खीरे की खेती से किसान बेहतर मुनाफा कमाते हैं, लेकिन जुलाई-अगस्त के महीने में खीरे के फलों में रोग लगने का भी खतरा बढ़ जाता है. जुलाई-अगस्त के महीने में खीरे के फल में चिपचिपा झुलसा रोग का प्रभाव देखा जाता है. ये रोग कद्दू वर्गीय फसलों की एक प्रमुख बीमारी है. इसकी पहचान और प्रबंधन करना किसानों के लिए बहुत जरूरी होता है. इस रोग के लगने से किसानों को कई बार नुकसान का सामना करना पड़ता है. ऐसे में किसान इस रोग के लक्षण को जानकर समस्या से निजात पा सकते हैं. इस उपाय को अपनाकर किसान खीरे की फसल को चिपचिपा झुलसा रोग से बचा सकते हैं.
तापमान: खीरे में लगने वाले चिपचिपा झुलसा रोग के विकास के लिए अधिक तापमान सीमा 20-30 डिग्री के बीच होता है. हालांकि, संक्रमण 15-35 डिग्री के बीच हो सकता है. वहीं, अधिक तापमान रोग की गति को और तेज कर सकता है.
नमी: खीरे में लगने वाले चिपचिपा झुलसा रोग को उच्च नमी बढ़ा देती है. नमी से यह इस रोग का फैलाव और संक्रमण दोनों बढ़ता है. साथ ही अधिक बारिश, अधिक सिंचाई और पत्तियों पर पानी इस रोग को और बढ़ा देते हैं.
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पत्तियां: चिपचिपा झुलसा रोग लगने पर पत्तियां पानी से लथपथ होकर भूरे या पीले रंग की हो जाती हैं. पत्तियां पीले रंग के घेरे से घिर जाती हैं और फट कर गिर सकती हैं, जिससे पत्तियां उखड़ी हुई दिखाई देती हैं.
तना: पानी से भीगे हुए जख्म की तरह निशान जो भूरे या भूरे रंग के हो जाते हैं, वे तने पर दिखते हैं. इससे तने फट सकते हैं और लाल-भूरे या काले रंग के चिपचिपे हो सकते हैं. साथ ही इस रोग के लगने से कई बार पौधे मर भी सकते हैं.
फल: चिपचिपा झुलसा रोग जब फलों में लग जाता है तो फलों पर भूरे या काले धब्बे हो जाते हैं. धब्बे धीरे-धीरे चिकने होने के बाद चिपचिपे हो जाते हैं. साथ ही फलों पर फफूंद दिखाई देने लगते हैं.
चिपचिपा झुलसा रोग से बचाव के लिए किसान खेतों में थायोफैनेट मिथाइल को 250-600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करें. इसके अलावा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2 ग्राम प्रति लीटर का घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करें. साथ ही किसान खीरे की फसल को बचाने के लिए मैन्कोजेब 500 ग्राम प्रति एकड़ दर से घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं. ऐसा करने से खीरे को इस रोग से बचाया जा सकता है.
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