Integrated Farming: 3.5 बीघे खेत से रचा इतिहास, बुंदेलखंड के गुलाब काका ने ऐसे किया कमाल

Integrated Farming: 3.5 बीघे खेत से रचा इतिहास, बुंदेलखंड के गुलाब काका ने ऐसे किया कमाल

खेती घाटे का सौदा है, यह आज की पीढ़ी की सोच है. मगर पिछली पीढ़ी, खेती को खुशहाली का खजाना मान कर समझ बूूझ के साथ खेती करती थी. इसी सोच को आगे बढ़ा रहे हैं उप्र में बांदा के बुजुर्ग किसान गुलाब सिंह. उन्होंने खेती के संकट से जूझ रहे इस इलाके में अपने छोटे से खेत को इंटीग्रेटिड फार्म के रूप में सजा कर सतत आय का जरिया बना लिया है. जानते हैं गुलाब काका के खेत की खूबियां.

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Integrated Farming: 3.5 बीघे खेत से रचा इतिहास, बुंदेलखंड के गुलाब काका ने ऐसे किया कमालनई पीढ़ी को फार्म डिजाइनिंग के गुर सिखाते किसान गुलाब सिंह (बायें से दूसरे)

जमीन उपजाऊ हो और रकबा बहुत ज्यादा हो, खेती तभी मुनाफे का सौदा हो सकती है. इस धारणा को एक किसान ने अपनी समझ बूझ वाली खेती की पद्धति से पूरी तरह गलत साबित कर दिया है. यह काम गंगा यमुना के दोआब इलाके की बेहद उपजाऊ जमीन वाले किसी किसान ने नहीं, बल्कि बुंदेलखंड में बांदा के 75 वर्षीय किसान गुलाब सिंह ने कर दिखाया है.

बांदा जिले के बड़ोखर खुर्द गांव में महज 3.5 बीघा खेत में वह आवर्तनशील खेती का पारंपरिक तरीका अपना कर खेती करते हैं. उन्होंने पशुपालन, बागवानी और मछली पालन कर 'समग्र खेती' (Integrated Farming) का सफल मॉडल तैयार किया है. उनके इस मॉडल को कृष‍ि वैज्ञानिकों ने भी सराहते हुए सम्मानित किया है. इलाके के लोग उन्हें गुलाब काका के नाम से बुलाते हैं.

पुरखों की लीक पर चलकर कर रहे जहर मुक्त खेती

'किसान तक' से अपने अनुभव साझा करते हुए गुलाब काका ने बताया कि वह पुरखों के सिखाए रास्ते पर चल कर ही खेती कर रहे हैं. पुरखे कहते थे, ''खेती, अपने पेट के लिए करनी चाहिए, शहर के सेठ के लिए नहीं.'' इसका पालन करते हुए उन्होंने अपने परिवार की अधिकतम जरूरतें अपने छोटे से खेत से ही पूरी करने वाली खेती की. इसके लिए उन्होंने खेत में एक छोटा सा तालाब 40 साल पहले ही बना लिया था. पूरा बांदा इलाका दशकों से सूखे से जूझ रहा है, लेकिन गुलाब काका को पानी की कमी का कभी अहसास हुआ ही नहीं.

पशुपालन और बागवानी के साथ समग्र खेती   

तालाब में वह बतख और मछली पालन करने के साथ कमल एवं सिंघाड़ा उपजा लेते हैं. तालाब के चारों ओर उन्होंने आम, नींबू, आंवला, अनार और करौंदा जैसे स्थानीय पेड़ों का 'मिक्स बाग' लगाया है. बाग में ही पेड़ों के नीचे वह हल्दी और अरबी सहित अन्य सब्जियां उगाते हैं, जो कम धूप में अच्छे से उपजती हैं. इस किचिन गार्डन से उन्हें साल भर अपने परिवार के लिए सब्जियां मिल जाती हैं, जो बचती हैं, उन्हें वह बेच देते हैं. 

