पशुपालन किसानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण कृषि गतिविधि मानी जाती है, इससे दूध, खाद और अन्य कृषि उत्पाद मिलते हैं. वहीं, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पशुपालन को विशेष माना जाता है, क्योंकि यह कई लोगों के लिए कमाई का मुख्य साधन भी होता है. लेकिन कभी-कभी पशु के बीमार होने के बाद उन्हें काफी नुकसान भी उठा पड़ता है, वहीं कुछ बीमारी पशु के लिए जानलेवा होती है. ऐसे ही पशुओं में होने वाली बीमारी खुरपका है. इस रोग के लक्षण भेंड़ो में अधिक देखने को मिलती है. जो गीले और नमी वाली जगहों पर चरती हैं. ऐसे में आइए जानते हैं क्या हैं इस रोग के लक्षण और कैसे करें रोकथाम.
फुटरॉट यानी खुरपका एक जीवाणु जनित रोग है. यह दो प्रकार के अनॉक्सी कारक जीवाणुओं के प्रभाव के कारण होता है. इनमें से एक जीवाणु खुरों को गलाने का काम करता है और दूसरा संक्रमण को बढ़ाने का करता है. ये जीवाणु गीली मिट्टी, गोबर और पानी के माध्यम से एक संक्रमित भेड़ से दूसरी स्वस्थ भेड़ तक फैलता है. इसी कारण रेवड़ में एक भेड़ के संक्रमित होते ही दूसरी भेड़ों में इसका संक्रमण बड़ी तेजी से फैलता है.
फुटरॉट में सबसे पहले पशु के पैरों में दोनों खुरों के बीच की चमड़ी लाल हो जाती है. फिर उसमें सूजन आने लगती है. दोनों खुरों के बीच के जगह को अंगूठे से दबाने पर पशु दर्द के कारण पैर को छिटकता है. रोग बढ़ने के साथ-साथ खुर कोमल होने लगते हैं और पैर का तलवा अन्दर धंसने लगता है. खुरों के गलने के कारण उनमें से दुर्गन्ध आने लगती है. इस अवस्था तक भी उपचार नहीं होने पर खुरों के बीच में कीड़े पड़ जाते हैं. इससे पैर सड़ने लगते हैं धीरे-धीरे पूरा खुर गलने के कारण पूरा खोल ही अलग हो जाता है, जिसके बाद भेड़ लगाकर चलने लगती है. ऐसे में उचित उपचार और प्रबंधन के अभाव में पशु की मृत्यु भी हो जाती है.
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किसी भी रोग के होने पर सबसे पहले पशु को पशु चिकित्सक से दिखाना चाहिए. वहीं, भेड़ों में होने वाले खुरपका रोग के लिए कोई कारगर टीका बाजार में उपलब्ध नहीं है. ऐसे में इसके रोकथाम के लिए अलग-अलग उपायों को अपनाना चाहिए. जैसे कि, भेड़ों के खूर को नियमित रूप से वर्ष में दो बार काटना चाहिए. विशेष रूप से बरसात का शुरु होने से पहले ये करना काफी जरूरी है. खुरों के काटने से अनॉक्सी कारक जीवाणु वृद्धि नहीं कर पाते हैं.
इसके साथ ही किसी भी भेड़ को खरीदने से पहले यह अवश्य पता कर लेना चाहिए कि जिस रेवड़ से भेड़ खरीदी जा रही है, उसमें किसी अन्य भेड़ को खुरपका की समस्या तो नहीं है. यदि रेवड़ में किसी भी भेड़ में फुटरॉट के लक्षण दिख रहे हों, तो उस रेवड़ से भेड़ न खरीदें. किसी भी नए पशु को रेवड़ में शामिल करने से पहले उसे एक माह तक अलग बाड़े में रखकर यह जांचना चाहिए कि कहीं उसमें फुटरॉट के कोई लक्षण तो नहीं आ रहे हैं. यदि पशु में फुटरॉट संबंधी कोई भी लक्षण दिखाई दें, तो उसे रेवड़ में शामिल करने के बजाय उसका उपचार करना चाहिए.
पशु के बाड़े को हर समय सूखा रखना चाहिए, विशेष रूप से बारिश के में यह ध्यान रखना चाहिए कि बाड़े में कीचड़ बिल्कुल न हो. इसके लिए बारिश के मौसम से पहले ही बाड़े के फर्श के गोबर को हटा देना चाहिए और सूखी बालू रेत बिछवानी चाहिए. इसके अलावा भेड़ों को कीचड़ वाली जगह पर नहीं चराना चाहिए. साथ ही बाड़े में पानी आने वाली दरारों या छेदों की मरम्मत करते रहना चाहिए. ताकि पानी के रिसाव से फर्श गीला न हो.
बाहर से चरकर आने वाली भेड़ों के लिए बाड़े के प्रवेश द्वार पर फुटपाथ की व्यवस्था करनी चाहिए. फुटपाथ के लिए जिंक सल्फेट, कॉपर सल्फेट या पोटेशियम परमेनेगेट का उपयोग करना चाहिए. बाड़े में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को फुटपाथ से होकर ही प्रवेश करना चाहिए. किसी भी भेड़ में हल्का सा भी लंगड़ापन दिखाई दे तो उसे दूसरे भेड़ों से अलग कर देना चाहिए.
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