नए साल के आगमन के साथ ही कड़ाके की ठंड पड़नी शुरू हो गई है. इसके साथ ही कोहरे और शीतलहर का प्रकोप भी बढ़ गया है. इससे सरसों की फसल में अल्टरनेरिया झुलसा रोग लगने की आशंका बढ़ गई है. लेकिन उत्तर प्रदेश के चंदौली के किसानों को परेशान होने की जरूरत नहीं है. वे नीचे बताए गए तरीकों को अपनाकर सरसों की फसल को अल्टरनेरिया झुलसा रोग से बचा सकते हैं. साथ ही पैदावार में भी बढ़ोतरी हो सकती है.
दरअसल, चंदौली में किसान गेहूं के साथ- साथ बड़े स्तर पर सरसों की भी खेती करते हैं. अभी सरसों में फूल आने शुरू हो गए हैं. साथ ही फलियां भी बननी शुरू हो गई हैं. ऐसे में किसानों को लग रहा है कि शीतलहर के असर से फसल में अल्टरनेरिया झुलसा रोग लग सकता है, जिससे उत्पादन प्रभावित हो जाएगा. लेकिन कृषि विशेषज्ञ एके सिंह का कहना है कि किसानों को सरसों के खेत को नियमित रूप से निगरानी करनी चाहिए. अगर रोग के लक्षण दिखाई देते हैं, तो खेत में कीटनाशकों का झिड़काव करना चाहिए.
कृषि विशेषज्ञ का कहना है कि अल्टरनेरिया झुलसा रोग लगने पर सरसों की पत्तियों पर गहरे और भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. फिर धब्बों में गोल छल्ले साफ नजर आते लगते हैं. धीरे- धीरे ये रोग पूरी फसल को अपनी चपेट में ले लेता है. इससे रोग का असर पूरे पौधे पर दिखने लगता है. उनकी माने तो सरसों की फसल में अल्टरनेरिया झुलसा रोग लगने पर 50 प्रतिशत तक उत्पादन प्रभावित हो सकता है. चार किलोग्राम इंडोफिल एम-45 को एक हजार लीटर पानी में मिलकार घोल तैयार कर लें. फिर इस घोल का 10 से 12 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहें. इससे फसल की उपज अच्छी होगी.
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इसके अलावा सरसों की फसल को तुलासिता रोग से भी बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है. इससे भी किसानों को सावधान रहने की जरूरत है. इस रोग के लगने पर पत्तियों की निचली सतह पर बैंगनी-भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जो बाद में बड़े हो जाते हैं. यहीं से रोग जनक की बैगनी रंग की वृद्धि रुई के समान दिखाई देती है. इसके अलावा तना गलन रोग भी सरसों की फसल के लिए घातक है. इस रोग के लगने पर तनों पर लंबे आकार के भूरे जल शक्ति धब्बे बनते हैं. जो बाद में सफेद फफूंद की तरह दिखाने देने लगते हैं.
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