फसलों में आप कौन सा उर्वरक इस्तेमाल कर रहे हैं, इसका फायदा तभी मिलता है जब किसान को ये पता हो कि फसल में किस पोषक तत्व की कमी है. अगर फसल या मिट्टी में किसी तत्व की कमी हो जाए तो उसका असर सीधे फसल की पौधे की पत्तियों, तनों पर दिखता है जिससे आखिरकार पैदावार प्रभावित होती है. किसान यदि समय पर इन लक्षणों को पहचान लें, तो फसल को भारी नुकसान से बचाना बेहद आसान हो जाता है. कृषि विशेषज्ञ ये बताते हैं कि पौधों में पोषक तत्वों की कमी की पहचान इनकी पत्तियों के रंग, आकार और बनावट से कर सकते हैं. इसलिए आज हम आपको फसल में प्रमुख पोषक तत्वों की कमी के मुख्य लक्षण और उनसे बचाव के उपाय बता रहे हैं.
जब पौधे में नाइट्रोजन की कमी होती है तो इसके पुराने पत्ते पहले पीले पड़ते हैं और फिर बाद में यह पीलापन पौधे की नई पत्तियों तक भी पहुंचने लगता है. इससे पौधे की ग्रोथ रुक जाती है और पूरी फसल कमजोर होने लगती है. अगर फसल में ये लक्षण दिखने लगें तो यूरिया या अमोनियम सल्फेट का इस्तेमाल का इस्तेमाल करें.
अगर फसल में फास्फोरस की कमी होने लगे तो पत्तियों का रंग गहरा हरा या बैंगनी होने लगता है. इसके साथ ही पौधों की जड़ों की ग्रोथ भी रुक जाती है. फास्फोरस की कमी से फसल पकने में भी समय लगाती है. फास्फोरस की कमी का उपाय ये है कि खेत में सिंगल सुपर फास्फेट (SSP) या DAP का छिड़काव कर सकते हैं.
जब फसल की पुरानी पत्तियां अपने किनारों से पीली होकर सूखने लगें तो ये पोटाशियम की कमी का संकेत है. इसकी कमी से पौधे की रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है और इसके दाने भरने की क्षमता भी घटने लगती है. इसका उपाय ये है कि म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) का खेत में छिड़काव करें.
पौधों को ध्यान से देखें और अगर इनकी नई पत्तियों के सिरे मुड़े नजर आते हैं तो ये कैल्शियम की कमी का संकेत है. साथ ही इसकी कमी से पौधों की जड़ वृद्धि भी रुकने लगती है. उदाहरण के लिए टमाटर जैसी फसलों में फल अपने आप सड़ने लगते हैं. इसके उपाय के तौर पर जिप्सम या कैल्शियम नाइट्रेट डालने से फायदा होगा.
लोहा हर फसल के लिए जरूरी तत्व है. लेकिन जब इसकी कमी होने लगती है तो पौधों की नई पत्तियां भी पीली हो जाती हैं और इसके साथ ही इसकी नसें भी हरी दिखने लगती हैं. कृषि वैज्ञानिक इस स्थिति को क्लोरोसिस कहते हैं. इसकी कमी ठीक करने के लिए फसल में फेरस सल्फेट (FeSO₄) का 0.5% घोल छिड़क सकते हैं.
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