
मध्य प्रदेश के सागर जिले के युवा किसान आकाश चौरसिया का सपना डॉक्टर बनने का था. लेकिन 21वीं सदी की चिंताजनक स्थिति के कारण उन्होंने समाज को रसायन-मुक्त खाने की चीजें देने के लिए खेती को अपने पेशे के रूप में चुना. इसके बाद साल 2014 में मल्टीलेयर फार्मिग का आविष्कार किया, जिससे समाज के छोटे किसानों की जरूरतें पूरी हो सकें. जगह और संसाधनों के सिमटते इस दौर में, जब हाईराइज अपार्टमेंट्स में लोग शौक से रह रहे हैं, तो इस तरह की मल्टी लेयर खेती भला क्यों नहीं हो सकती? इसलिए युवा किसान ने मल्टीलेयर फार्मिंग को व्यावहारिक रूप दे दिया. उसमें वे सफल रहे और आज वे अपने 3 एकड़ खेतों से इस मल्टीलेयर फार्मिंग से औसतन प्रति एकड़ 8 लाख रुपये प्रति एकड़ की कमाई कर रहे हैं. अपने देश में ही नही दुनिया में उनकी इस तकनीक डंका बज रहा है.
वो दिन दूर नहीं, जब आप किसानों से बहुमंजिली इमारत की तरह पूछेंगे कि भाई साहब आप कितनी मंजिल की खेती करते हैं. 4 मंजिल की या 5 मंजिल की? और वो आपको इसी तरह इसका जवाब भी देंगे. जी हां मल्टीलेयर फार्मिंग है ही कुछ ऐसी जिसमें कई लेयर यानी कई स्तरों पर या सतहों पर फ़सलें उगाई जा सकती हैं. आकाश चौरसिया पहले लेयर में ज़मीन के अंदर भूमिगत जड़ फसल, अदरक, हल्दी, दूसरे सतह पर पत्तेदार सब्जियां, धनिया, तीसरे सतह पर लता फसलें, करेला, कुंदरू, चौथे सतह पर ट्रेलिस के ऊपर फल पौधे, पपीता, सहजन, पांचवा ट्रेलिस और मिट्टी की सतह के बीच, लौकी, तुरई लगाते हैं. यानी एक ही खेत में 5 से 6 फसलें लगाते हैं.
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चौरसिया बताते हैं कि इसके लिए किसान पहले जमीन में ऐसी फसल लगाएं, जो कि भूमि के अंदर उगती है. इसके बाद उसी भूमि में सब्जी और फूलदार पौधे लगा सकते हैं. इन फसलों के अलावा छायादार और फलदार वृक्ष भी लगा सकते हैं. इसमें बांस के डंडों और घास का इस्तेमाल किया जाता है. मल्टीलेयर खेती में एक फ़सल की लागत में 4 फ़सलें उपजाना संभव है. मतलब लागत चार गुना घट जाती है. इसी कारण मुनाफ़े में औसतन लगभग 4 गुना वृद्धि होती है. अकाश चौरसिया की मल्टीलेयर फार्मिग भारतीय कृषि को नई परिभाषा दे रहे हैं. उनकी तकनीक आज पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रही है. यह तकनीक पौधों की उचित वृद्धि के लिए संरक्षित और आरामदायक वातावरण देती है .
अकाश चौरसिया का कहना है कि आज के समय में देश में खेती का रकबा धीरे धीरे घट रहा है और छोटी जोत वाले किसानों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. ऐसी स्थिति में किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. उन्हें खेती से फसल का कम उत्पादन मिल पाता है, जिस कारण आज की खेती के लिए यह तकनीक बहुत उपयोगी है. इस तकनीक से किसान एक ही खेत में एक साथ 4 से 5 फसलों की खेती आसानी से कर सकते हैं. दरअसल मल्टीलेयर फार्मिंग में ना सिर्फ खेत की 1-1 इंच ज़मीन का इस्तेमाल कर लिया जाता है, बल्कि ज़मीन के नीचे से लेकर सतह और उसके ऊपर भी कई स्तरों पर एक साथ फ़सलें उगाई जाती हैं. इससे खेत तैयारी से लेकर सिंचाई और खाद जैसे संसाधन पर भी एक फ़सल की लागत बराबर या कई बार उससे भी कम खर्च होते हैं.
