पिछले साल के आखरी महीने में हुई बारिश और बर्फबारी की वजह से हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादक किसानों के चेहरे खिल गए हैं. किसानों का कहना है कि अगर जनवरी महीने के दौरान भी इसी तरह से रूक- रूक कर बर्फबारी होती रही, तो सेब का उत्पादन बढ़ सकता है, क्योंकि बर्फबारी सेब की फसल के लिए फायदेमंद होती है. ऐसे भी इस पहाड़ी राज्य में किसानों के लिए आय का मुख्य स्त्रोत सेब की बागवानी ही है.
पिछले साल 6 दिसंबर को मनाली में पहली बर्फबारी हुई थी. इसके बाद धीरे- धीरे पारा लुढकने लगा है. इससे पूरी घाटी शीतलहर की चपेट में है. ऐसे भी बर्फबारी को सेब के लिए सफेद खाद माना जाता है, जो घाटी की एक प्रमुख फसल है. सेब की फसल कुल्लू जिले के 25 प्रतिशत किसानों के लिए आय का एकमात्र स्रोत है, जबकि अन्य 50 प्रतिशत किसानों की 70 फीसदी से अधिक कमाई सेब की खेती से ही होती है.
सेब की शाही फसल के लिए लगभग 1,600 से 1,800 चिलिंग आवर्स की आवश्यकता होती है. चिलिंग ऑवर्स सेब के पौधों की सुप्त अवधि के दौरान 7 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर मौजूद रहने को कहते हैं. इससे सेब के पेड़ों को लंबे समय तक नमी मिलती रहती है. क्षेत्र के बागवानों का कहना है कि बार-बार बर्फबारी होने से सेब के पेड़ों को आवश्यक ठंडक का समय मिल जाता है. वे कहते हैं कि सेब की फसल अपनी बढ़ती परिस्थितियों के प्रति संवेदनशील है और अच्छी फसल के लिए बर्फबारी और कम तापमान बहुत जरूरी है.
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वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि बर्फबारी से सेब के बगीचों में कैंकर, स्केल, वूली एफिड, जड़ सड़न जैसी बीमारियों के फैलने की संभावना कम हो जाती है. साथ ही बर्फबारी से बगीचों में चूहों की संख्या भी कम हो जाती है, क्योंकि ठंड में बड़ी संख्या में चूहे मर जाते हैं. चूहे बगीचों में सेब के पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं. बर्फ बगीचों में घुन की समस्या को कम करने में भी मदद करती है. ऐसे में किसानों को उम्मीद है कि इस साल सेब की बेहतर पैदावार होगी, जिससे वे बंपर कमाई कर सकेंगे.
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