आमतौर पर पपीते की खेती करना एक आसान काम लगता है क्योंकि पपीते का पेड़ जगह नहीं घेरता और छोटी सी जगह में हो जाता है. लेकिन इसकी बागवानी करना आसान नहीं है. देश में पपीते की खेती बड़े स्तर पर की जाती है. किसान पपीते की खेती करके बेहतर कमाई भी कर रहे हैं. लेकिन इस महीने पपीते के पौधे में अलग-अलग प्रकार के कीट और रोग लगने की वजह से किसानों को काफी परेशानी हो रही है. दरअसल, पपीते के पौधे में लाल मकड़ी, तना गलन, डंपिंग ऑफ और लीफकर्ल जैसी बीमारियां पपीते की फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर रही हैं. इन्हीं समस्याओं के निजात के लिए बिहार कृषि विभाग ने पपीते में लगने वाले रोग से बचाव के उपाय बताए हैं. इस उपाय को अपनाकर किसान पपीते की फसल को बर्बाद होने से बचा सकते हैं.
लाल मकड़ी: लाल मकड़ी पपीते की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों में से एक है. फसल पर इसके प्रभाव से फल खुरदुरे और काले रंग के हो जाते हैं. वहीं पत्तियों पर आक्रमण की वजह से पीली फफूंद पड़ जाती है.
प्रबंधन: पौधे पर लाल मकड़ी का आक्रमण दिखते ही प्रभावित पत्तियों को तोड़कर दूर गड्ढे में दबा दें. वहीं, अनुशंसित कीटनाशक को पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
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तना गलन: पपीते की फसल में तना गलन रोग के कारण पौधे के तने का ऊपरी छिलका पीला होकर गलने लगता है. वहीं, धीर-धीरे यह गलन जड़ तक पहुंच जाती है. इस कारण पौधा सूख जाता है.
प्रबंधन: तना गलन रोग अन्य पौधों में नहीं पकड़े तो इसे रोकने के लिए किसानों को पपीते के पेड़ के आस पास ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए ताकि उसके आसपास पानी न जमा हो. सिंचाई के लिए जो पानी डालें उसके निकास की अच्छी व्यवस्था हो. जिन पेड़ों में ये रोग लग गया है उन्हें खेत से निकालकर जला देना चाहिए. इसके साथ ही तने के चारों तरफ बोडो मिश्रण (6:6:50) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत), टाप्सीन-एम (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव कम से कम तीन बार जून-जुलाई और अगस्त के महीने में करना चाहिए.
डंपिंग ऑफ: यह रोग पपीते में नर्सरी अवस्था में आता है. वहीं, आर्द्र गलन रोग की वजह से पौधे जमीन की सतह के पास से गलकर मरने लगते हैं.
प्रबंधन: पपीते की फसल को डंपिंग ऑफ यानी आर्द्र गलन रोग से बचाने के लिए बुवाई से पहले पपीते के बीजों का उपचार करें. साथ ही फसल में कीटनाशक का छिड़काव करें.
लीफकर्ल: पपीते के पेड़ में एक और रोग होता है. वो है लीफकर्ल रोग. ये एक विषाणु जनित रोग है, जो सफेद मक्खियों से फैलता है. इस रोग के कारण पत्तियां सिकुड़ कर मुड़ जाती हैं. इस रोग से 70-80 प्रतिशत तक फसल का नुकसान हो जाता है.
प्रबंधन: पपीते के स्वस्थ पौधों का रोपण करें. रोगी पौधों को उखाड़कर खेत से दूर गड्ढे में दबाकर नष्ट कर दें. इसके अलावा, सफेद मक्खियों के नियंत्रण के लिए डाइमिथोएट 1 मि.ली. का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
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