आलू की फसल को चौपट कर देंगे ये कीट और रोग, बचाव के लिए अपनाएं ये उपाय

आलू की फसल को चौपट कर देंगे ये कीट और रोग, बचाव के लिए अपनाएं ये उपाय

देश के सभी राज्यों में लगभग आलू की खेती पूरी हो चुकी है. खेतों में अब आलू के कल्ले निकलने भी शुरू हो गए हैं. ऐसे में पौधों पर अब कई रोग और कीटों का असर देखने को मिल रहा है. इसको लेकर बिहार के कृषि विभाग ने आलू की फसल में लगने वाले रोग और कीटों की पहचान और प्रबंधन का वैज्ञानिक तरीका बताया है.

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आलू की फसल को चौपट कर देंगे ये कीट और रोग, बचाव के लिए अपनाएं ये उपायआलू की फसल में रोग

देश में नकदी फसल के रूप में आलू की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. दरअसल, देश के अधिकतर राज्यों में किसानों ने आलू की बुवाई का काम पूरा कर लिया है. लेकिन बात जब आलू की खेती की आती है तो आलू में भी कई बीमारियां लग जाती हैं, जिससे पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाती है. इसके लिए सबसे ज़रूरी है कि बीमारी की पहचान की जाए, क्योंकि जब तक इसकी पहचान नहीं होगी, तब तक इसका प्रबंधन भी मुश्किल है. ऐसे में बिहार के कृषि विभाग ने आलू की फसल में लगने वाले रोग और कीटों की पहचान और प्रबंधन का वैज्ञानिक तरीका बताया है. आइए जानते हैं आलू में लगने वाले रोगों की पहचान और रोकथाम के बारे में.

सफेद भृंग कीट के लक्षण और बचाव

आलू के पौधे अब थोड़े बड़े होने लगे हैं. इस बीच आलू की फसल पर सफेद भृंग कीट संक्रमण देखा जा रहा है. इस कीट के लगने से आलू का पौधा सूख जाता है. ये कीट आलू की जड़ों को चट कर जाते हैं. मादा कीट मिट्टी में अंडे देती है, जिससे मटमैले रंग के कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं.

कृषि विभाग के अनुसार, किसानों को इस कीट से फसलों के बचाव के लिए शाम के 7 से 9 बजे के बीच में 1 लाइट ट्रैप प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाना चाहिए. इसके साथ ही किसानों को कार्बोफ्यूरान 3 जी की 25 किलो मात्रा (प्रति हेक्टेयर) का उपयोग बुवाई के समय या कुछ दिनों के बाद करना चाहिए.

पछेती झुलसा रोग के लक्षण और बचाव

आलू की फसल के लिए पछेती झुलसा रोग बहुत खतरनाक होता है. इस रोग के प्रकोप में आलू के पौधे की पत्तियों के किनारा और ऊपर का भाग सूख जाता है. वहीं, पत्ती के सूखे भाग को हाथ से रगड़ने पर खर-खर की आवाज आती है. इस तरह, किसान इस रोग की पहचान आसानी से कर सकते हैं. साथ ही इस रोग के लगने से किसानों को उत्पादन में 40 से 50 फीसदी का नुकसान उठाना पड़ता है.

कृषि विभाग के अनुसार, बुवाई के 15 दिनों के अंतराल पर मैंकोजेब 175 प्रतिशत की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. इस रोग का अधिक संक्रमण होने पर मैंकोजेब, मेटालैक्सिल और कार्बेण्डाजिम मैन्कोजेब को मिलाकर करीब 2 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करनी चाहिए. इस छिड़काव से आप अपनी फसल को बर्बाद होने से बचा सकते हैं.

अगेती झुलसा रोग के लक्षण और बचाव

अगेती झुलसा रोग  के संक्रमण से पौधे की पत्तियों पर भूरे रंग का धब्बा बन जाता है. इस धब्बे का आकार गोल और अंगूठी जैसा लगता है. इन धब्बों के कारण पत्तियां नकारात्मक रूप से प्रभावित होती हैं. वहीं, इस रोग से उत्पादन पर 70 फीसदी असर पड़ता है.

इस रोग से बचने के लिए किसानों को खेत को साफ-सुथरा रखना चाहिए. किसान मैंकोजेब 75 प्रतिशत की 2 ग्राम मात्रा या कार्बेन्डाजिम और मैन्कोजेब को मिलाकर उसकी कुल 2 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं.

इन कीटों से भी होता है आलू को नुकसान

आलू की फसल में झुलसा रोग से ही नहीं बल्कि माहू और थ्रिप्स किट से भी खतरा रहता है. ऐसे में कृषि किसानों को रोज अपनी फसलों का निरीक्षण करना चाहिए. थ्रिप्स और माहू के कीट पत्तियों के निचले भाग में चिपके रहते हैं. निरीक्षण करने में इस तरह के अगर कीट दिखाई दें तो उन्हें एमीदाक्लोपीईड की 3 ml  को प्रति लीटर में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए जिससे यह बीमारी पूरी तरीके से नियंत्रित हो जाती है.

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