पशुओं में इन वजहों से होता है आफरा, मौत भी हो सकती है...घर पर इस आसान विधि से करें उपचार
अफरा रोग में जानवरों के पेट में अमोनिया, कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन जैसी दूषित गैस बहुत ज्यादा मात्रा में बनने लगती है. इस वजह से उनकी छाती पर दबाव पड़ने लगता है. अगर समय रहते आपने अपने जानवर का इलाज नहीं कराया तो फिर उनकी मौत तक हो सकती है. इस रोग के पशु का पेट हमेशा फूला हुआ नजर आएगा.
अफरा यानी गाय, भैंस, बकरी और भेड़ जैसे जानवरों में होने वाला वह रोग जिसमें अक्सर जानवर पेट फूलने की समस्या से पीड़ित रहता है. कृषि विशेषज्ञों की मानें तो इस रोग को आप जानवरों के पेट में गैस का रोग भी कह सकते हैं. यह रोग अक्सर उन जानवरों को होता है जो जुगाली करते हैं. माना जाता है कि ज्यादा खाने से खासकर हरे चारे की मात्रा ज्यादा होने से यह रोग हो जाता है. कभी-कभी दूषित चारा खा लेने से भी जानवर इसके शिकार हो जाते हैं. ऐसे में जानिए अगर आपके घर में बंधी गाय, भैंस या फिर बकरी को अफरा रोग हो गया है तो कैसे छुटकारा पाया जा सकता है.
क्या है पशुओं में अफरा की वजह
इस रोग में जानवरों के पेट में अमोनिया, कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन जैसी दूषित गैस बहुत ज्यादा मात्रा में बनने लगती है. इस वजह से उनकी छाती पर दबाव पड़ने लगता है. अगर समय रहते आपने अपने जानवर का इलाज नहीं कराया तो फिर उनकी मौत तक हो सकती है. इस रोग के पशु का पेट हमेशा फूला हुआ नजर आएगा. जब आप उसे थपथपाएंगे तो आपको एक आवाज भी सुनाई देगी जो बिल्कुल किसी ढोल से निकलने वाली आवाज सी लगेगी. पीड़ित पशु हमेशा बेचैन रहेगा और जुगाली भी नहीं करेगा. साथ ही उसे सांस लेने में भी तकलीफ होगी. अगर उसे तुरंत इलाज नहीं मुहैया कराया गया तो किसी भी पल उसकी मौत हो सकती है.
इसके इलाज में सबसे ऊपर है कि उसकी डाइट यानी उसके खाने-पीने का इतिहास रखा जाएगा. साथ ही रोग होने पर जानवर को चारा-पानी न दें.
जैसे ही रोग की शुरुआत हो, वैसे ही जानवर को इधर-उधर घुमाया जाए तो फायदा हो सकता है.
अगर रोग ज्यादा गंभीर है तो फिर ट्रोकार और केनूला की मदद से पेट को तुरंत पंचर करके गैस निकाल देनी चाहिए.
अगर बीमारी बहुत ज्यादा सीरियस नहीं है तो फिर जानवर के जबड़े के बीच में लकड़ी का एक टुकड़ा डाल देना चाहिए. ऐसा करने से गैस को बाहर निकलने में मदद मिलेगी साथ ही लार भी बाहर की तरफ गिरेगी. ऐसे में गैस बनने की प्रक्रिया कम हो सकेगी.
गैस को कम करने के लिए तारपीन के तेल 30 मिली और मीठा सोडा 50 ग्राम मिलाकर पशु को पिलाने से आराम मिलता है. आप चाहें तो टिम्पोल पाउडर को गुनगुने पानी में मिलाकर पशु को देने से भी उसे आराम मिलेगा. आप चाहें तो सीरींज की मदद से भी पशु के पेट में इसे डाल सकते हैं.
पेट में बैक्टीरिया न पनपने पाएं इसके लिए एंटीबायोटिक्स दवाइयां डॉक्टर के परामर्श से देनी चाहिए.
पेट में हिस्टामिन का निर्माण होता है और यह खून में चले जाते हैं. इसलिए एंटी-हिस्टामीन दवाइयां जैसे एविल या कैडिस्टिन डॉक्टर की सलाह पर दी जा सकती हैं.
घरेलू नुस्खे जैसे अदरक, हींग, लहसुन को हर 10 ग्राम और 100 ग्राम प्याज का पेस्ट बनाकर जानवर की जीभ पर लगाएं.
इससे आराम मिलने पर जानवर की भूख को बढ़ाने के लिए विटामिन बी कॉम्प्लेक्स का इंजेक्शन तीन या चार दिनों तक देना चाहिए. आप चाहें तो फ्लोराटोन या रुमेन बोलस सुबह-शाम तीन दिनों तक पशु को दे सकते हैं.
हरा चारा जैसे बरसीम, ज्वार, रजका, बाजरा काटने के बाद कुछ समय के लिए छोड़ दें और फिर जानवर को खिलाएं. हरा चारा पूरी तरह से पकने के बाद ही जानवरों को दें.
गाय, भैंस को सुबह चरने के लिए न भेजें क्योंकि सुबह ओस की वजह से चारा भीगा होता है और यह अफरा की बड़ी वजह बनता है.
पशुओं की डाइट में 10 से 15 फीसदी तक कटा हुआ चारा दाने के साथ मिलाकर उन्हें दें.