इस समय देश के कई राज्यों में तापमान सामान्य से अधिक चल रहा है. ऐसे में किसान इन कृषि कार्यों को कर सकते हैं. तापमान को ध्यान में रखते हुए किसान इस समय लहसुन की बुवाई कर सकते है. बुवाई से पूर्व मिट्टी में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें. उन्नत किस्में –जी-1, जी-41, जी-50, जी-282. खेत में देसी खाद और फास्फोरस उर्वरक अवश्य डालें. इस मौसम में किसान गाजर की बुवाई मेड़ों पर कर सकते है. बुवाई से पूर्व मिट्टी में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें. उन्नत किस्में- पूसा रूधिरा. बीज दर 2.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़. बुवाई से पूर्व बीज को केप्टान का 2 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें तथा खेत में देसी खाद, पोटाश और फाॅस्फोरस खाद जरूर डालें. गाजर की बुवाई मशीन द्वारा करने से बीज 1.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है, जिससे बीज की बचत तथा उत्पाद की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है.
इस मौसम में किसान इस समय सरसों साग- पूसा साग-1, मूली- जापानी व्हाईट, हिल क्वीन, पूसा मृदुला (फ्रेच मूली), पालक- आल ग्रीन,पूसा भारती, शलगम- पूसा स्वेती या स्थानीय लाल किस्म, बथुआ- पूसा बथुआ-1; मेथी-पूसा कसुरी; गांठ गोभी-व्हाईट वियना,पर्पल वियना तथा धनिया- पंत हरितमा या संकर किस्मोंकी बुवाई मेड़ों (उथली क्यारियों) पर करें. बुवाई से पूर्व मिट्टी में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें.
इस मौसम में ब्रोकली, फूलगोभी तथा बन्दगोभी की पौधशाला तैयार करने के लिए उपयुक्त है. पौधशाला भूमि से उठी हुई क्यारियों पर ही बनाएं. जिन किसानों की पौधशाला तैयार है, वे मौसस को ध्यान में रखते हुए पौधों की रोपाई ऊंची मेड़ों पर करें.
मिर्च तथा टमाटर के खेतों में विषाणु रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर जमीन में दबा दें. यदि प्रकोप अधिक है तो इमिडाक्लोप्रिड़ का 0.3 मि.ली. प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें. इस मौसम में गेंदे की तैयार पौध की मेड़ों पर रोपाई करें. किसान ग्लेडिओलस की बुवाई भी इस समय कर सकते हैं.
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किसानों को सलाह है कि खरीफ फ़सलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को ना जलाएं, क्योंकि इससे वातावरण में प्रदूषण ज़्यादा होता है, जिससे स्वास्थय सम्बन्धी बीमारियों की संभावना बढ जाती है. इससे उत्पन्न धुंध के कारण सूर्य की किरणे फसलों तक कम पहुंचती है, जिससे फसलों में प्रकाश संश्लेषण और वाष्पोत्सर्जन की प्रकिया प्रभावित होती है, जिससे भोजन बनाने में कमी आती है. इस कारण फसलों की उत्पादकता व गुणवत्ता प्रभावित होती है.
किसानों को सलाह है कि धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जमीन में मिला दें. इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है, साथ ही यह पलवार का भी काम करती है, जिससे मिट्टी से नमी का वाष्पोत्सर्जन कम होता है. नमी मिट्टी में संरक्षित रहती है. धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डीकंपोजर कैप्सूल का उपयोग 4 कैप्सूल/हेक्टेयर के हिसाब से किया जा सकता है.
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