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प्याज को चौपट कर सकता है जलेबी रोग, इसके लक्षण और उपचार के सिंपल टिप्स समझिए

प्याज को चौपट कर सकता है जलेबी रोग, इसके लक्षण और उपचार के सिंपल टिप्स समझिए

प्याज की फसल को कीट और बीमारियों से भी नुकसान पहुंचाता है. प्याज़ की फसल पर तो वैसे तो कई रोग लगते हैं लेक‍िन सबसे खतरनाम जलेबी रोग को माना जाता है. इस रोग के शुरुआती लक्षणों में पत्तियों पर पानीदार पीले दाग होते हैं, जो पत्ती की लंबाई में फैलते हैं. इस रोग को ट्वीश्टर या स्प्रिंग भी कहा जाता है.

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 जानिए जलेबी रोग के बारे में जानिए जलेबी रोग के बारे में

प्याज भारत की एक महत्वपूर्ण फसल है. इसका उत्पादन कई राज्यों में किया जाता है. वहीं महाराष्ट्र में इसकी सबसे ज्यादा खेती होती है. यहां एक साल में तीन बार इसकी खेती होती है. शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन में इसका उपयोग किया जाता है. प्याज में कई पौष्टिक और औषधीय गुण भी पाए जाते हैं. इसल‍िए इसकी मांग हमेशा बनी रहती है. उत्पादन जरा सा कम होते ही दाम बढ़ जाता है. हालांकि, किसानों को खराब मौसम और सही दाम न मिलने की वजह से प्याज की खेती करने में कई बाधाएं भी आती हैं. 

इसके अलावा प्याज की फसल को कीट और बीमारियों से भी नुकसान पहुंचाता है. प्याज़ की फसल पर तो वैसे तो कई रोग लगते हैं लेक‍िन सबसे खतरनाम जलेबी रोग को माना जाता है. ऐसे में इस बीमारी से फसल को बचाने के लिए आप ये टिप्स अपना सकते हैं. इसके अलावा इस पर थ्र‍िप्स का आक्रमण भी होता है. 

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जलेबी रोग के लक्षण 

इस रोग के शुरुआती लक्षणों में पत्तियों पर पानीदार पीले दाग होते हैं, जो पत्ती की लंबाई में फैलते हैं. इस रोग को ट्वीश्टर या स्प्रिंग भी कहा जाता है. कोलेटोट्रायकम फफूंद के रेशेदार दाने मिट्टी में सालों तक और प्रभावित फसल के अवशेषों में महीनों तक बने रह सकते हैं. इससे पूरी प्याज की फसल पर बुरा असर पड़ सकता है. प्याज की फसल में जलेबी रोग होने का प्रमुख कारण थ्रिप्स कीट या तैला कीट होता है. क्योकि प्याज की फसल में थ्रिप्स कीट का बहुत ज्यादा प्रकोप होता है. थ्रिप्स प्याज के कोमल भागों से शक कर लेता है फिर उसी जगह पर कवक लगना शुरू हो जाता है.

जलेबी रोग नियंत्रण के उपाय

1. इस फसल के लिए उचित जल निकास वाली समतल भूमि का चयन करें.
2. प्रमाणित बीजों का उपयोग करें ताकि सुरक्षित पौधे उगें.
3. अच्छी रोग प्रतिरोधक प्रजातियों के बीजों का चयन करें.
4. 2 या 3 साल का फसल चक्र अपनाएं ताकि भूमि की उपयोगिता बनी रहे.
5. पौधों के सही दूरी के लिए रोपाई के समय सावधानी बरतें.
6. मिट्टी का परीक्षण करें और खाद एवं उर्वरकों का उचित उपयोग करें.
7. रोग के प्रकोप के लक्षणों को पहचानकर, संक्रमित पौधों को उखाड़ कर नष्ट करें.
8. नियमित देखभाल से पौधों को लंबे समय तक नमी से भरपूर रखें ताकि नुकसान को कम किया जा सके.
9. प्याज के पौधों को जख्मी करने से बचें ताकि संक्रमण का खतरा कम हो.
10. खेत में प्रति एकड़ के हिसाब से 8 से 10 पीले स्टिकी ट्रैप और 8 से 10 नीले स्टिकी ट्रैप लगाएं.
11. खेत और मेधों की साफ-सफाई का ध्यान रखें ताकि खरपतवार न होने पाए.
12. समय-समय पर निराई गुड़ाई करें ताकि फसल को उचित पोषण मिले.

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