जिस तरह से आज ड्रोन युद्ध के मैदान में सैनिकों के मददगार बन रहे हैं, उसी तरह से खेती के मैदान में भी इनका प्रयोग अब तेजी से होने लगा है. खेती में ड्रोन के प्रयोग का एकमात्र मकसद फसल की वृद्धि पर नजर रखना और उत्पादन को बढ़ाना है. कृषि या एग्री ड्रोन को आज खेती के सबसे आधुनिक उपकरणों में माना जाता है. इनके प्रयोग से किसानों को बड़ी मदद मिल रही है. विदेशों की तरह अब भारत में भी किसान इनका प्रयोग करने लगे हैं. ये ड्रोन खासतौर पर उर्वरकों और कीटनाशकों के छिड़काव में प्रयोग होते हैं.
कुछ ही मिनटों में एक बड़े क्षेत्रफल तक फैले खेत में आसानी से उर्वरकों को छिड़काव किया जा सकता है. ड्रोन के प्रयोग से समय की तो बचत हो ही रही है साथ ही साथ पैसे की भी बचत होती है. आमतौर पर खेती में ड्रोन का प्रयोग मैपिंग, खेत के सर्वे और कीटनाशकों के छिड़काव के लिए होता है. कृषि ड्रोन दूसरे ड्रोनों से अलग नहीं हैं. छोटे से दिखने वाले इस मानवरहित विमान को आजकल किसानों की जरूरतों के हिसाब से बदला जा सकता है. इतना ही नहीं अब तो कई ड्रोन खासतौर पर खेती में प्रयोग होने के लिए ही तैयार किए जा रहे हैं.
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ड्रोन के जरिये फसलों पर कीटनाशकों का छिड़काव करना आसान है. साथ ही इसकी वजह से इंसान खतरनाक रसायनों के संपर्क में नहीं आ पाते हैं. बाकी तरीकों की तुलना में ड्रोन से खेतों में छिड़काव पांच गुना तेजी से होता है. एग्री ड्रोन में भी प्रेफमप्रोपेलर या पंखे, मोटर, बैटरी, सेंसर्स, जीपीएस, फ्लाइट कंट्रोलर, सिग्नल रिसीवर फिट होते हैं. इनके अलावा ड्रोन को ऑपरेट करने के लिए कुछ ग्राउंड सेट अप जैसे कम्युनिकेशन बॉक्स भी इसमें दिए जाते हैं.
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वर्तमान समय में जो ड्रोन खेती के लिए मौजूद हैं उनमें 10 लीटर क्षमता वाले एग्री ड्रोन से सिर्फ सात मिनट में एक एकड़ के खेत में छिड़काव किया जा सकता है. 10 लीटर पानी में एक एकड़ृ खेत में जितने कीटनाशक की जरूरत हो, उसे पानी में मिलाकर और बाकी उर्वरकों को इस तरह से प्रयोग किया जा सकता है. एक बार में चार्ज होने पर एग्री ड्रोन 20 मिनट में 2.5 एकड़ क्षेत्रफल वाले खेत में छिड़काव कर सकता है. इसमें तीन बैटरी सेट उपलब्ध होने पर करीब 25 एकड़ रोजाना तक छिड़काव हो सकता है.
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एग्री ड्रोन की कीमत करीब 10 लाख रुपए होती है. इसे खरीदने के लिए सरकार की तरफ से जनरल कैटेगरी के किसानों को 40 फीसदी और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग के किसानों को 45 फीसदी सब्सिडी दी जाती है. इसके अलावा कुछ किसान उत्पादक संगठनों को 75 फीसदी तक की सब्सिडी मिलती है.
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