झारखंड और बिहार जैसे राज्यों में आज भी बड़ी संख्या में किसान पारंपरिक तरीकों से धान की रोपाई करते हैं. लेकिन बदलते समय के साथ समस्याएं भी बढ़ी हैं, जैसे खेतों में मजदूरों की किल्लत और समय पर बारिश का न होना. यही वजह है कि अब वैज्ञानिक 'सूखी विधि से सीधी बुवाई' को एक व्यवहारिक और लाभकारी विकल्प मान रहे हैं. यह विधि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में धान की खेती करने वाले किसानों के बीच तेजी से पॉपुलर हो रही है.
इस तकनीक के तहत खेत में पानी भरने की जरूरत नहीं होती. बीज सीधे सूखी मिट्टी में बो दिए जाते हैं. इससे किसानों को बारिश का इंतजार नहीं करना पड़ता और वो बुवाई का काम शुरू कर सकते हैं. अगर मिट्टी की तैयारी और खाद का प्रबंधन पहले से कर लिया गया हो तो यह विधि कम खर्च में बेहतर उत्पादन देने में सक्षम है.
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि कम बारिश की स्थिति में किसान खेत की जुताई कर सीड ड्रिल मशीन या ब्रॉडकास्टिंग तकनीक से आसानी से बीज बो सकते हैं. ब्रॉडकास्टिंग मैथेड में प्रति हेक्टेयर करीब 80 किलो बीज की जरूरत होती है. खेती के लिए नीची या मध्यम जमीन का चयन करना सही रहता है. हाईब्रिड या ओपी (ओपन पोलिनेटेड) किस्मों का इस्तेमाल उत्पादन बढ़ाने में मदद करता है. वहीं, सीड ड्रिल मशीन से एक एकड़ खेत में करीब 30 किलो बीज ही काफी होता है.
इस मशीन की खास बात यह है कि बीज 20 सेमी की दूरी पर नौ एक बराबर लाइनों में बोए जाते हैं. वहीं बीजों की गहराई और दूरी एक जैसी होती है जिससे अंकुरण बेहतर होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस विधि से समय और लागत दोनों की बचत हो सकती है.
सीधी बुवाई के बाद खेतों में घास उगने की समस्या अक्सर सामने आती है. इसे रोकने के लिए वैज्ञानिक दो स्तर पर दवा छिड़काव की सलाह देते हैं. इन उपायों से खेत को घास से फ्री रखा जा सकता है और फसल भी बिना किसी रुकावट के बढ़ती है. ये उपाय हैं-
पहला छिड़काव: बुवाई के 3 दिन के भीतर पेंडीमेथिलिन (5 मि.ली./लीटर पानी) का छिड़काव करें.
दूसरा छिड़काव: 15–20 दिन के भीतर सपाइयों बैग सोडियम (80 ग्राम/लीटर पानी) का प्रयोग करें.
अगर किसान इस तकनीक के साथ-साथ उर्वरकों का सही समय पर उपयोग करें तो फसल की क्वालिटी और मात्रा, दोनों में सुधार होता है. यही नहीं, फसल समय से तैयार हो जाती है जिससे बाजार में बेहतर दाम भी मिल सकते हैं. जिन किसानों को हर साल मजदूरों की कमी और बारिश के अनिश्चित पैटर्न से जूझना पड़ता है उनके लिए सुखी बुवाई की विधि किसी वरदान से कम नहीं. यह न सिर्फ खेती को सरल बनाती है बल्कि इससे समय, मेहनत और लागत, तीनों की बचत होती है.
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