बैंगन की पत्तियां छोटी रह जाती हैं, पौधों पर फल भी नहीं बनते, कैसे करें इसकी रोकथाम?

बैंगन की पत्तियां छोटी रह जाती हैं, पौधों पर फल भी नहीं बनते, कैसे करें इसकी रोकथाम?

देश में बैंगन की खेती लगभग पूरे वर्ष की जाती है. हर मौसम के हिसाब से बैंगन की अलग-अलग किस्में उगाई जाती हैं. आप चाहें तो अभी भी बैंगन की खेती कर सकते हैं. आप एक एकड़ में 4-6 हजार बैंगन के पौधे लगा सकते हैं.

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बैंगन की पत्तियां छोटी रह जाती हैं, पौधों पर फल भी नहीं बनते, कैसे करें इसकी रोकथाम?बैंगन के पौधों को कीट से बचाने का तरीका

भारत में खाने के शौकीन लोगों की संख्या बहुत अधिक है. जिस वजह से यहां खाने-पीने के चीजों की मांग लगातार बनी रहती है. इतना ही नहीं अलग-अलग चीजों की मांग हमेशा बढ़ती भी रहती है. खास कर फल और सब्जियों की बात करें तो यहां इन चीजों की खपत बहुत ज्यादा है. जिस वजह से इसकी खेती कर रहे किसानों को मुनाफा भी अधिक होता है. वहीं बात करें बैंगन की तो यह एक लोकप्रिय सब्जी है. जिसकी खपत बड़े पैमाने पर होती है. खासकर ठंड के मौसम में इस सब्जी की मांग काफी ज्यादा बढ़ जाती है. देश में कहीं भरता बैंगन खूब बिकता है तो कहीं लंबा बैंगन. इतना ही नहीं, कई जगहों पर सफेद और हरे बैंगन बड़े चाव से खाए जाते हैं. 

बैंगन की खेती का तरीका

देश में बैंगन की खेती लगभग पूरे वर्ष की जाती है. हर मौसम के हिसाब से बैंगन की अलग-अलग किस्में उगाई जाती हैं. आप चाहें तो अभी भी बैंगन की खेती कर सकते हैं. आप एक एकड़ में 4-6 हजार बैंगन के पौधे लगा सकते हैं. ध्यान रखें कि बैंगन के पौधे बहुत बड़े होते हैं, इसलिए दो पौधों के बीच अच्छी मात्रा में जगह छोड़ना जरूरी है, ताकि वे अच्छे से विकसित हो सकें.

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इन बातों का रखें ध्यान

बैंगन की खेती 6x3 फीट के आधार पर करना बेहतर होता है. दो पौधों के बीच की दूरी 3 फीट और दो पंक्तियों के बीच की दूरी 6 फीट रखी जाती है. इससे न केवल पौधों को बढ़ने के लिए जगह मिलती है, बल्कि कटाई भी आसान हो जाती है. बैंगन की खेती में ड्रिप सिंचाई का प्रयोग करना चाहिए, ताकि जल का संरक्षण हो सके और पौधों की सिंचाई ठीक से हो सके. वहीं बैंगन की फसल को कीटों से भी बचा के रखने की जरूरत होती है. कई बार बैंगन की पत्तियां छोटी रह जाती हैम जिस कारण फल भी नहीं लगते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कैसे करें बचाव.

छोटी पत्ती रोग और बचाव का तरीका

इस रोग को छोटी पत्ती रोग से जाना जाता है. इस रोग के आक्रमण से पत्तियां छोटी रह जाती हैं और गुच्छे के रूप में तनों पर उगी हुई दिखाई देती हैं. पूरा रोगग्रस्त पौधा झाड़ी जैसा दिखता है और ऐसे पौधों में फल नहीं आते हैं. इस रोग से फसल को बचाने के लिए रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए. यह रोग हरे तेले से फैलता है इसलिए इसकी रोकथाम के लिए फास्फोनिडान 85 एस का प्रयोग किया जाता है. एल 0.5 मि.ली. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 1.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें और जरूरत को देखते हुए 15 दिन बाद यह छिड़काव फिर से दोहराएं.

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