाता है तब सरकार गायब हो जाती है लेक‍िन जब दाम बढ़ता है तब सरकार उसे रोकने के ल‍िए सामने आ जाती है. हालांक‍ि, उपभोक्ताओं को सस्ता प्याज द‍िलाने की सरकार की ये कोश‍िश ज्यादा द‍िन काम नहीं आई और आख‍िरकार बाजार ने अपनी द‍िशा खुद तय कर ली.