ACME ग्रुप ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से ग्रीन अमोनिया आधारित खाद का परीक्षण करने की अनुमति मांगी है. यह नया विकल्प पारंपरिक यूरिया की जगह इस्तेमाल हो सकता है और पर्यावरण के लिए भी लाभकारी बताया जा रहा है. ग्रीन अमोनिया, पानी (जल) और हवा से बनी एक पर्यावरण-अनुकूल गैस है जिसमें कार्बन का उत्सर्जन नहीं होता. इसे दो रूपों में प्रयोग किया जा सकता है-एन्हाइड्रस अमोनिया (Anhydrous) और एक्वस अमोनिया (Aqueous).
भारत में हर साल लगभग 38.8 मिलियन टन यूरिया की खपत होती है. इसमें से बहुत बड़ी मात्रा गैस और अमोनिया आयात कर बनती है, जिससे 1 लाख करोड़ रुपए से भी ज़्यादा का खर्च आता है. इसके अलावा, यूरिया के अधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है.
ACME ग्रुप के अनुसार, एक्वस अमोनिया की नाइट्रोजन उपयोग क्षमता (NUE) 60-65% है, जबकि एन्हाइड्रस अमोनिया की NUE 82% तक है. वहीं, पारंपरिक यूरिया की NUE सिर्फ 30-35% होती है. इसका मतलब यह है कि ग्रीन अमोनिया कम मात्रा में ही ज्यादा असर करता है. इससे किसानों को कम मात्रा में खाद डालनी होगी और मिट्टी भी स्वस्थ रहेगी.
ACME ग्रुप ने ICAR के पास एक पायलट परियोजना का प्रस्ताव भेजा है. ICAR के महानिदेशक एम.एल. जात ने बताया कि यह प्रस्ताव प्रक्रिया में है. Natural Resource Management (NRM) डिवीजन पहले ही इस पायलट को मंजूरी दे चुका है. अब केवल ICAR की अंतिम स्वीकृति बाकी है.
ACME ने यूरोप को ग्रीन अमोनिया निर्यात करने के लिए Yara International के एक ग्रुप कंपनी से समझौता किया है. कंपनी ओडिशा में एक पूरी तरह निर्यात ग्रीन अमोनिया प्लांट भी बना रही है.
एक बार जब ICAR इसका परीक्षण कर लेगा और सकारात्मक रिपोर्ट दे देगा, तो कृषि मंत्रालय इसे Fertilizer Control Order में शामिल करेगा. इसके बाद किसान इसे अपने खेतों में इस्तेमाल कर सकेंगे. ग्रीन अमोनिया भविष्य में भारत की कृषि को ज्यादा हरित, स्वस्थ, और आत्मनिर्भर बना सकता है. इससे न केवल विदेशी आयात पर निर्भरता घटेगी बल्कि किसानों को भी कम लागत में बेहतर उपज मिल सकती है. अब निगाहें ICAR की अंतिम स्वीकृति पर टिकी हैं, जो इस परिवर्तन की दिशा तय करेगी.
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