इसके अलावा उन्होंने अपने खेत में खाद और परिवार के लिए दूध की आपूर्ति हेतु दो गाय एवं दो भैंसें भी रखी हैं. बाकी बची लगभग ढाई बीघा जमीन पर वह गेहूं, धान, सरसों आद‍ि फसलों के अलावा खेत की मेड़ों पर अरहर एवं अन्य दालें उपजाते हैं. इन फसलों से उनके छह सदस्यों वाले परिवार की खाद्यान्न की जरूरत पूरी हो जाती है. परिवार की अन्य जरूरतों को वह बाजार से पूरा करते हैं, और इसके लिए उन्हें बाग के फल तथा तालाब की मछली बेच कर पैसा मिल जाता है. उन्होंने बताया कि उनके बाग में नींबू के महज 10 पेड़ हैं, जो साल भर फल देते हैं. कुछ महीने पहले जब बाजार में 10 रुपये का एक नींबू बिक रहा था, तब उन्होंने दो सप्ताह में 8 हजार रुपये के नींबू बेचे.

ना मंडी, ना बाजार, खेत पर ही कारोबार

गुलाब काका बताते हैं क‍ि वह अपने खेत की उपज बेचने ना तो कभी मंडी गए, ना ही बाग के फल एवं सब्ज‍ियां बेचने उन्हें बाजार जाना पड़ा. खरीददार खुद उनके खेत पर आम, नींबू, हल्दी आद‍ि खरीदने आते हैं. इसी तर‍ह शुद्ध गेहूं, चावल, दालें और मोटे अनाज खाने के इच्छुक शहरी लोग खुद उनके खेत पर आकर ये खाद्यान्न ले जाते हैं. 

लगभग चार दशक से यह समझ बूझ भरी खेती कर रहे गुलाब काका का फार्म अब स्थानीय लोगों के लिए सैर सपाटे की जगह भी बन गया है. उप्र में किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित एवं प्रश‍िक्ष‍ित कर रहे प्रगतिशील किसान जितेन्द्र गुप्ता हाल ही में बड़ोखर खुर्द गांव में किसानों को प्राकृतिक खेती सिखाने आए. तब उन्होंने गुलाब काका का फार्म देखा और वह खुद उनसे फार्म डिजाइनिंग के कुछ नुस्खे सीख कर गए.

फैलने लगी है अब इस खेत की खुशबू

आखि‍रकार गुलाब काका के खेत की खुशबू कृष‍ि विशेषज्ञों और सरकारी महकमों तक भी पहुंच गई है. उन्नत खेती कर रहे किसानों की पहचान कर उप्र सरकार ने सम्मानित करने की मुहिम शुरू की. तब इस कड़ी में गुलाब काका को बीते दिनों बांदा के विधायक द्वारा आयोजित कार्यक्रम में फार्म डिजाइनिंग का उत्कृष्ट तरीका अपना कर अपने खेत को सजाने संवारने के लिए सम्मानित किया गया. इस कार्यक्रम में शामिल हुए जालाैन जिले के युवा प्रगतिशील किसान जितेन्द्र गुप्ता ने कहा कि यह वही बुंदेलखंड है, जो किसानों की बदहाली के लिए बदनाम हो गया, जहां के छोटे बड़े किसान खेती को घाटे का सौदा बताकर शहरों में नौकरी या मजदूरी करने चले गए. इसके उलट बदहाली का पर्याय बन चुके बुंदेलखंड में गुलाब काका जैसे किसान समझबूझ के साथ पुरखों के बताए गए खेती के तरीके अपना कर संतुष्टि और सम्मान के साथ जीवन यापन कर रहे हैं. बांदा कृष‍ि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डा दिनेश शाह ने भी गुलाब काका की खेती के तरीके को प्रकृति के अनुरूप बताते हुए कहा कि व‍ह छात्रों को भी जल्द इस तरीके से खेती के फायदे समझने के लिए भेजेंगे.

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