14 फरवरी को 'काऊ हग डे' के दिन गोरखपुर से एक अच्छी खबर आई. यह खबर गाय और गौशाला से जुड़ी है. गोरखपुर नगर निगम को गाय और गौशाला से अच्छी कमाई हो रही है. इस गौशाला में बनने वाले वर्मी कंपोस्ट से गोरखपुर निगम की कमाई बढ़ गई है. अब इसी गौशाला से गोमूत्र की बिक्री भी की जाएगी. दरअसल, गोरखपुर के कान्हा उपवन में रखे गए गोवंश नगर निगम की कमाई का जरिया बन रहे हैं. ऐसी योजना है कि गायों और अन्य मवेशी पशुओं के मूत्र को इकट्ठा कर बिक्री की जाएगी.
गोरखपुर नगर निगम कार्यालय की मानें तो कान्हा उपवन में रोजाना तकरीबन 200 लीटर गोमूत्र इकट्ठा किया जाएगा. इसके लिए बाक़ायदा आईडीएस इंटरप्राइजेज से करार भी होगा. यह फर्म पहले से वर्मी कंपोस्ट बना रही है जिसको नगर निगम संजीवनी के नाम से बिक्री कर रहा है. अब गौमूत्र की बारी है. इससे होने वाली कमाई से गौशाला का खर्च निकलेगा और गायों की सेवा में भी मदद मिलेगी.
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कान्हा उपवन में बेसहारा पशुओं की संख्या तकरीबन 1400 के आस-पास है. इन पशुओं दो बड़े शेड में रखा गया है. पशुओं के गोबर से वर्मी कंपोस्ट तैयार कर इसकी बिक्री हो रही है. इससे गौशाला को अच्छी खासी कमाई हो जाती है. वर्मी कंपोस्ट की मांग बड़े स्तर है क्योंकि लोग प्राकृतिक खेती में ऑर्गेनिक खेती में इसका खूब इस्तेमाल करते हैं. अब गोमूत्र के व्यावसायिक उपयोग की शुरुआत नगर निगम गोरखपुर करने जा रहा है. गोमूत्र का इस्तेमाल दवा के रूप में और खाद के रूप में भी होता है. इससे निगम की कमाई बढ़ने की उम्मीद है.
जानकारी के मुताबिक, खेतों में पानी के साथ गोमूत्र को मिलाकर छिड़काव करने से फसल पर कीड़े नहीं लगेंगे. गोमूत्र को इकट्ठा कर इसे शुद्ध किया जाएगा और फिर बॉयलर में गर्म करने के बाद ठंडा कर बोतलों में भरा जाएगा. वहीं एक लीटर गोमूत्र को 15 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से कीड़े नहीं लगेंगे. साथ ही फ़फूंद से भी फसल बचती है. गोमूत्र मिले पानी में बीज रखने के बाद बुआई से फसल तो अच्छी होती ही है, कीड़े भी नहीं लगते हैं. यह फसलों में रोग नहीं लगने देता और पैदावार अच्छी होती है. इसके इस्तेमाल के बाद खेत में पोटाश और फॉस्फोरस की जरूरत नहीं पड़ती है. गोमूत्र से फिनायल और फर्श की सफाई के लिए लिक्विड बनाया जाएगा.
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इसके बारे में गोरखपुर निगम के आयुक्त कहते हैं, कान्हा उपवन में रह रहे निराश्रित गोवंश और नंदी वंश की संख्या बहुत ज्यादा है. लगभग 28-30 लाख रुपये इनकी देखभाल के लिए खर्च किए जाते हैं. दरअसल, कुशीनगर के एक व्यक्ति के साथ टाई अप कर गोबर से बने वर्मी कंपोस्ट को पहले से ही संजीवनी के नाम से बेच रहे हैं. अब गोमूत्र को बेचने की योजना है. इससे होने वाली आय से हम गोबर गैस प्लांट आदि चलाते हैं.(रिपोर्ट/रवि गुप्ता)
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