एक साथ कई फसलें लेने के चलते, एक फ़सल से दूसरे को पोषक तत्व मिल जाते हैं. जमीन में जब खाली जगह नहीं रहती तो खरपतवार भी नहीं निकलता. इसलिए निराई-गुड़ाई में खर्च भी नहीं होता है और ना किसी खरपतवारनाशी की कोई ज़रूरत रह जाती है. मल्टीलेयर फार्मिंग शेडनेट की तरह काम करता है, इसलिए इसमें कीट नहीं लगते. रोग नहीं होता, पेस्टीसाइड का खर्च बचता है. साथ ही ये स्ट्रक्चर मौसम परिवर्तन के थपेड़ों से भी फ़सलों को बचाता है.
मल्टीलेयर या बहुस्तरीय खेती के लिए एक ख़ास तरह का स्ट्रक्चर बनाना पड़ता है जिसे आप मंडप कह सकते हैं. ये आसान होने के साथ ही सस्ता भी है. इसका स्ट्रक्चर पांच साल तक लगातार चलता है. एक साल की लागत सिर्फ 25 हजार रुपये है. एक एकड़ खेत में 2200 बांस के डंडे लगाते हैं जो 1-2 फीट नीचे ज़मीन में गड़े होते हैं और 1 फीट ऊपर लगे होते हैं जबकि बीच मंडप में 7 फीट बांस दिखता है. 5-6 फ़ीट की दूरी पर बांस लगाते हैं. सवा सौ से डेढ़ सौ किलो तक बीस गेज पतला तार इस पर लगाया जाता है. लगभग आधा-आधा फीट के गैप से तार को बुनते हैं. गुनैइया नाम की घास या फिर कोई भी घास डालने के बाद उसके ऊपर लकड़ी डाल देते हैं जिससे घास उड़े नहीं. बाउंड्री वॉल ग्रीन नेट से या साड़ी से चारों तरफ से ढंक देते हैं. सीधी धूप ज़मीन की सतह तक नहीं पहुंचती, जिससे नमी बनी रहती है. इसके साथ ही खेतों को चारों तरफ से 4 से 5 से फीट तक कपड़े से ढका जाता है, जिससे कीट-पतंगे फसलों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं.
आकाश मल्टीलेयर फार्मिंग के इस मॉडल की अपनी खेती में जैविक विधियों का इस्तेमाल करते हैं जिसमें सिंचाई से लेकर खाद प्रबंधन तक में परंपरागत और आधुनिक विधियों का संगम दिखता है. वे पशुपालन कर खुद गाय के गोबर से वर्मी कंपोस्ट, वर्मी वॉश बनाते हैं और इसका इस्तेमाल करते हैं. वहीं फसलों को ज़रूरी धूप और बारिश का पानी भी मिलता रहता है. पिछले 10 साल से एग्रीकल्चर मैनेजमेंट, नेचुरल फार्मिंग, मल्टी लेयर फार्मिंग, वाटर मैनेजमेंट, बीड मैनेजमेंट और ऑर्गनिक खेती पर काम कर रहे हैं.
संसाधनों के घोर अभाव वाले इस युग में भला कौन नहीं इस तकनीक को सराहेगा? आज आलम ये है कि आकाश चौरसिया बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, शंकराचार्य विश्वविद्यालय रायपुर, जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय और सागर विश्वविद्यालय सहित देश की प्रतिष्ठित कई यूनिवर्सिटीज में लेक्चर दे चुके हैं. कई सम्मान पा चुके आकाश हर महीने की 27-28 तारीख को पूरे देशभर के किसानों को ट्रेनिंग देते हैं. आकाश का दावा है कि उन्होंने अपने सागर फार्म में 1,35,000+ लोगों को प्रशिक्षित किया है और व्यक्तिगत रूप से दुनिया भर में यात्रा करके प्राकृतिक खेती पर 13 से 14 लाख से अधिक किसानों को शिक्षा दी है. अब तक उन्होंने वैश्विक स्तर पर 535 व्यावहारिक प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए हैं और यह संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. उन्होंने लगभग 75 हजार एकड़ भूमि को प्राकृतिक खेती में सफलतापूर्वक परिवर्तित किया है. खुद उनके आस-पास के किसान इस मॉडल से काफी प्रभावित हैं.
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कई किसान आकाश से सीखकर उनके इस मॉडल से लाभ उठा रहे हैं. किसान कहते हैं कि अगर बहुमंजिली इमारतें बनीं, डबल-डेकर बस आई, छोटी सी बोगी में कई बर्थ पर लेटे सैकड़ों यात्री सफ़र कर सकते हैं तो फिर मल्टीलेयर फ़ार्मिंग क्यों नहीं हो सकती है?
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