Kharif Special: उत्तर भारत में इन दिनों प्रचंड गर्मी का दौर शुरू हो गया है. इससे आम आदमी की परेशानियां बढ़ गई हैं. वहीं आम धारणा है कि गर्मी का माैसम फसलों के लिए खतरनाक होता है, लेकिन ये अधूरा सच है. किसान गर्मी का फायदा उठा कर खेतों को नई जान दे सकते हैं. असल में जमीन में छिपे कीट और रोगों फसलों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाते हैं. भूमि जनित कीट लार्वा, अंडे, रोगों के रोगजनक और नेमाटोड खरपतावर के बीज पहले से ही खेत की मिट्टी में मौजूद होते हैं, जो मौका मिलते ही खेत और फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. हालांकि इनकी रोकथाम के लिए किसान रासायनिक कीटनाशकों और फंफूदी नाशकों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इन तरीकों से फसल के इन शत्रुओं का नियंत्रण नहीं हो पाता है.
वहीं दूसरी ओर मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी प्रभावित होती है. ऐसे में किसानों के पास सबसे बड़ी हथियार गर्मी का सीजन और धूप है. किसान गर्मी के मौसम में छिपे हुए फसल के शत्रु कीटों, रोगजनकों और खरपतवारों को मृदा सौरीकरण तकनीक अपनाकर खत्म कर सकते हैं .
आईएआरआई पूसाएग्रोनॉमी डिवीजन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ राजीव कुमार सिंह ने बताया कि मृदा जनित रोग-कीटों का प्रभावी नियंत्रण करना किसानों के लिए एक गंभीर चुनौती है. जमीन के अन्दर छिपे रोगों के रोग जनक हानिकारक कीटों के अण्डे, प्यूपा और निमेटोड खेतों में मौका मिलते ही तेजी से फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. डॉ राजीव ने कहा बहुत सी फसलों के लिए नर्सरी में विकसित कर छोटी-छोटी पौध की खेतों में रोपाई करनी होती है.इन नर्सरी पौधों लगने वाले अधिकतर कीट-रोग भूमि जनित होते हैं, जो फसलों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं.
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उन्होंने कहा कि भारत में अप्रैल, मई-जून में भीषण गर्मी पड़ती है, किसान इन महीनों के तापमान का लाभ उठाते हुए मृदा सौरीकरण तकनीक से भूमि में छिपे हानिकारक फसल के शत्रु नेमेटोड कीट , रोगजनक औऱ खरपतवारो को नष्ट कर सकते हैं. यह तरीका किसानों के लिए बहुत ही सस्ता और कारगर है.
डॉ राजीव ने बताया कि मृदा सौरीकरण वैसा ही है, जैसे हम बीज लगाने से पहले बीजों का उपचार करने के लिए तमाम तरह की दवाओं का प्रयोग करते हैं. उन्होंने कहा कि ठीक उसी तरह फसल बोई जाने वाली जमीन को सौरीकरण से उपचार किया जाता है. मृदा सौरीकरण की प्रक्रिया बताते हुए उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया के लिए एक पतली पारदर्शी प्लास्टिक शीट का उपयोग किया जाता है, जो मिट्टी के तापमान को बढ़ाता है. इस तकनीक से पहले से मौजूद नेमेटोड , कीट-रोग, निमेटोड के जीवांश और खरपतवार नष्ट हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि जब तेज धूप और तापमान 40 सेंटीग्रेड से लेकर 45 सेंटीग्रेड हो, उस वक्त सॉयल सोलेराइजेशन करना उचित रहता है इसके लिए मई-जून का महीना सबसे सही रहता है.
डॉ राजीव ने कहा मृदा सौरीकरण के लिए खेतों में बोई जाने वाली फसल की जगह को पौध रोपण या बीज की बुवाई से 4-6 सप्ताह पहले छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लेते हैं. इन क्यारियों को 200 गेज की पारदर्शी प्लास्टिक से ढक दिया जाता है. इसके बाद प्लास्टिक के किनारों को मिट्टी से ठीक तरह से दबा दिया जाता है, जिससे बाहर की हवा अंदर प्रवेश न कर पाए और इसे एक से दो महीने तक छोड़ दिया जाता है. इस प्रकिया से ढकी प्लास्टिक के अंदर जगह का तापमान बढ़ जाता है जिससे मिट्टी में पहले से मौजूद रोगों के रोग जनक हानिकारक कीटों के अंडे, प्यूपा और निमेटोड और कुछ खरपतवारों के बीज नष्ट हो जाते हैं. इस तरह भूमि में बिना किसी रसायन के उपयोग किेए भूमि को उपचारित कर भूमि जनित कीट रोगों और खरपतवारों से छुटकारा मिल जाता है.
कृषि वैज्ञानिक डॉ सिंह के अनुसार इस तरह मृदा सौरीकरण में भले ही समय ज्यादा लगता है, लेकिन इससे एक तो मिट्टी में पड़े सभी नेमोटोड़ कीट और रोग जनक नष्ट हो जाते हैं और साथ ही किसानों को फसल से गुणवत्ता वाली अच्छी उपज भी मिलती है. दूसरी और रासायनिक दवाओं की तुलना में मृदा सौरीकरण में कम खर्च आता है. यह विधि धान की नर्सरी, फलों एवं सब्जियों की पौधशाला में लगने वाले रोगों व कीटों के बचाव के लिए अधिक लाभकारी साबित हुई है.
मृदा सौरीकरण में कुछ अहम बातों पर ध्यान देना चाहिए जैसे- खेत साफ सुथरा हो, खेत में फसल अवशेष न हो, पॉलिथीन से ढकने से पहले मिट्टी को पलटकर समतल और भुरभुरी बना लें, सिंचाई कर खेत में नमी बना लें. नमी और गर्मी को रोकने के लिए पॉलिथीन किनारों को अच्छी तरह से सूखा मिट्टी से ढक दें.
यह फसल सुरक्षा के लिए एक अच्छा विकल्प है. बैसिलस, स्यूडोमोनास जैसे लाभकारी जीवाणुओं की संख्या में यह बढ़ता है जिससे पौधों की वृद्धि, उत्पादन और विकास के साथ-साथ गुणवत्ता में भी सुधार होता है. सौरीकरण करण प्रदूषित मिट्टी को स्वस्थ बनाता है, अगले 2 वर्षों तक मिट्टी में भौतिक, रासायनिक, जैविक परिवर्तन समान रहते हैं, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और पौधों को जरूरी पोषक तत्व उपलब्ध कराने में भी सहायक है.
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