केले की खेती भारत में सबसे अधिक की जाती है, और यह देश की प्रमुख फल उत्पादन फसलों में से एक है. हाल ही में "पीटिंग और ब्लास्ट" नामक एक नए रोग ने दस्तक दी है, जो केले की फसल के लिए गंभीर खतरा बन सकता है. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार के प्लांट पैथोलॉजी और नेमेटोलॉजी विभाग के प्रमुख ने बताया कि केले की खेती करने वाले किसानों को इस नई समस्या के प्रति बेहद सतर्क रहने की जरूरत है. भारत में केले की फसल के लिए "पीटिंग और ब्लास्ट" रोग एक नई चुनौती के रूप में उभरा है. अब तक इस रोग की रिपोर्ट केवल केरल, गुजरात, और हाल ही में बिहार के सीतामढ़ी जिले से की गई है. उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में भी लगभग 50 एकड़ में यह समस्या सामने आई है. यह रोग विशेष रूप से केले की परिपक्व पत्तियों, मिड्रिब, पेटीओल, पेडुनेकल और फलों पर हमला करता है. इसका संक्रमण दर 5 से 45 प्रतिशत तक देखा जा रहा है. इस बीमारी के कारण केले के तैयार बंच पर धंसे हुए गड्ढों जैसे निशान पड़ जाते हैं, जिससे इसका बाजार मूल्य काफी घट जाता है. फल देखने में खराब दिखने के कारण किसान औने-पौने दाम पर इसे बेचने को मजबूर हो रहे हैं.
केला देखने में बदसूरत दिखाई दे रहा है, परिपक्व पत्तियों पर धंसे हुए गड्ढों की तरह के धब्बे बन जाते है, मुख्य तने और बंच पर भी काले धब्बों का दिखाई देते है बंच तोड़ने के बाद केले का बीच का हिस्सा काला पड़ जाता है. इसकी खराब दिखावट के कारण किसान इसे औने-पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर हो रहे हैं. यह बीमारी पहली बार सामने आई है, उन्होंने बताया कि यह बीमारी एक फफूंद जिसका नाम Pyricularia angulata द्वारा उत्पन्न होता है इस बीमारी का नाम केला का पीटिंग एवं ब्लास्ट रोग है. इस बीमारी के फैलने का मुख्य कारण अत्यधिक वर्षा, वातावरण में नमी, और खेतों में पानी का रुकना है. अधिक घने बागों में यह बीमारी अधिक उग्र रूप धारण करती है. इस समय इस नई बीमारी की जानकारी सीमित है और कृषि प्रसार कर्मी भी इसे नियंत्रित करने के बारे में ठोस सुझाव देने में असमर्थ हैं.
डॉ. एस.के. सिंह ने इस बीमारी से बचाव के लिए सुझाव दिया है कि केले की फसल को समय से पहले ही सतर्क रहकर प्रबंधित किया जाए. सबसे पहले, केले के पौधों को हमेशा उचित दूरी पर लगाना चाहिए, ताकि बाग में हवा और धूप का प्रवाह बना रहे. केले के मुख्य तने के आसपास के साइड सकर्स को नियमित रूप से काटकर बाग से बाहर निकालते रहें, जिससे बाग घना न हो और रोग के फैलने की संभावना कम हो जाए. सूखी और रोगग्रस्त पत्तियों को समय-समय पर काटकर बाग से बाहर निकालना चाहिए. खेतों में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए, ताकि बारिश का पानी तुरंत निकल सके और खेत में नमी न जमे.
अगर बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर Nativo, Caprio, या Opera में से किसी एक फफूंदनाशक की 1 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर केले के बंच के पूरी तरह निकलने के बाद 15 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव करें. अगर रोग की उग्रता अधिक हो, तो बंच निकलने से पहले भी एक छिड़काव करें. कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मैनकोज़ेब की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से रोग की तीव्रता में कमी आती है.इस नई बीमारी के प्रति सतर्कता और समय पर उचित प्रबंधन केले की फसल को इस खतरनाक रोग से बचाने के लिए बेहद जरूरी है.
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