उत्तर प्रदेश गन्ना विकास विभाग ने गन्ने की बुआई को लेकर कई अहम सुझाव दिए हैं, ताकि गन्ने की उपज और गुणवत्ता में सुधार हो सके. इन सुझावों में बेहतर किस्मों का चयन, बुआई का सही समय बताया गया है. गन्ना विकास विभाग ने गन्ने की नई और उन्नत किस्मों को अपनाने की सिफारिश की है, जो उत्पादन में वृद्धि और अधिक चीनी परता देने में सक्षम हैं. उत्तर प्रदेश गन्ना विकास विभाग ने बताया है कि गन्ना किस्म को.0238 लाल सड़न रोग से प्रभावित है, जिससे उपज में गिरावट आ रही है. इसलिए इस किस्म का विस्थापन जरूरी हो गया है राज्य सरकार ने गन्ना शोध संस्थानों के माध्यम से कुछ नई किस्मों को स्वीकृत किया है, जो अच्छा उत्पादन और चीनी परता देने में सक्षम हैं, साथ ही लाल सड़न रोग के प्रति रोग-रोधी भी हैं.
गन्ना विकास विभाग उत्तर प्रदेश के अनुसार नई गन्ना किस्मों में का.शा.19231, का.से.17451, कa.से.15023, को.से. 0118,को.लख.14201, को.लख.16202, का.शा.13235, को.शा.17231, को.शा.18831 और को.लख.15466 को.0238 की जगह चयनित की गईं. इनमें से का.से.17451, का.लख.16470 (मध्य देर) और कोलख.15466 केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए बेहतर हैं.
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गन्ने की बुवाई का समय क्षेत्र, जलवायु और मिट्टी के प्रकार जैसे कारकों पर निर्भर करता है. इसलिए, उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में गन्ने की बोवाई 15 जनवरी से फरवरी तक की जाती है. वही मध्य क्षेत्र 15 फरवरी से मार्च तक गन्ने की बुवाई करने का सही समय होता है. जबकि पश्चिमी क्षेत्र में 15 फरवरी से मार्च तक गन्ने की बोवाई की जाती है. इस समय जलवायु और तापमान गन्ने की बेहतर वृद्धि के लिए अनुकूल रहते हैं. गेहूं की कटाई के बाद गन्ने की बुवाई करनी, तो अप्रैल से 16 मई तक बोवाई की जा सकती है, हालांकि इस समय उत्पादन में कुछ कमी हो सकती है. अपनी विशिष्ट परिस्थितियों के लिए सबसे उपयुक्त समय निर्धारित करने के लिए स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से परामर्श करना सबसे अच्छा है.
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गन्ना बुआई की SSI विधि
एसएसआई विधि से गन्ने की खेती के लिए एक आंख वाली गुल्लियों को काटकर पहले गन्ने की नर्सरी तैयार करते हैं. जिसे मात्र 25-35 दिन के भीतर पौध तैयार हो जाती है. मुख्य खेत में पौधों के बीच का फासला 5 x 2 फीट रखना होता है. मिट्टी में ज़रूरी नमी बरकरार रखते हुए खेत में जलभराव रोकना होता है.
ट्रेंच विधि से गन्ने की बुआई
SSI विधि के अलावा ट्रेंच विधि से खेतों में गन्ना बुआई करने पर दोगुनी उपज प्राप्त की जा सकती है. साथ में किसान इंटर क्रॉप के रुप में यानी सह फसली खेती कर इससे अच्छा लाभ कमा सकते हैं. ट्रेंच विधि के तहत खेतों में 120 सेमी की दूरी पर 30 सेमी चौड़ी नालियों में 25 से 30 सेमी गहराई में गन्ना बुआई की जाती है. इस विधि से गन्ने के सभी पौधों की बढ़वार अच्छे ढंग से होती रहती है.
गन्ने में 150 किलो नाइट्रोजन , 80 किलो फास्फोरस और 60 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति एकड़ की जरूरत पड़ती है. सिंगल सुपर फास्फेट और पोटाश की पूरी मात्रा और यूरिया की आधी मात्रा बुआई के पहले नालियों में डाल देनी चाहिए. बाकी यूरिया को चार भागों में बांटकर अंकुरण के समय, कल्ले निकलते समय, फिर हल्की मिट्टी चढ़ाते समय और उसके बाद अंत में भारी मिट्टी चढ़ाते समय दें.
दरअसल गन्ने में इंटरक्रॉप खेती किसानों की लेट भुगतान की समस्या को दूर करने में काफी कारगर है. आप गन्ना के साथ-साथ ऐसी फ़सल लगा सकते हैं जो आपको गन्ना तैयार होने में लगने वाले समय के बीच थोड़ी-थोड़ी आमदनी देती रहेगी. इंटरक्रॉपिंग के लिए बसंतकालीन गन्ने की फसल के बीच में प्याज, फ्रेन्चबीन, उर्द, मूंग या फिर सीधे बढ़ने वाली कद्धवर्गीय सब्जियां जैसे खीरा और ककड़ी लगा सकते हैं. इस तरह फसल को बिना नुकसान पहुंचाए प्रति एकड़ 20 हजार से लेकर 40 हजार तक अतिरिक्त आमदनी ली जा सकती है. इस तरह गन्ने की आधुनिक ढंग से बुआई करने पर आपको बेहतर उपज मिलेगी, और बीच-बीच में इंटरक्रॉप फसल के तौर पर अतिरिक्त आमदनी भी होती रहे.
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