खरीफनामा: किसान अच्छी क्वालिटी के साथ ही बंपर उपज चाहते हैं, लेकिन इसके लिए सबसे पहले स्वस्थ और अच्छी वैरायटी वाली पौध की जरूरत होती है, लेकिन अच्छी वैरायटी वाली पौध ना होने की वजह से किसानों को नुकसान होता है. इसके पीछे की एक वजह ये है कि देश के किसान परंपरागत विधि से अपने खेतों में ही पौध तैयार करते हैं, जिससे जरूरत के मुताबिक सही समय पर सही और स्वस्थ पौध नहीं मिलती है. ऐसे में किसानों को पौध नर्सरी की प्रोट्रे तकनीक का उपयोग करना चाहिए. किसान तक की सीरीज खरीफनामा की इस कड़ी में पौध नर्सरी की प्रो-ट्रे तकनीक पर पूरी जानकारी...
किसान इस तकनीक से नर्सरी का बिजनेस करके लाखों की कमाई कर सकते हैं. स्वस्थ नर्सरी पौधों को उगाने के लिए प्रो-ट्रे तकनीक किस प्रकार लाभदायक है, यह जानने के लिए इस रिपोर्ट को पढे़ं
किसान तक से बातचीत में सब्जी विज्ञान विशेषज्ञ और कृषि विज्ञान केन्द्र पूसा समस्तीपुर के प्रमुख डॉ अभिषेक प्रताप सिंह ने कहा कि सब्जियों की खेती के लिए किसान बेहतर मौसम का इंतजार करते हैं. कई बार तो इसमें देर हो जाती है. तो वहीं कई बार उपज आते-आते बारिश शुरू हो जाती है और फसल से अच्छी उपज नहीं मिल पाती. किसानों को मन माफिक लाभ नहीं हो पाता है. क्योंकि नर्सरी पौध को अधिक बारिश, कीट- बीमारी से नुकसान हो जाता है.
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वहीं सब्जी की हाइब्रिड बीज बहुत मंहगे होते हैं. इसके पौध का नुकसान होने से किसानों को बहुत अधिक आर्थिक नुकसान होता है, जबकि इन स्थितियों से बचने का आसान तरीका है प्रो ट्रे तकनीक से सब्जियों की नर्सरी तैयार करना. उन्होंने बताया कि इस तकनीक से तैयार पौध की खेतों में रोपाई करने से कई फायदे होते हैं. खास तौर इससे 100 फीसदी तक स्वस्थ पौध मिलती है. इससे टाइम की बचत होती है और सीजन से जल्दी ही सब्जियों की उपज मिल जाती है.
किसान तक से बातचीत में सब्जी विज्ञान विशेषज्ञ डॉ अभिषेक ने बताया कि दरअसल प्रो-ट्रे को प्रोपगेशन ट्रे या सीडलिंग ट्रे भी कहा जाता है. इस ट्रे का उपयोग बैंगन, मिर्च, करेला, लौकी, तोरई, टमाटर, शिमला मिर्च, पत्ता गोभी, फूलगोभी, मिर्च और करेला जैसे पौधे तैयार करने के लिए किया जाता है. बाजार में ऐसे ट्रे अनेक आकार में उपलब्ध हैं. सामान्यत इस विधि में 50 सेमी लम्बा तथा 30 सेमी चौड़ा प्लास्टिक की ट्रे होती है, जिसमें लगभग 104 कप की आकृति बनी होती है. अलग फसलों के लिए अलग अलग खाचों की प्लास्टिक ट्रे आती है. ऐसे प्रो-ट्रे बाज़ार में 35 से 40 रुपये में एक मिल जाते है.
किसान तक से बातचीत में डॉ अभिषेक ने कहा कि प्रो-ट्रे टेक्नीक में मिट्टी, परलाइट, वर्मीकुलाइट और कोकोपिट मिलाकर भरा जाता है, समान अनुपात में मिला कर भरने के बाद बीज को 0.5 सेमी की गहराई में बुवाई करते हैं, इस विधि में अंकुरण प्रतिशत अधिक होता है. बुवाई के बाद प्रो-ट्रे को पालीथीन सीट अथवा पुराने अखबार से ढक देते है एवं पानी स्प्रेयर की मदद से धीरे-धीरे डालते हैं. बीज को अंकुरित होते ही शाम के समय प्लास्टिक / अखबार को हटा लिया जाता है और इस प्रकार बीजों के अंकुरण के लिए विभिन्न सब्जियों के लिए कम दिन लगते हैं. शिमला मिर्च एवं मिर्च का 8 से 10 दिन, प्याज 4 से 6 दिन, बैगन 7 से 8 दिन, गोभी वर्गीय फसलों 2 से 3 दिन, टमाटर 4 से 6 दिन में अंकुरित हो जाते हैं. वहींं पौध 18 से 20 दिनों में तैयार हो जाती है. इस ट्रे को शेड नेट पॉली हाउस और छायादार स्थान पर रख सकते हैंं, जिससे कि कीट बीमारियों और ओला बारिश से पौध को सुरक्षित रख सकते है.
किसान तक से बातचीत में डॉ अभिषेक ने कहा कि इस तकनीक में बीजों का 100 प्रतिशत तक अंकुरण की गुंजाइश रहती है. इससे स्वस्थ पौध मिलती है, जो खुले खेतों में लगाने पर भी 100 प्रतिशत तक फसल देती है. दरअसल, इस तरह से नर्सरी तैयार करने में बहुत ज्यादा परेशानी या खर्च नहीं है. प्रो-ट्रे विधि में बैक्टीरिया या वायरस का ज्यादा आक्रमण नहीं होता, उपज ज्यादा मिलती है. इसके अलावा प्रो-ट्रे में खरपतवार नहीं जमते, तैयार पौध निकालने पर ज्यादा टूटती नहीं, खेतों में जल्द और अच्छी तरह लग जाती हैं, इनकी ट्रांसपोर्टेशन भी आसान है और बाढ़ या ओले जैसी आपदा में इनकी रक्षा करना ज्यादा आसान होता है.
अगर कोई किसान या युवा नर्सरी का बिजनेस करना चाहता हैं. सब्जियों और फूलों की नर्सरी का बिजनेस कर लाभ कमा सकते हैं. एक पौध तैयार करने में लगभग 25 पैसे से लेकर 50 पैसे का खर्च आता है और एक पौधे को एक से डेढ़ रुपये में आसानी से बेचा जा सकता है. अगर कोई किसान 2 लाख पौधे तैयार करता हैं तो तीन महीने में 1 से डेढ़ लाख रुपये की कमाई कर सकते है.
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