बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के चिल्ली गांव आज औषधि खेती यानी हर्बल फार्मिंग का एक बड़ा हब बन चुका है. राठ ब्लाॅक के युवा किसान रमाकांत राजपूत हर्बल फार्मिंग से लाखों में आमदनी कर रहे हैं. इंडिया टुडे के किसान तक से बातचीत में रमाकांत ने बताया कि 5 एकड़ में सालाना 60 लाख रुपये तक की कमाई हो जाती हैं. उन्होंने बताया कि वो बीते 8 वर्षों से औषधि खेती करते आ रहे हैं. इससे पहले आर्गेनिक इंडिया नाम का कंपनी तुलसी की खेती के लिए के लिए जमीन की मांग की. सारा खर्चा कंपनी के लोग लगाने को तैयार थे. जो आमदनी होगी वो हम आप लोगों को दे देंगे. वहीं 2-3 साल तक ऐसा चला रहा, लेकिन हमको इनका सिस्टम समझ में नहीं आया. इसलिए हम खुद औषधीय खेती करने लगे. दरअसल, मेरे पिता जी पहले औषधि खेती करते थे. मुझे कोई खाद परेशानी नहीं हुई.
उन्होंने बताया कि तुलसी और रोज़ैल की खेती की करते है. वहीं 5 एकड़ में हम इसकी खेती कर रहे है. कुल यह 6 महीने की फसल है, जबकि एक एकड़ में 450 किलो का उत्पादन हो जाता है. रमाकांत बताते हैं कि एक एकड़ में 30 से 35 हजार रुपये की लागत आ जाती है. मार्केट में बहुत अधिक डिमांड है. आज इसकी कीमत में 200 से 230 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. क्योंकि इस साल प्रोडक्शन ज्यादा हुआ है. पिछले साल 280 से 320 रुपये प्रति किलो के रेट से बिका था.
हमीरपुर जिले की चिल्ली गांव निवासी सफल किसान रमाकांत ने बताया कि कुल खर्च निकालने के बाद पिछले साल 60 लाख रुपये की आय हुई थी. उन्होंने बताया कि तुलसी और रोजैल की सप्लाई एजेंट के जरिए अमेरिका तक होती है. वहीं हम लोग जमीन को लीज पर लेकर दूसरी फसलों की भी खेती कर रहे है, जैसे सिया, इनोवा सीड्स और कैमोमाइल की खेती से भी इनकम हो रही है.
रोजैल की खेती बहुत ही आसान है. इस फसल की बुवाई जुलाई के पहले सप्ताह में की जाती है. सबसे खास बात तो ये है कि इसको हर प्रकार की मिट्टी में पैदा किया जा सकता है. रमाकांत बताते हैं कि जब तक रोज़ैल का पौधा बड़ा होता है तब तक उर्द की कटाई हो जाती है. वहीं एक-दो से ढाई कुंतल तक का उत्पादन हो जाता है. 5 महीने में रोजैल का 4-6 कुंतल का उत्पादन मिल जाता है.
तुलसी की खेती के लिए अप्रैल-मई महीने से ही तैयारी शुरू की जाती है. दुनिया के बाजार में तुलसी के तेलों की कीमत 2000 से 8000 रुपये किलो है. तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति होती है. विशेषकर सर्दी, खांसी बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है. ऐसे में देश में इसकी खेती का दायरा बढ़ रहा है. तुलसी की मुख्य प्रजातियां रामा और श्यामा हैं, जिन्हें अधिकांश घरों में लगाया जाता है. रामा के पत्तों का रंग हल्का होता है, इसलिए उसे 'गौरी' कहा जाता है, जबकि श्यामा तुलसी के पत्तों का रंग काला होता है और इसमें कफनाशक गुण होते हैं. इसलिए इसे दवा के रूप में अधिक उपयोग में लाया जाता है.
इस औषधीय पौधों की खासियत ये है कि इसका तना, पत्तियां और बीज सब कुछ उपयोग में लाया जाता है. अच्छी बात यह है की हर्बल फार्मिंग को आवारा जानवर नुकसान नहीं पहुंचते, मौसम की मार का भी असर बहुत कम होता है और बहुत सारी कंपनियां से अनुबंध होने के कारण किसानों को फसल का उचित दाम मिल जाता है. उधर, यूपी सरकार बुंदेलखंड के किसानों को कृषि उपज को और बेहतर करने और बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है.
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