पपीते की खेती भारत में लगातार लोकप्रिय हो रही है, और क्षेत्रफल के हिसाब से यह देश का पांचवां सबसे पसंदीदा फल है. घर के छोटे बगीचों से लेकर बड़े-बड़े बागानों तक, इसकी बागवानी का क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है. साल 2022 के आंकड़ों के अनुसार, भारत विश्व में पपीता उत्पादन में 31.51 फीसदी के साथ सबसे आगे है, जिसका सालाना उत्पादन लगभग 50.75 लाख टन और रकबा लगभग 1.5 लाख हेक्टेयर है. पपीते की खेती किसानों के लिए अधिक लाभदायक साबित हो रही है. हालांकि, भारी बरसात इस फसल के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाती है, जिससे पौधों को बचाना मुश्किल हो जाता है.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा-समस्तीपुर, बिहार में अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के पूर्व प्रधान अन्वेषक और वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक और प्रमुख फल रोग विशेषज्ञ डॉ. एस.के. सिंह के अनुसार, "यदि खेत में 24 घंटे से अधिक पानी जमा रहा, तो पपीते के पौधों को बचाना लगभग असंभव हो जाता है. इसलिए, बरसात के समय इसकी खेती से बचना चाहिए."
पपीते की जड़ें सतही होती हैं, जो लंबे समय तक जल-जमाव सहन नहीं कर सकतीं. बरसात में भारी वर्षा के कारण खेतों में पानी भर जाता है, जिससे मिट्टी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और जड़ें सड़ने लगती हैं. फाइटोफ्थोरा और पायथियम जैसे फफूंद जनित रोग इस स्थिति में अधिक अटैक करते और पौधों को नष्ट कर देते हैं. एक बार यह रोग फैल जाए तो पूरे खेत की फसल प्रभावित हो सकती है. बरसात के दौरान उच्च आर्द्रता और लगातार गीली परिस्थितियां फंगल और बैक्टीरियल रोगों के प्रसार को बढ़ावा देती हैं. पपीते में एन्थ्रेक्नोज, ब्लैक स्पॉट, और रिंग स्पॉट वायरस जैसी बीमारियां इस मौसम में अधिक तीव्रता से फैलती हैं. इन रोगों का नियंत्रण कठिन मुश्किल हो जाता है.
तेज बारिश के कारण मिट्टी में मौजूद जरूरी पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम बह जाते हैं. इससे पपीते की वृद्धि रुक जाती है और फलों का विकास प्रभावित होता है. इस स्थिति से उबरने के लिए किसानों को बार-बार उर्वरक डालने पड़ते हैं, जिससे लागत बढ़ जाती है. बरसात के मौसम में फल मक्खी, एफिड, व्हाइट और फ्लाई, स्लग जैसे कीटों की संख्या बढ़ जाती है. ये कीट पौधों को चूसकर कमजोर करते हैं और कई बार रोगों को फैलाने का कार्य भी करते हैं. इन पर नियंत्रण के लिए अधिक मात्रा में कीटनाशकों की आवश्यकता होती है, जो महंगे होने के साथ-साथ जैविक खेती की दिशा में बाधा बनते हैं.
भारी बारिश, तेज हवाएं और कहीं-कहीं ओलावृष्टि से पपीते के नाजुक पौधे टूट जाते हैं या उखड़ जाते हैं. नए पौधे विशेष रूप से इस तरह की प्राकृतिक घटनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं. इससे न केवल फसल नष्ट होती है, बल्कि उत्पादन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है. लगातार बारिश से मिट्टी में वायु संचरण और जल निकास बाधित होता है. यह स्थिति जड़ों के लिए हानिकारक होती है. बरसात के मौसम में कटाई किए गए पपीते में अधिक नमी होती हैं. इससे फलों की गुणवत्ता, स्वाद और भंडारण क्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ता है. अधिक नमी के कारण कटाई के बाद फफूंदजनित बीमारियां जल्दी लगती हैं, जिससे बाजार में उनकी कीमत गिर जाती है और किसान को घाटा होता है.
पपीता एक लाभकारी फसल है, लेकिन इसे गलत मौसम में लगाने से भारी नुकसान हो सकता है. बरसात के मौसम में पपीता लगाने से बचना चाहिए क्योंकि यह मौसम जलभराव, रोग, कीट और पोषक तत्वों की कमी जैसी कई समस्याएं लेकर आता है. इनसे निपटना कठिन और खर्चीला होता है. डॉ. एस.के. सिंह के अनुसार, पपीता लगाने के लिए शुष्क और नियंत्रित सिंचाई वाले मौसम का चयन करना ही समझदारी है. इससे न केवल पौधों की सुरक्षा होती है, बल्कि अच्छी उपज और बेहतर गुणवत्ता वाले फल भी प्राप्त होते हैं.
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