देश के कई राज्यों में सर्दी और घने कोहरे का प्रकोप बढ़ता जा रहा है. बढ़ती ठंड लोगों के साथ ही किसानों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है क्योंकि इससे किसानों की मेहनत पर पानी फिर जाता है. दरअसल, लगातार गिरते तापमान से आलू की फसल पर पाले के असर होने लगता है. वहीं, आलू की फसल पर पाला पड़ने का खतरा सबसे अधिक 28 दिसंबर से 13 जनवरी तक रहता है. इन 15 दिनों में आलू बोने वाले किसान को सतर्क रहने की जरूरत होती है क्योंकि आलू की फसल का सबसे बड़ा दुश्मन पाला को माना जाता है. ऐसे में फसल को पाले से बचाने के लिए किसानों को कुछ एहतियाती उपायों को आजमाना चाहिए.
जब वायुमंडल का तापमान चार से कम डिग्री तक पहुंच जाए, तो पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है. इसकी आशंका 28 दिसंबर से 13 जनवरी तक अधिक रहती है. हवा न चल रही हो और आसमान साफ हो तब पाला पड़ने की संभावना और अधिक बढ़ जाती है. बता दें कि ये पाला पत्तियों पर जम जाता है फिर पत्तियों के नस फट जाती हैं, जिससे आलू की क्वालिटी और उत्पादन पर काफी फर्क पड़ता है और किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ता है.
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पाले से पौधों को बचाने के लिए किसानों को परंपरागत और रासायनिक तरीकों का प्रयोग करना चाहिए. खेतों में पौधों को रात में प्लास्टिक से ढक देना चाहिए, जिससे प्लास्टिक के अंदर का तापमान दो से तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है और आलू के पौधे पाले से बच जाते हैं. लेकिन प्लास्टिक से पौधों को ढकने में कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, पौधों पर प्लास्टिक डालने के बाद दक्षिणी और पूर्वी भाग खुला रखें, ताकि पौधों को सुबह और दोपहर में धूप मिलती रहे.
इसके अलावा आलू की फसल को 20 से 25 दिन तक का सड़ा हुआ चार लीटर मठ्ठा को सौ लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. आलू की फसल में ये छिड़काव दो से तीन बार करना चाहिए. सड़े हुए मट्ठे का उपयोग कीटनाशक के तौर पर भी कर सकते हैं. ये भी फसल को पाले से बचाने में काफी प्रभावी है.
आलू की खेती में वैज्ञानिकों द्वारा तैयार पाले की प्रतिरोधी किस्में भी इजाद की गई हैं, जिसकी खेती करने से किसानों को पाले का खतरा नहीं रहता है. पाला नहीं लगने वाली किस्में में कुफरी आलू, शीतमान, कुफरी सिंदूरी और कुफरी देवा किस्में तैयार की गई हैं. इन किस्मों की खेती करके किसान अच्छी उपज के साथ ही पाले से होने वाले नुकसान से छुटकारा पा सकते हैं.
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