उत्तर भारत के गांव में हर सुबह सूरज की रोशनी केवल खेतों को नहीं, बल्कि उम्मीदों को भी जगाती है. एक छोटे किसान का जीवन सीमित ज़मीन, बदलते मौसम और अनिश्चित बाज़ार के बीच एक निरंतर संघर्ष है. सूखा, बाढ़, या गिरते दाम जैसी चुनौतियों के बीच, केवल एक फसल पर निर्भर रहना बेहद जोखिम भरा हो सकता है. ऐसे में एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming System – IFS) छोटे किसानों के लिए स्थिरता, पोषण सुरक्षा और पर्यावरणीय संतुलन का एक प्रभावी समाधान प्रदान करती है.
कृषि जनगणना 2015-16 के अनुसार, भारत में 86.1 फीसदी किसान छोटे और सीमांत श्रेणी (भूमि 2 हेक्टेयर से कम) में आते हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में ऐसे किसानों की संख्या सबसे अधिक है. उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में औसत जोत 0.73 हेक्टेयर है, जबकि बिहार में यह 0.39 हेक्टेयर है. इसके विपरीत, पंजाब और हरियाणा में मध्यम और बड़े किसान अपेक्षाकृत अधिक हैं.ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि उत्तर भारत में किसानों की समस्याएं अलग हैं, और उनके लिए समाधान भी स्थानीय जरूरतो के अनुरूप होना चाहिए. इन किसानों की खास चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, IFS एक उपयुक्त और स्थायी मॉडल इस प्रकार हो सकता है.
एकीकृत कृषि प्रणाली एक समग्र खेती मॉडल है जिसमें फसल उत्पादन, पशुपालन, मछली पालन, कृषि वानिकी और अपशिष्ट प्रबंधन को इस प्रकार जोड़ा जाता है कि हर घटक एक-दूसरे का पूरक बन सके. इसका उद्देश्य संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना, जोखिम को कम करना और कृषि की स्थिरता सुनिश्चित करना है. यह प्रणाली विविध गतिविधियों को एकीकृत करती है ताकि फसल और पशु अपशिष्ट का पुनर्चक्रण हो सके, जिससे संसाधनों का समुचित उपयोग संभव हो सके.
उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में लाखों छोटे और सीमांत किसान हैं जिनके पास अक्सर 1 हेक्टेयर से भी कम ज़मीन होती है. इन किसानों को हर सीज़न इन समस्याओं का सामना करना पड़ता है: एक ही प्रकार की खेती से मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है, पानी की कमी बढ़ रही है, मौसम अब भरोसे लायक नहीं रहा, और बाज़ार में फसल के दामों में भारी उतार-चढ़ाव रहता है.
इन परिस्थितियों में केवल गेहूx या धान जैसी पारंपरिक फसलों पर निर्भर रहना अब लाभकारी नहीं रहा. IFS किसानों को फसल विविधीकरण के माध्यम से स्थिरता प्रदान करता है, जिससे उनकी आय के स्रोत बढ़ते हैं और वे बाजार और मौसम के झटकों का , मौसम अब भरोसे लायक नहीं रहा और बाज़ार में दाम का कोई ठिकाना नहीं रहता.इन हालात में सिर्फ गेहूँ या धान पर टिके रहना अब मुनाफे का सौदा नहीं रहा. IFS किसानों को विविधता के ज़रिए स्थिरता देता है.
फसल विविधीकरण: IFS किसानों को गेहू-धान से बाहर सोचने की दिशा देता है. दलहन, तिलहन, फल और सब्ज़ियाँ उगाकर फसल की विविधता बढ़ाई जा सकती हैऔर यही आमदनी का रास्ता खोलती है.
पशुपालन: गाय-भैंस का दूध, गोबर से खाद और गैस तीनों किसान के लिए अमूल्य संसाधन हैं. खासकर देशी नस्लें कम लागत में ज़्यादा लाभ देती है
मछली पालन: जहां तालाब या सिंचाई नहर उपलब्ध है, वहाँ मछली पालन पोषण और कमाई दोनों का स्रोत है. मछली का मल भी जैविक खाद की तरह इस्तेमाल होता है.
कृषि वानिकी: शीशम, नीम, बबूल जैसे पेड़ मिट्टी की सेहत सुधारते हैं, कार्बन सोखते हैं और कटने पर आमदनी भी देते हैं.
अपशिष्ट प्रबंधन: IFS फसल और पशु अपशिष्ट को बेकार नहीं मानता – उसे खाद, बायोगैस और ऊर्जा में बदलने की तकनीक देता है.
एक से अधिक कमाई के स्रोत, रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता में कमी.मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार,मौसम की मार से कुछ हद तक सुरक्षा ,रोज़गार के नए अवसर – खासकर ग्रामीण महिलाओं और युवाओं के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षाIFS अपनाने में चुनौतियां भी है IFS एक अच्छा मॉडल है, पर इसे अपनाने में कुछ रुकावटें आती हैं, जैसेशुरुआत में इंफ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत जैसे बाड़ा, तालाब, उपकरण इत्यादि, तकनीकी जानकारी और प्रशिक्षण की कमी, मार्केट में फसल या उत्पाद की उचित कीमत नहीं मिल पाना. सरकारी योजनाओं की जानकारी या प्रक्रिया का कठिन होना, अनुसंधान संस्थानों से सीमित संपर्क जैसी चुनौतिया हैय
IFS को ज़मीन पर लागू करने के लिए ज़रूरी है कि सरकारी योजनाओं जैसे PKVY, RKVY, MGNREGA के अंतर्गत तालाब निर्माण, जैविक खाद इकाई आदि से आसानी से पहुंच हो,मोबाइल आधारित मंडी भाव और प्रशिक्षण ऐप:जैसे'कृषि ज्ञान'ई-नाम', 'किसान सुविधा' जैसे मोबाइल ऐप से जानकारी और बाज़ार मूल्य मिलती रहे.कृषि विज्ञान केंद्रों अनुसंधान और खेत के बीच एक पुल हैं. यह किसानों को जानकारी से सशक्त, तकनीक से सक्षम और प्रशिक्षण से आत्मनिर्भर बनाता है. इसलिए KVK की सक्रिय भागीदारी होनी चाहिए. सहकारी समितियाँ और किसान उत्पादक संगठन (FPOs) का गठन होना चाहिए ,ड्रिप सिंचाई, बायोगैस और सोलर पंप जैसी तकनीक की उपलब्धता सुनिश्चित करना चाहिए. इस तरह हम कह सकते है आज के वक्त के लिए IFS कोई विकल्प नहीं, अब यह एक ज़रूरत है – और यह ज़रूरत सिर्फ आज की नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की भी है. यह कोई जादू की छड़ी नहीं, लेकिन सही जानकारी, नीतिगत समर्थन और तकनीकी सहयोग से यह मॉडल हर किसान के लिए वरदान बन सकता है.
लेखक: डॉ. रणवीर सिंह ( ग्रामीण विकास, पशुपालन और नीति निर्माण प्रबंधन में चार दशकों का अनुभव)
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