राई की फसल तिलहन की प्रमुख फसल है. इस फसल का भारत की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान है. इसी कड़ी में चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर (सीएसए) के तिलहन विभाग की ओर से विकसित राई की नई प्रजाति गोवर्धन के बीज उत्पादन के लिए सरकार ने अनुमति प्रदान कर दी है. अब कानपुर की इस प्रजाति के बीजों की बिक्री देशभर में हो सकेगी.
विभाग के अध्यक्ष डॉ. महक सिंह ने बताया कि लखनऊ में प्रमुख सचिव कृषि की अध्यक्षता में राज्य बीज उप समिति की 37वीं बैठक में यह फैसला लिया गया. भारत सरकार ने 9 अगस्त को इस नई प्रजाति का नोटिफिकेशन जारी कर दिया था. उन्होंने बताया कि भारत सरकार से नोटिफिकेशन नंबर प्राप्त होने के बाद उक्त प्रजाति का बीज बिक्री हेतु संपूर्ण देश के लिए उपलब्ध होगा. डॉ. महक सिंह ने आगे बताया कि गोवर्धन बीज की फसल पकने का समय 120 से 125 दिन है. इसमें तेल की मात्रा 39.6 फीसदी, प्रजाति की बुआई का समय 20 नवंबर तक और उत्पादन 18 से 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर रहेगा.
बता दें कि राई का लोग दो तरीके से उपयोग कर सकते हैं. पहली फसल से निकलने वाले खाद्य तेल को भोजन बनाने और दूसरी उसकी खली को जानवरों के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. राई की फसल से अधिक पैदावार और उच्च क्वालिटी प्राप्त करने के लिए किसान इसकी बेहतर किस्मों की खेती करके अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
वहीं राई के तेल की रेट ज्यादा इसलिए रहती है, क्योंकि राई के तेल को लगभग सभी प्रकार से इस्तेमाल किया जाता है. राई की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती हैं. इसकी फसल हुबहू सरसों की फसल की तरह ही होती है.
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