एग्रोकेम फेडरेशन ऑफ इंडिया ने दिल्ली में एक कार्यक्रम आयोजित कर उन धारणाओं को किया खारिज किया, जिनमें कथित रूप से फसलों की सुरक्षा से संबंधित रसायनों के खिलाफ प्रचार किया जा रहा है. 'क्रॉप प्रोटेक्शन केमिकल: मिथ्स वर्सेस फैक्ट्स' नामक डिबेट में संगठन ने कहा कि भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए क्रॉप प्रोटेक्शन केमिकल जरूरी हैं. ऐसी धारणा बनाई गई है कि भारत की खेती में अत्यधिक रसायनों का उपयोग होता है. जबकि सच्चाई यह है कि भारत चीन के बाद कृषि उत्पादन में दुनिया में दूसरे स्थान पर है, लेकिन दुनिया में कीटनाशकों के उपयोग में भारत का स्थान अमेरिका, फ्रांस, स्पेन, इटली, चीन और जर्मनी जैसे देशों के बाद 12वें नंबर पर आता है.
संगठन ने कहा कि ऐसी भी धारणा है कि भारत की कृषि से मिलने वाली चीजों में क्रॉप प्रोटेक्शन के खतरनाक केमिकल के अवशेष होते हैं, जो कैंसर और अन्य न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का कारण बन सकते हैं. जबकि सच्चाई ये है कि वैसे तो अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि विकसित देशों में कैंसर की दर लगभग दोगुनी है और उनके पास कृषि क्षेत्र भी कम है. वास्तव में, विश्व में भारत कैंसर दरों में 172 वें स्थान पर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित कैंसर पैदा करने वाले पदार्थों की सूची में एक भी क्रॉप प्रोटेक्शन केमिकल का उल्लेख नहीं है.
यह भी धारणा है कि कीटनाशकों के कारण भारत का जल स्रोत दूषित हो रहा है. संगठन ने इसे भी खारिज किया. कहा कि सच्चाई ययह है कि भारत आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है और देश का दो तिहाई मछली उत्पादन देशी स्रोतों से ही होता है. यदि हमारे देश के जल स्रोत प्रदूषित होते, तो मछली उत्पादन इतना अधिक क्यों हो रहा है?
भारत में क्रॉप प्रोटेक्शन केमिकल के बारे में बहुत सारी गलत सूचना या धारणाओं का प्रचार किया जा रहा है. कुछ अवांछनीय भारत की खाद्य सुरक्षा और किसानों के हितों को नुकसान पहुंचाने के लिए गलत सूचना को आगे बढ़ाया जा रहा है. डिबेट में वैज्ञानिकों, कानून के जानकारों, रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के विशेषज्ञों, सिविल सोसाइटी मेंबर्स, पत्रकारों और स्तंभकारों के साथ-साथ इंडस्ट्री के नुमाइंदों ने शिरकत की. महिलाओं के एक विशेष पैनल ने क्रॉप प्रोटेक्शन केमिकल से संबंधित विभिन्न मिथकों पर बातचीत की. उन्होंने भारत में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए फसल सुरक्षा और उपज में सुधार के लिए और रिसर्च पर बल दिया.
अमेरिकी रासायन निर्माण कंपनी एफएमसी की इंडिया रेगुलेटरी हेड डॉ. दीपा बत्रा कथूरिया ने चर्चा की शुरुआत की. उन्होंने कहा कि बड़ी मात्रा में कीटनाशकों का उपयोग, कैंसर के मामलों की बढ़ती संख्या आदि जैसे कई मिथकों के लिए इंडस्ट्री को दोषी ठहराया जा रहा है, जबकि सच कुछ और है. उदाहरण के लिए, भारत का अनाज उत्पादन हर साल बढ़ रहा है और जहां तक कैंसर के मामलों की बात है तो सिंगापुर जैसे गैर-कृषि देश में भी भारत की तुलना में कैंसर के मामलों का प्रतिशत अधिक है. इसी तरह चीन की तुलना में भारत प्रति हेक्टेयर केवल एक तिहाई मात्रा में क्रॉप प्रोटेक्शन केमिकल का उपयोग करता है.
चर्चा के दौरान एडवोकेट ममता रानी झा ने कहा कि एक देश के रूप में हम क्रॉप प्रोटेक्शन केमिकल के बिना जीवित नहीं रह सकते. क्योंकि कीट फसल उत्पादन को लगभग 30 से 70 फीसदी तक कम कर सकता है. जिससे हमारी खाद्य सुरक्षा और हंगर फ्री सोसाइटी का हमारा लक्ष्य खतरे में पड़ जाएगा.
अरूपा मिशन रिसर्च फाउंडेशन की निदेशक सोनाली पटनायक ने कहा कि क्रॉप प्रोटेक्शन केमिकल इंडस्ट्री को किसानों और मजदूरों की सुरक्षा को सुरक्षित करने के प्रयासों को और बढ़ाना चाहिए. साथ ही भूख और कुपोषण जैसी समस्या को भी खत्म करने का प्रयास करना चाहिए.
फेडरेशन के महानिदेशक डॉ. कल्याण गोस्वामी ने कहा कि अलग-अलग तरीके से बोलने पर भी सच, सच ही रहता है, वैसे ही झूठ अलग-अलग तरीके से और अलग-अलग मंचों पर बोलने पर भी झूठ ही रहता है. उन्होंने कहा कि एक इंडस्ट्री के रूप में हम यहां एक साथ लाखों लोगों के जीवन को भूख से और उनसे संबंधित जोखिमों से बचाने के लिए एक साथ आए हैं.
रीजनल सॉयल टेस्टिंग लैब करनाल, हरियाणा की प्रभारी डॉ. किरण के खोखर ने ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर के प्रचार पर यह स्पष्ट किया कि किसी भी फसल को नाइट्रोजन सहित लगभग 60 फीसदी पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है और गांवों में मवेशियों की संख्या कम होने के कारण यह केवल गोबर से बने खाद के प्रयोग से संभव नहीं था. ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर सस्टेनेबल फार्मिंग के रूप में सही है, लेकिन इसके उपयोग से हमारी आबादी के लिए आवश्यक फसल उपज उत्पन्न करना असंभव है. इसलिए हमारी खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए क्रॉप प्रोटेक्शन केमिकल आवश्यक हैं.
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