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Natural Farming : खजुराहो के युवा किसानों ने खेती की इस विधा को बनाया तरक्की का टूल

Natural Farming : खजुराहो के युवा किसानों ने खेती की इस विधा को बनाया तरक्की का टूल

पारंपरिक खेती में जहरीले रसायनों का कोई स्थान नहीं था. इसके मद्देनजर गोबर और गोमूत्र की मदद से Organic Farming को आधुनिकता से जोड़कर Chemical Farming को मुंहतोड़ जवाब दिया जा रहा है. एमपी के खजुराहो में कुछ युवा किसान समूह बनाकर नए तरीके से जैविक खेती को संतोषप्रद जीवन का आधार बना रहे हैं.

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 इस दशपर्णी अर्क को बनाना भी बेहद आसान है. (Photo-Kisan Tak) इस दशपर्णी अर्क को बनाना भी बेहद आसान है. (Photo-Kisan Tak)

रासायनिक खेती से मिट्टी और मनुष्य की सेहत को हुए जबरदस्त नुकसान से सबक लेकर अब पूरी दुनिया में जैविक खेती की बात जोर पकड़ने लगी है. मोदी सरकार की पहल पर भारत में जैविक खेती को लेकर तमाम अभि‍नव प्रयोग भी हो रहे हैं. इस कड़ी में यूपी और एमपी में बुंदेलखंड के इलाके में खेती के पारंपरिक और आधुनिक तरीकों को अपनाकर प्रकृति के साथ तालमेल कायम करने वाली खेती के सफल प्रयोग किए जा रहे हैं. Philosophy of coexistence पर आधारित इस खेती को 'आवर्तनशील खेती' का नाम दिया गया है. आवर्तनशील खेती का पहला सफल मॉडल यूपी में बांदा के बड़ोखर खुर्द गांव के प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह ने बनाया है. देश दुनिया के तमाम किसान खेती की इस विधा का प्रशिक्षण लेकर इसे अपने खेतों में लागू कर रहे हैं. इस कड़ी में एमपी के खजुराहो में कुछ युवा किसानों ने समूह बनाकर आवर्तनशील खेती को अपना करियर बनाया है.

छोटी जोत बड़ा मुनाफा

खजुराहो के चुरारन गांव में प्रयोगधर्मी युवा किसान मुकेश पटेल की अगुवाई में आवर्तनशील खेती को संतोषप्रद जीवन का आधार बनाया गया है. पटेल ने बताया कि गांव के लगभग 20 युवा किसानों ने बांदा में आवर्तनशील खेती का प्रशिक्षण प्राप्त कर इसे तीन साल पहले अपनाया था. उन्होंने कहा कि लगातार बढ़ती Agriculture Input Cost के कारण एक एकड़ से लेकर एक हेक्टेयर तक के Small & Marginal Farmers के लिए खेती करना मुश्किल होता जा रहा है. इस कारण से छोटी जोत के किसान खेती छोड़ कर शहरों में मजदूरी करने के लिए जाने को मजबूर हो रहे हैं.

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खेती क्यों बनी घाटे का सौदा

छतरपुर जिले के नौगांव में आवर्तनशील खेती के दार्शनिक पहलू पर काम कर रहे प्रयोगधर्मी किसान भगवान सिंह परमार ने बताया कि खेती को व्यवसाय का रूप देना ही किसानों की बर्बादी का कारण बना है. उन्होंने कहा कि इसकी वजह से खेती की लागत के मामले में किसान अब पूरी तरह से बाजार पर आश्रित हो गया है. इस कारण से खेती की लागत में तेजी से इजाफा हुआ है. जबकि पारंपरिक तौर पर खेती की लागत के मामले में किसान पहले आत्मनिर्भर था, क्योंकि खाद, बीज और पानी के लिए उसे बाजार पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था.

