लौकी एक बहुपयोगी सब्जी है. लौकी यानी घीया की खेती लगभग पूरे भारत में की जाती है. लोग इसके कच्चे फलों से सब्जियां, जूस और विभिन्न प्रकार की मिठाइयां बनाते हैं. वहीं इसके मुलायम फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और खनिज लवण के अलावा प्रचुर मात्रा में विटामिन पाये जाते हैं. स्वास्थ्यवर्धक लौकी किसान के लिए भी काफी फायदेमंद है. लौकी की उपयोगिता को समझते हुए, किसानों को चाहिए कि वो इसकी जैविक तकनीक से खेती करें. इससे उनकी फसल उत्पादन लागत भी कम होगी और रासायनिक उत्पादों के दुष्प्रभावों से भी बचा जा सकेगा. वहीं जैविक खेती पर्यावरण की दृष्टि से भी लाभकारी है इससे भूमि के जलस्तर में वृद्धि होती हैं. आइए जानते हैं कि किसानों को लौकी की जैविक खेती करने से कितना लाभ हो सकता है.
लौकी की खेती के लिए थोड़ी गर्म ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है. लौकी अधिक पाले को सहन करने में बिलकुल असमर्थ होती है. इसके लिए 18 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होना चाहिए. इसको गर्म और तर दोनों मौसम में उगाया जाता है. ज्यादातर लौकी की बुवाई गर्मी और वर्षा ऋतु में की जाती है.
किसान जैविक खेती द्वारा लौकी की फसल में अधिक उत्पादन के लिए रसायनों की जगह कम्पोस्ट खाद या गोबर से बने खाद का उपयोग करें. अगर किसान एक हेक्टेयर भूमि में इस खाद का उपयोग करना चाहता है तो उसके लिए उसको लगभग 25 से 30 टन सड़ी हुई गोबर की खाद और 50 किलो नीम की खली और 30 किलो अरंडी की खली का मिश्रण वाले खाद का उपयोग करना चाहिए. इस खाद के प्रयोग से किसानों को अधिक मात्रा में फसल का उत्पादन मिलता है.
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किसान अपने खाद के बनाए हुए मिश्रण को खेत में बुवाई से पहले समान मात्रा में बिखेर दें. उसके बाद दोबारा अच्छी तरह से अपने खेत की जुताई कर के खेत को तैयार कर दें. उसके बाद लौकी के बीज की बुवाई करें. ऐसे जैविक तरीके से खेती करने से किसानों को अधिक लाभ होगा.
फसल के तैयार होने के 20 से 25 दिन के बाद किसान अपनी फसलों पर नीम का काढ़ा और गोमूत्र को मिलाकर उसके तैयार किए गए मिश्रण को हर 10 से पंद्रह दिन पर छिड़काव करें. इस तरीके से खेती करके किसान अच्छा उत्पादन और बेहतर कमाई कर सकते हैं.
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