अजोला का नाम तो सुना ही होगा आपने. यह सिर्फ पशु आहार नहीं है बल्कि किसान इसका इस्तेमाल खेती में भी कर सकते हैं. खासतौर पर धान की फसल में इसके जरिए नाइट्रोजन की पूर्ति हो सकती है. बिहार के पूर्वी चंपारण स्थित परसौनी कृषि विज्ञान केंद्र के स्वायल साइंटिस्ट डॉ. आशीष राय ने इसके इस्तेमाल को लेकर किसानों को पूरी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि अजोला एक जलीय फर्न है जिसकी पत्तियों में एनाबिना नाम का नील हरित शैवाल पाया जाता है, जो बहुत कम लागत में और कम समय में तैयार होने वाली हरी खाद है. इसमें नाइट्रोजन होता है इसलिए यह यूरिया का आंशिक विकल्प है. यह हमारी खरीफ की खेती में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इसे धान की फसल के लिए वरदान माना जाता है. क्योंकि इसमें प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन समेत अन्य पोषक पदार्थ होते हैं.
डॉ. राय का कहना है कि धान की खेती में रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभाव को कम करने में अजोला किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है. इसका इस्तेमाल करने से धान के पौधों का बेहतर विकास होता है. धान की फसल में रोपनी करने के 15 से 20 दिन बाद पानी से भरे हुए खेत में अजोला को एक 1 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से डाला जाए तो यह बहुत तेजी से खेत में फैलता है. खेत में पानी के ऊपर हरे रंग के शैवालों की तरह तैरता रहता है.
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अजोला से मिट्टी का स्वास्थ्य बहुत बढ़िया रहता है. आमतौर पर यह देखा गया है कि वर्मी कंपोस्ट और कंपोस्ट बनाने में अगर अजोला का उपयोग किया जाए तो उसमें केंचुआ का वजन और विकास तेजी से होता है. साथ ही साथ कंपोस्ट में ऑर्गेनिक मैटर भी बढ़ता है जिससे नाइट्रोजन की मात्रा खेत में बढ़ जाती है. इसके सकारात्मक प्रभाव को देखते हुए पूर्वी चंपारण स्थित कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों के लिए सही समय पर अजोला उपलब्ध कराने के लिए काम शुरू किया है.
इस केवीके में अजोला की कई यूनिट बनाई गई हैं. जिन्हें डॉ. अशीष राय, डॉ. जीर विनायक, रुपेश कुमार और चुन्नु कुमार आदि ने मिलकर तैयार किया है. किसानों के साथ मिलकर उनके तालाबों पर भी अजोला का बड़े स्तर पर उत्पादन के लिए तैयारी की गई है, जिससे इस वर्ष कम से कम 250 एकड़ धान के खेत में किसान भाई-बहनों को अजोला डलवा करके उसके फायदे और सकारात्मक पहलुओं को अन्य किसानों के बीच में समझाने का प्रयास सफल हो सके.
किसानों से अजोला का इस्तेमाल इसलिए करवाया जा रहा है ताकि किसान भाई अपने खेतों में यूरिया इस्तेमाल को कम कर सकें. जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति मजबूत हो. रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में कमी की जा सके. अभी तक ऐसा माना जाता था कि दक्षिण भारत में अजोला किसानों की खेती में शामिल था पर अब अजोला बिहार खासतौर पर उत्तरी बिहार में भी किसानों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. इस सेंटर में पिछले तीन साल से इस पर काम हो रहा है.
कृषि वैज्ञानिक अंशू गंगवार बताते हैं कि किसान भाइयों के लिए अजोला उत्पादन करना बहुत आसान है. इसके लिए प्लास्टिक की सीट ले लें और इसको 6 बाई 4 फीट नाप कर काट लें. फिर एक फीट गहरा गड्ढा करके उसमें प्लास्टिक की सीट को डालकर प्लास्टिक के किनारों को चारों तरफ से ऊंचा करके मिट्टी से दबा दें. फिर 15 से 20 सेंटीमीटर पानी भर दें, लेकिन यह याद रहे कि जहां पर भी इस यूनिट का निर्माण हो वह हल्का छायादार स्थान पर हो और वहां तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच में रहे, जिससे अजोला का उत्पादन तेजी से हो.
इसके बाद सीट पर उपजाऊ मिट्टी में 10 किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट, 500 ग्राम सुपर सिंगल सुपर फास्फेट, 100 ग्राम पोटाश मिलाकर करीब 5 सेंटीमीटर की मोटाई की सतह बिछा दें और फिर इसके ऊपर पानी भर दें और जब पानी स्थिर हो जाए इसमें अजोला के कल्चर को डाला जाए. फिर 12 से 15 दिन के बीच में पूरे यूनिट में अजोला फैल जाएगा और फिर इसको धान के खेत में ट्रांसफर कर सकते हैं.
डॉ. आशीष राय ने बताया कि अजोला हवा में उपस्थित नाइट्रोजन गैस को अपने अंदर फिक्स कर लेता है. जब धान की फसल में पानी कम होता है तब यह मिट्टी के संपर्क में आता है और बढ़ने लगता है जिससे इसका डिकंपोजीशन होता है. यह कार्बनिक खाद के रूप में रहकर कुछ लाभदायक बैक्टीरिया जैसे नाइट्रोबैक्टर नाइट्रोसोमोनास की मदद से अकार्बनिक खाद नाइट्रेट के रूप में परिवर्तित हो जाता है. यह प्रक्रिया धान की फसल में अत्यंत लाभदायक है.
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