परमार ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में Market Driven Farming की व्यवस्था लागू होने के बाद किसानों ने पशुपालन छोड़ कर बाजार से Chemical Fertilisers खरीदना शुरू किया. ज्यादा उपज लेने के लालच में किसानों ने देसी बीज का प्रयोग छोड़ कर बाजार से महंगे Hybrid Seeds बोना प्रारंभ कर दिया. साथ ही नदी, तालाब और कुंए से होने वाली मुफ्त सिंचाई को छोड़ कर लाखों रुपये की लागत वाले बोरवेल से मंहगी बिजली से सिंचाई करना प्रारंभ कर दिया. इससे जिस अनुपात में खेती की लागत बढ़ी, सरकार, बाजार के दबाव को नजरंदाज कर किसानों को उस अनुपात में उपज का मूल्य नहीं दिला पाई. परमार ने कहा कि इस कारण से खेती घाटे का सौदा बन गई.

ये है आवर्तनशील खेती का फार्मूला

पटेल ने बताया कि आवर्तनशील पद्धति में किसान को खेती की लागत के मामले में पारंपरिक तरीके अपना कर आत्मनिर्भर बनना सिखाया जाता है. इसमें खेती की लागत से जुड़े संसाधनों पर खर्च को कम करने में आधुनिक तकनीक की भी मदद ली जाती है.

उन्होंने बताया कि प्रकृति के साथ संतुलन को कायम करने के सिद्धांत पर आधारित आवर्तनशील खेती में सबसे पहले खेत को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. इसमें खेत के एक तिहाई हिस्से को Animal Husbandry और Grassing Land के लिए छोड़ा जाता है. दूसरे एक तिहाई हिस्से को Horticulture Crops के लिए छोड़ा जाता है. इसमें वन बाग लगाकर फल और सब्जि‍यां उगाई जाती है. तीसरे एक तिहाई हिस्से में गेहूं, धान जैसी फसलें उगाई जाती हैं.

पटेल ने बताया कि पशुपालन से मिलने वाले गोमूत्र और गोबर से खेत की उर्वरक की जरूरत को पूरा किया जाता है. खेत में कुआं या तालाब बनाकर पानी के स्थाई स्रोत का इंतजाम करके Solar Pump के इस्तेमाल से सिंचाई की लागत को घटाया जाता है. Native Trees and Seeds का इस्तेमाल कर जो उपज मिलती है, उसे मंडी में बेचने के बजाय उसको Food Processing करके सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंच कर उपज का बाजार मूल्य प्राप्त करके, किसान अधिकतम मुनाफा ले सकता है.

ये है लाभ

परमार और पटेल ने एकस्वर से दावा किया कि इस विधि काे अपनाकर किसान बाजार के चंगुल से खुद को बचा सकता है. पटेल ने कहा कि उन्होंने अपने एक एकड़ खेत में इस प्रयोग की मदद से महज 3 साल में ही खुद को आत्मनिर्भर बना लिया है.

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उन्होंने कहा कि वह अपने खेत में आम, अंजीर, संतरा, नींबू, आंवला और काजू का बाग लगाकर इन पेड़ों के नीचे सब्जी की खेती करते हैं. उनके गांव में पानी की बहुत कम उपलब्धता होने के बावजूद वह Drip, Sprinkler और Mulching जैसी आधुनिक तकनीक अपनाकर वह फल, सब्जी और गेहूं, धान की खेती करते हैं.

पटेल ने कहा कि उन्हें इस पद्धति से हुए लाभ से प्रेरित हाेकर गांव के 20 अन्य युवकों ने भी आवर्तनशील खेती को अपनाया है. सभी किसान सप्ताह में एक दिन, चौपाल करके खेती करने से जुड़ी अपनी समस्याओं पर विचार मंथन करते हैं. इससे समस्या की जड़ में पहुंच कर एक दूसरे की मदद करके जलवायु परिवर्तन सहित खेती से जुड़ी अन्य दुश्वारियों का समाधान भी निकालते हैं.